क्या है क्लाउड सीडिंग जिसकी तैयारी में लगी दिल्ली सरकार, कैसे कम करेगी प्रदूषण?
Cloud Seeding: पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कृत्रिम बारिश के कुल पांच बार ट्रायल किया जाएगा। इस बारिश के लिए एयरक्राफ्ट लगभग डेढ़ घंटे की उड़ान भरेंगे।

Cloud Seeding: दिल्ली में 27 साल बाद आई भाजपा सरकार प्रदूषण से निपटने की हर कोशिश करती नजर आ रही है। दरअसल दिल्ली में हर साल ही जाड़े के समय लोगों को भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। इसकी रोकथाम आपात उपायों के तौर पर क्लाउट सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश पर चर्चा तो पहले भी चलती रही है लेकिन इस बार बात ट्रायल तक पहुंचती दिख रही है। पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कृत्रिम बारिश के कुल पांच बार ट्रायल किया जाएगा। इस बारिश के लिए एयरक्राफ्ट लगभग डेढ़ घंटे की उड़ान भरेंगे।
पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हर ट्रायल अलग-अलग दिन किए जा सकते हैं और बाद में इनकी उपयोगिता की समीक्षा भी होगी। इसमें आने वाले नतीजों के आधार पर जाड़े के समय प्रदूषण के समय कृत्रिम बारिश पर विचार किया जाएगा। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग है क्या और प्रदूषण को रोकने में कैसे काम करती है।
क्या है क्लाउड सीडिंग
क्लाउड सीडिंग को आर्टिफिशियल रेन भी कहा जाता है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत केमिकल को बादलों में फैलाया जाता है, जिसके चलते अगर मौसमी परिस्थितियां अनुकूल हों तो बारिश होती है। जानकारी के मुताबिक एयरक्राफ्ट के जरिए ऐसे केमिकल का छिड़काव किया जाएगा जिनसे बारिश कराई जा सके और बारिश होने से प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी। क्लाउड सीडिंग का मकसद दिल्ली को स्वच्छ वातावरण मुहैया कराना और प्रदूषण कम करना है।
दिल्ली की इन दो जगहों पर नहीं होगा क्लाउड सीडिंग का ट्रायल
पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ट्रायल के लिए स्थान अभी तय नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि आईआईटी कानपुर योजना से लेकर क्रियान्वयन तक प्रयोग का नेतृत्व कर रहा है।
अधिकारी के अनुसार, संस्थान ही विभिन्न वैज्ञानिक और तार्किक कारकों के आधार पर जगह का चयन करेगा। सुरक्षा और हवाई क्षेत्र प्रतिबंधों के कारण लुटियंस दिल्ली या इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास शहर के भीतर परीक्षण नहीं किए जा सकते।
कब हो सकता है पहला ट्रायल
उन्होंने कहा कि इसके मद्देनजर यह परीक्षण दिल्ली के बाहरी इलाकों में चलाया जाएगा, जहां मौसम संबंधी परिस्थितियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। अधिकारी ने बताया कि प्रत्येक परीक्षण के दौरान एक विमान एक से डेढ़ घंटे तक उड़ान भरेगा और सटीक कार्यक्रम जल्द ही तय कर दिया जाएगा और पहला ट्रायल मई के अंत या जून तक होने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक नए कदम के रूप में, दिल्ली के मंत्रिमंडल ने सात मई को पांच कृत्रिम बारिश परीक्षण करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसकी कुल परियोजना लागत 3.21 करोड़ रुपये है।
अधिकारी के अनुसार, इसमें परीक्षण के लिए 2.75 करोड़ रुपये (प्रति परीक्षण 55 लाख रुपये) और अन्य उपकरणों आदि के लिए 66 लाख रुपये की एकमुश्त राशि शामिल है। बताया कि सरकार नागरिक उड्डयन महानिदेशालय, रक्षा मंत्रालय और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण सहित 13 प्रमुख विभागों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्राप्त करने की प्रक्रिया में है।
भाषा से इनपुट