विश्वविद्यालयों की भूमिका अब केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं
Santkabir-nagar News - सिद्धार्थनगर, हिन्दुस्तान टीम। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के प्रेक्षागृह में वैश्विक बौद्ध चिंतन की ऐतिहासिकता

सिद्धार्थनगर, हिन्दुस्तान टीम। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के प्रेक्षागृह में वैश्विक बौद्ध चिंतन की ऐतिहासिकता एवं समकालीन प्रासंगिकता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कुलपति प्रो.कविता शाह ने कहा कि विश्वविद्यालयों की भूमिका अब केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक उत्तरदायित्व, नैतिक मूल्यों के संवर्धन, चरित्र निर्माण व सतत विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति में एक सक्रिय भागीदार बन गई है। उन्होंने कहा कि बौद्ध चिंतन को पर्यावरण, तकनीक, नीति निर्माण व सामाजिक समरसता से जोड़ने की जरूरत है। अहिंसा, करुणा, सहिष्णुता और सम्यक दृष्टि जैसे बौद्ध मूल्य शिक्षा प्रणाली का अनिवार्य अंग बनने चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो. हरीशंकर प्रसाद ने बुद्ध के टेस्ट ऑफ सॉरो की व्याख्या करते हुए चार आर्य सत्यों पर चर्चा की।
उन्होंने बताया कि बौद्ध दर्शन केवल आस्था नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन के मार्गदर्शन का सशक्त माध्यम है। विंध्यवासिनी विश्वविद्यालय मिर्जापुर की कुलपति प्रो. शोभा गौंड़ ने कहा कि बौद्ध दर्शन की शिक्षाएं आज के वैश्विक संघर्षों के समाधान का मार्ग प्रदान कर सकती हैं। उन्होंने करुणा, अहिंसा, मध्यमार्ग और सम्यक विचार जैसे सिद्धांतों की वर्तमान प्रासंगिकता पर बल दिया। डॉ. यशवंत सिंह राठौर, उपनिदेशक, राजकीय बौद्ध संग्रहालय गोरखपुर ने बौद्ध चिंतन को भारतीय ज्ञान परंपरा का अमूल्य हिस्सा बताया। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संस्थान के सदस्य तुगेष कुमार ने बुद्ध के स्वयं को जानो जैसे विचारों को समकालीन समस्याओं से जोड़ा। संस्कृत कॉलेज एवं विश्वविद्यालय कोलकाता के पूर्व कुलपति प्रो. दिलीप कुमार मोहंता ने कहा कि बुद्ध का मध्यमार्ग एवं सम्यक दृष्टि वर्तमान समय में मानसिक संतुलन एवं स्थायित्व की दिशा प्रदान करते हैं।
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