बोले सहारनपुर : विद्यार्थियों का भविष्य रोशन कर रहे शिक्षकों के जीवन में अंधेरा
Saharanpur News - वित्तविहीन शिक्षक आज भी जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें न तो नियमित वेतन मिलता है और न ही कोई सरकारी सहूलियत। ये शिक्षक बच्चों को शिक्षा देकर उज्जवल भविष्य की उम्मीद जगाते...

बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा फैलाने में जुटे वित्तविहीन शिक्षक आज भी जिंदगी की बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। वित्तविहीन शिक्षकों को न तो नियमित वेतन मिलता है, न कोई सरकारी सहूलियत। इन शिक्षकों को कर्मचारी भविष्य निधि (पीएफ), चिकित्सा बीमा और पेंशन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी हासिल नहीं हैं। जिससे इन्हें तमाम परेशानी का सामना करना पड़ता है। सहारनपुर। जब समाज की बुनियाद रखने वाला मुअल्लिम (शिक्षक) ही मुफलिसी (गरीबी) का शिकार हो, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई हम तालीम को उसकी सही अहमियत दे रहे हैं? उत्तर प्रदेश के वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक आज भी जिंदगी की बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। यह वही शिक्षक हैं जो बच्चों को उज्जवल भविष्य देने के लिए हर रोज तालीम का चिराग जलाते हैं, लेकिन खुद अंधेरों में जीते हैं।
वित्तविहीन शिक्षकों को न तो नियमित वेतन मिलता है, न कोई सरकारी सहूलियत। जहां एक तरफ सरकारी और अर्धसरकारी शिक्षकों को हर महीने लाखों में तनख्वाह मिलती है, वहीं इन शिक्षकों को उनका दस प्रतिशत भी नहीं दिया जाता। उत्तर प्रदेश वित्तविहीन माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष बृजेश शर्मा का कहना है कि नाममात्र मानदेय पर जीवन गुजारना नामुमकिन है। इन शिक्षकों को कर्मचारी भविष्य निधि (पीएफ), चिकित्सा बीमा और पेंशन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी हासिल नहीं हैं। यानी ना वर्तमान में सुकून और ना भविष्य की कोई तसल्ली। अगर कोई शिक्षक या उसके परिवार का सदस्य बीमार हो जाए, तो इलाज का ख़र्च उठाना उनके बस से बाहर होता है। बड़ी बीमारी की सूरत में उन्हें कर्ज़ लेना पड़ता है। हालात इतने संगीन हैं कि अगर किसी शिक्षक को ऑपरेशन कराना पड़े, तो पूरा परिवार तंगहाली में डूब जाता है।
विद्यालयों की मजबूरी या बहाना
वित्तविहीन स्कूलों के संचालक कम फीस और आय की दुहाई देकर शिक्षकों को वाजिब वेतन नहीं देते। सवाल ये है कि जब एक अकुशल मजदूर तक 15 से 20 हजार रुपये महीना कमा लेता है, तो पूरी तालीम और तज़ुर्बा रखने वाला शिक्षक क्यों केवल दो-तीन हजार में ही सिमट कर रह गया है?
पूरी मेहनत, लेकिन आधा हक
जिले में 200 से अधिक वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालय हैं, जहां 1500 से अधिक शिक्षक पूर्णकालिक रूप से सेवाएं दे रहे हैं। न केवल पढ़ाई बल्कि अन्य प्रशासनिक कार्यों में भी ये शिक्षक बराबर भाग लेते हैं, लेकिन उन्हें केवल प्रति घंटे के हिसाब से भुगतान का नियम थमाया गया है, जो तब लागू किया गया था जब ये शिक्षक अंशकालिक कार्य करते थे। अब जबकि वे पूर्णकालिक हैं, फिर भी वेतन उसी दर पर मिलता है। यह व्यवस्था उनकी मेहनत और योग्यता की तौहीन है।
अब तक कोई सेवा नियमावली नहीं
वर्ष 2015 में तत्कालीन सरकार ने 200 करोड़ रुपये का मानदेय देने की घोषणा की थी, जो एक बारगी राहत तो थी, मगर स्थायी समाधान नहीं। उसके बाद से अब तक कोई भी अनुदान या नीति निर्माण नहीं किया गया। 1986 में जब ये स्कूल अस्तित्व में आए, तब से लेकर अब तक कोई सेवा नियमावली नहीं बनाई गई है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार की प्राथमिकताओं में ये शिक्षक कहीं नहीं हैं।
आवाज उठाना भी मुश्किल
कई बार शिक्षक एकजुट होकर अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन विद्यालय प्रबंधकों और प्रशासनिक दबाव के चलते खुलकर आंदोलन करना उनके लिए संभव नहीं हो पाता। इस तरह उनकी आवाज़ दबा दी जाती है। ग़ुर्बत की चादर में लिपटे ये मुअल्लिम जब हक़ की बात करना चाहते हैं, तो उन्हें खामोश कर दिया जाता है। एक ऐसा समाज, जो शिक्षा को सबसे बड़ा हथियार मानता है, अपने तालीम के सिपाही को यूं बेसहारा छोड़ सकता है? यह न केवल सामाजिक विफलता है, बल्कि एक नैतिक अपराध भी है।
वित्तविहीन शिक्षकों की मांगे
वित्त विहीन शिक्षकों की मांग है कि सेवा नियमावली तैयार की जाए, जिससे इन शिक्षकों को स्थायित्व और सुरक्षा मिले। न्यूनतम वेतन की गारंटी हो- कम से कम इतना वेतन जिससे वे सम्मानजनक जीवन जी सकें। स्वास्थ्य और पेंशन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं-ताकि वे भविष्य को लेकर आश्वस्त हो सकें। मानदेय में वार्षिक बढ़ोत्तरी सुनिश्चित हो-जिससे महंगाई की मार से राहत मिले और विद्यालयों की नियमित ऑडिटिंग हो-ताकि संचालन में पारदर्शिता बनी रहे।
एक पुकार इंसाफ की
आज जब हर मंच पर ‘शिक्षा सुधार, ‘न्याय और ‘समान अवसर की बातें की जाती हैं, तो क्या ये शिक्षक इन सबके हकदार नहीं? उनका कसूर सिर्फ़ इतना है कि वे एक ऐसे तंत्र का हिस्सा हैं, जिसे सरकार ने बेमायने बना दिया है। अब वक़्त आ गया है कि इन आवाज़ों को अनसुना न किया जाए। जब तक ये शिक्षक सुकून से नहीं रहेंगे, तब तक तालीम के मक़सद पूरे नहीं होंगे। इनकी लड़ाई केवल वेतन की नहीं, वजूद की है-इज्जत की है। क्या समाज और सरकार इन्हें वो इज्जत देने को तैयार हैं, जिसके ये हकदार हैं?
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शिकायतें और सुझाव
1. वित्तविहीन विद्यालयों में शिक्षकों को जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त वेतन नहीं मिल पाता है।
2. वित्तविहीन शिक्षकों के लिए अब तक सेवा नियमावली नहीं बनी है।
3. वित्तविहीन शिक्षकों की सेवा विद्यालय प्रबंधकों की इच्छा पर निर्भर है।
4. कर्मचारी भविष्य निधि, बीमा और पेंशन जैसी कोई भी सुविधा वित्तविहीन शिक्षकों को नहीं मिल रही है।
5. परीक्षा केंद्र निर्धारण में भेदभाव से बच्चे निजी विद्यालय छोड़ रहे हैं।
1. कम से कम कुशल श्रमिकों के बराबर वेतन की व्यवस्था की जाए। चिकित्सकीय और अन्य सुविधाएं भी मिलें।
2. कर्मचारी भविष्य निधि में पंजीकरण होना चाहिए।
3. कार्य के घंटों के अनुसार मानदेय की व्यवस्था समाप्त की जाए।
4. वित्तविहीन विद्यालयों को रजिस्ट्रेशन का अंशदान 10 रुपये यूपी बोर्ड लौटाए।
5. वित्तविहीन विद्यालयों को फंड जेनरेट करने की छूट मिले।
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हमारी भी सुनों
1.हम रोज विद्यालय में पूरे मन से पढ़ाते हैं, लेकिन जो वेतन मिलता है, उससे ज़िंदगी चलाना भी नामुमकिन है। हमारी सेवा स्थायी नहीं है, कोई सुरक्षा नहीं। क्या एक शिक्षक की यही कीमत है? -भानू प्रताप
2.सरकारें हमसे वादे करती हैं, मगर निभाती नहीं। हमने तालीम को ईमानदारी से निभाया है, अब हमें भी जीने का हक़ चाहिए। इतने सालों से संघर्ष कर रहे हैं, फिर भी राहत दूर की बात है। -संजय कुमार सैनी
3.हम शिक्षक हैं, मजदूर नहीं, लेकिन मजदूर से भी बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। पेंशन, बीमा और स्थायित्व -कुछ नहीं मिला। क्या हमें सिर्फ़ इस्तेमाल करने के लिए रखा गया है? -सर्वेश कुमार
4.एक महिला शिक्षक के रूप में मैं दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हूं-घर और विद्यालय की। लेकिन ना सुरक्षा है, ना सम्मान। कम से कम महिला शिक्षक होने के नाते हमें न्यूनतम वेतन तो मिलना चाहिए। -किश्वर जहां
5.हमारी मेहनत का कोई मोल नहीं। सुबह से शाम तक स्कूल में लगे रहते हैं, फिर भी हाथ खाली रहते हैं। सरकार को चाहिए कि हमें भी सरकारी शिक्षकों की तरह मान्यता और सुविधा दे। -अजीत सिंह
6.वित्तविहीन स्कूलों में शिक्षक होना अब अभिशाप जैसा लगने लगा है। ना नौकरी पक्की है, ना वेतन तय। ऐसे हालात में बच्चों के साथ संघर्ष कर रहे है, काफी दिक्कत होती है। -अनिल शर्मा
7.हमारा जीवन ठहरा हुआ है, न आगे बढ़ पा रहे हैं, न पीछे लौट सकते हैं। कई सालों से संघर्ष कर रहे हैं पर सरकार की ओर से कोई जवाबदेही नहीं। ना जाने कब तक ऐसे ही चलेगा। -लोकेश पंवार
8.कभी सोचा है कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक अपने बच्चों की फीस नहीं भर पाते? यही है हमारी हालत। सरकार और समाज से सिर्फ इतना चाहते हैं कि हमारी मजबूरी को समझा जाए। -मौ राशिद
9.हमने अपने हक़ के लिए कई बार आवाज़ उठाई, ज्ञापन दिए, धरने किए, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। हमारी मांगें बहुत बड़ी नहीं हैं-बस सम्मानजनक जीवन जीने की चाह है। -बृजेश शर्मा
10.जब कोई बीमार पड़ता है, तो सबसे बड़ा डर इलाज का होता है। मानदेय इतना कम है कि दवा भी नहीं खरीद सकते। ऐसे में शिक्षक होना गर्व नहीं, संघर्ष बन गया है। -अनिल कुमार
11.हमें काम तो पूरा दिया जाता है, लेकिन अधिकार आधे भी नहीं मिलते। स्कूल के हर काम में शामिल रहते हैं, फिर भी वेतन शर्मनाक है। ये दोहरापन कब तक चलेगा, इससे छुटकारा मिले। -दुर्योधन सिंह
12.हमारी पीड़ा सिर्फ़ आर्थिक नहीं, मानसिक भी है। हर महीने पैसों की तंगी, बच्चों की ज़रूरतें, सामाजिक दबाव-सब कुछ एक शिक्षक पर भारी पड़ता है। अब हमें भी सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार चाहिए। -केहर सिंह
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