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पाकिस्‍तानी नागरिक को शिक्षिका बनाने में कई की भूमिका संदिग्‍ध, जांच के बाद भी मामला दबाया

  • अपनी बेटियों के साथ वह पाकिस्‍तान से रामपुर आ गई थी। सालों तक यह मामला दबा रहा। बीजा अवधि खत्म होने के बाद LIU की ओर से शहर कोतवाली में वर्ष 1983 में विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत उसके खिलाफ केस दर्ज करा दिया गया था। 25 जून 1985 को उसे कोर्ट की समाप्ति तक वहीं मौजूद रहने की सजा सुनाई गई थी।

Ajay Singh हिन्दुस्तान, संवाददाता, बरेलीSat, 18 Jan 2025 12:25 PM
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पाकिस्‍तानी नागरिक को शिक्षिका बनाने में कई की भूमिका संदिग्‍ध, जांच के बाद भी मामला दबाया

Pakistani citizen became teacher on fake certificate: पाकिस्‍तानी नागरिक को सरकारी शिक्षक बनाने में कई की भूमिका संदिग्ध है। जांच में तत्कालीन बीएसए को डीएम-एसपी ने दोषी मानते हुए गृह मंत्रालय को अवगत भी कराया था। लेकिन, हाईप्रोफाइल इस मामले को तब ऐसा दबाया कि आज भी दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो सकी है।

दरअसल, बरेली के शहर कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला आतिशबाज निवासी अख्तर अली की बेटी फरजाना उर्फ माहिरा अख्तर ने 17 जून 1979 को पाकिस्तान निवासी सिबगत अली से निकाह किया और पाकिस्तान चली गई थी। वहां उसे पाकिस्तान की नागरिकता मिल गई। बाद में उसने दो बेटियों को वहां जन्म दिया। जिनका नाम फुरकाना और आलिमा है। निकाह के दो साल बाद उसके शौहर ने तलाक दे दिया था।

जिस पर वह अपनी दोनों बेटियों के साथ रामपुर अपने मायके आ गई थी। सालों तक यह मामला दबा रहा। बीजा अवधि खत्म होने के बाद एलआईयू की ओर से शहर कोतवाली में वर्ष 1983 में विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया था। जिस पर 25 जून 1985 को उसे सीजेएम कोर्ट से कोर्ट की समाप्ति तक अदालत में मौजूद रहने की सजा सुनाई गई थी।

ऐसे हुआ था घपलेबाजी का खुलासा

अवैध तरीके से रामपुर में रह रही इस पाक नागरिक को एलआईयू की ओर से नोटिस जारी करते हुए बीजा अवधि बढ़वाने को कहा गया। जिस पर खुलासा हुआ था महिला तो बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापिका के पद पर तैनात है। एलआईयू ने बीएसए के यहां से छानबीन शुरू की तो पता चला कि उसे 22 जनवरी 1992 में बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापक की नौकरी दी गई। एलआईयू ने रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी थी। जिस पर उसे बर्खास्त किया गया लेकिन, अधिकारियों पर कोई कर्रवाई नहीं हुई।

बिना सत्यापन दी नौकरी

चयन बोर्ड ने नौकरी देते वक्त कोई पुलिस सत्यापन नहीं कराया था। 2015 में हुई जांच में तत्कालीन बीएएसए के अलावा चयन बोर्ड में शामिल सभी को दोषी माना गया था। क्योंकि, चयन बोर्ड के समक्ष मूल प्रमाण पत्र देने होते हैं, जिनके सत्यापन के बाद ही आगे की कार्रवाई होती है। आवेदन से लेकर सत्यापन तक फर्जीबाड़ा किया गया।