पीरू की पीर को हरने के लिए कब पड़ेगी अफसरों की नजर
Shahjahnpur News - पीरू गांव की स्थिति बहुत खराब है, जबकि गंगा एक्सप्रेसवे पर हवाई पट्टी बन रही है। गांव में सड़कें जर्जर हैं और विकास का कोई निशान नहीं है। स्थानीय निवासी प्रदीप कुमार का कहना है कि वे 1980 के दशक जैसा...

मैं पीरू हूं। उम्र का पता नहीं। पर मेरे हालात बहुत बदतर हैं। 500 मीटर की दूरी पर गंगा एक्सप्रेसवे पर बनी हवाई पटटी मेरे ही एरिया में हैं, जिस पर लड़ाकू विमान लैडिंग करेंगे। इसे पीरू हवाई पटटी भी कहते हैं। पर मेरी किस्मत देखिए, सूल की सड़क तक नहीं है। सालों पहली बनी उधड़ी सड़क कमीशनखोरी की पूरी त्रासदी बयां कर रही है। दूसरी ओर 36 हजार करोड़ की लागत से गंगा एक्सप्रेसवे बन रहा है। पीरू गांव की यही सबसे बड़ी पीर यानी दर्द है कि यहां कदम कदम पर रोड़े हैं। यह रोड़े ऐसे हैं जो जीवन की डोर कमजाेर कर रहे हैं, यह तरक्की राह को मुश्किल बना रहे हैं, यह हाईटेक युग में लोगों को पाषाण काल की याद दिलाते हैं।
गंगा एक्सप्रेसवे पर एयर स्ट्रिप यानी हवाई पटटी जहां बनी है, वहां से पाषाण युग जैसा पीरू गांव साफ दिखता है। पीरू गांव से गंगा एक्सप्रेसवे आधुनिक भारत की शानदार तस्वीर लगता है। गंगा एक्सप्रेसवे से पीरू गांव के दीन हीन हालात भी दिखते हैं। मन नहीं माना, इसलिए इधर उधर से होते हुए हिन्दुस्तान पीरू गांव पहुंच गया।
जलालाबाद तहसील क्षेत्र और मदनापुर ब्लाक क्षेत्र की ग्राम पंचायत चमरपुराकलां के मजरे का नाम पीरू है। गांव में घुसते ही अंदर के हालात की तस्वीर मन मस्तिष्क में कौंध गईं। जैसा सोचा वैसा ही देखने को मिला। किसी जर्जर काया के दम तोड़ते बुजुर्ग जैसी एक सड़क। हां डामर से बनी होगी, इसलिए धूल मिटटी के साथ ही कहीं कहीं काली दिखती है। इस बूढ़ी सड़क के गिटटी हर बार हर कदम पर डामर को छोड़ कर उछल पड़ते हैं और कूद पड़ते हैं, मानों वह तंज कस रहे हों गंगा एक्सप्रेसवे से उतर गांव आने पर कैसा लगा। यह सड़क की उखड़ी गिटटी मुख्य रोड से लेकर गांव के मुंहाने तक चिढ़ाती है, मटकाती है, ताने देती है, शिकायत करती है, यह पोल भी खोलती है कि सरकार के अफसर कितनी बार गांव का हाल जानने आए, अगर सरकारी अफसर पीरू गांव जाते होते तो निश्चित पर हालात अच्छे होते। गांव के अंदर सबसे पहले मिले प्रदीप कुमार। खेतीबाड़ी करते हैं। पहले तो वह बोले नहीं, लेकिन जब कुरेदा तो वह भक्क से बोल उठे, क्या छिपा है आपसे। हम लोग तो अब भी 1980 जैसा ही जीवन जी रहे हैं। हालात गांव के बाहर बदले होंगे, दुनिया बदली होगी, लेकिन अपनी पीरू गांव की दुनिया में तो कोई बदलाव आया नहीं है। बताया कि मोबाइल है, उसमें यूटयूब पर बदलती दुनिया की तस्वीरें देखते हैं, पीरू कब बदलेगा, यह पता नहीं।
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