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कारण बताए बिना कर्मचारी के जवाब को असंतोषजनक नहीं कह सकते अधिकारी, हाईकोर्ट का आदेश

हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यदि जिला मजिस्ट्रेट किसी उत्तर को असंतोषजनक मानते हैं, तो उन्हें ठोस कारण बताने होते हैं और प्रथम दृष्टया यह साबित करना होगा कि संबंधित व्यक्ति वित्तीय गड़बड़ी में शामिल है। कोर्ट ने DM के आदेश को रद्द कर दिया है।

Ajay Singh विधि संवाददाता, प्रयागराजSat, 17 May 2025 06:48 AM
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कारण बताए बिना कर्मचारी के जवाब को असंतोषजनक नहीं कह सकते अधिकारी, हाईकोर्ट का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बिना कारण बताए कर्मचारी की ओर से दिए गए जवाब या स्पष्टीकरण को असंतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। जवाब को असंतोषजनक बताने वाले अधिकारी को यह भी स्पष्ट करना होगा कि जवाब क्यों असंतोषजनक है। मुरादाबाद के प्रेमचन्द की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने यह टिप्पणी की। कोर्ट जिला अधिकारी, मुरादाबाद के आदेश को रद्द करते हुए मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।

याची प्रेमपाल जिला खादी ग्रामोद्योग विभाग में कर्मचारी था। उसके खिलाफ कुछ लोगों ने शिकायत की। जिस पर उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। याची ने इस पर अपना जवाब प्रस्तुत किया गया। डीएम के आदेश से जिला ग्रामोद्योग अधिकारी ने उत्तर का अध्ययन कर नई रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट के आधार पर डीएम ने याची की वित्तीय और प्रशासनिक शाक्तियां समाप्त कर दी। याची ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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याची अधिवक्ता का कहना था कि जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी से 4 अक्तूबर 2024 को एक रिपोर्ट मांगी गई, जिसकी प्रति याचिकाकर्ता को कभी उपलब्ध नहीं कराई गई। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश में याचिकाकर्ता के उत्तरों पर कोई विचार नहीं किया गया।

कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यदि जिला मजिस्ट्रेट किसी उत्तर को असंतोषजनक मानते हैं, तो उन्हें ठोस कारण बताने होते हैं और प्रथम दृष्टया यह साबित करना होगा कि संबंधित व्यक्ति वित्तीय गड़बड़ी में शामिल है। कोर्ट ने डीएम के आदेश को रद्द कर दिया है।

रिश्तेदार होने पर खारिज नहीं कर सकते बयान

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मामले के चश्मदीद गवाहों के बयान को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि वह मृतक के करीबी रिश्तेदार हैं। कोर्ट ने कहा कि घटना के दौरान मौजूद प्रत्यक्षदर्शी की गवाही को केवल पीड़ित के साथ करीबी संबंध के चलते खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने 1983 के एक मामले में आजीवन कारावास पाए अपीलकर्ताओं की सजा को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला व न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने अत्तर सिंह और अन्य की अपील पर दिया।

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गाजियाबाद निवासी ब्रह्माजीत ने रास्ते के विवाद में 28 अक्तूबर 1981 को अपने पिता की हत्या करने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। कई आरोपियों के निधन के बाद बनी सिंह, ओम प्रकाश, चित्तर, सेरनी, तोता राम की ही अपील बची हुई है। अपीलकर्ताओं के अधिवक्ता ने दलील दी कि प्रत्यक्षदर्शी गवाह मृतक के रिश्तेदार हैं। ऐसे में इन्हें विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। इसके साथ अन्य कई दलीलें प्रस्तुत की।

कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हम ट्रायल कोर्ट के निर्णय को न्यायसंगत मानते हैं। अपील में कोई योग्यता नहीं है। कोर्ट ने बनी सिंह, ओम प्रकाश, चित्तर, सेरनी, तोताराम की दोषसिद्धि की पुष्टि की। अपील खारिज कर दी। जमानतदारों को मुक्त करते हुए अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेकर सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश दिया।