District Hospital in Sitapur Faces Critical Shortages of Wheelchairs Stretchers and Medications बोले सीतापुर-स्ट्रेचर और न ही व्हील चेयर की सुविधा, गोद में उठाए जा रहे मरीज, Sitapur Hindi News - Hindustan
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बोले सीतापुर-स्ट्रेचर और न ही व्हील चेयर की सुविधा, गोद में उठाए जा रहे मरीज

Sitapur News - सीतापुर के जिला अस्पताल में मरीजों को व्हील चेयर, स्ट्रेचर और दवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में उपलब्ध उपकरणों की स्थिति बेहद खराब है, जिससे मरीजों को काफी कठिनाइयों का सामना करना...

Newswrap हिन्दुस्तान, सीतापुरFri, 2 May 2025 05:26 PM
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बोले सीतापुर-स्ट्रेचर और न ही व्हील चेयर की सुविधा, गोद में उठाए जा रहे मरीज

सीतापुर का जिला अस्पताल जिले के हजारों मरीजों की स्वास्थ्य सेवा का एक प्रमुख केंद्र हैं। लेकिन यह अस्पताल चिकित्सकों की कमी के साथ ही व्हील चेयर, स्ट्रेचर और दवाओं की उपलब्धता के अभाव के चलते भी आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनता रहता है। इन बेहद जरूरी संसाधनों के अभाव में आए दिन मरीजों और उनके परिजन को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में आने वाले मरीजों का टूटी स्ट्रेचर व व्हील चेयर दर्द बढ़ाने का काम कर रहीं हैं। जिला अस्पताल में एंबुलेंस से इमरजेंसी में मरीजों को ले जाने के लिए टूटे चक्के की व्हीलचेयर और फटे-पुराने व खराब स्ट्रेचर ही रखे हुए हैं।

इसकी वजह से मरीजों का दर्द कम होने की बजाय बढ़ जाता है। इमरजेंसी के बाहर बने हाल के एक कोने में रखी स्ट्रेचर और व्हील चेयर मरीजों के इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। सभी स्ट्रेचर और व्हील चेयर बेहद गंदी हैं। कई स्ट्रेचर की सीटें फटी हुई हैं। जिससे इनसे मरीजों के गिरने का खतरा भी बना रहता है। व्हील चेयर एवं स्ट्रेचर के अभाव में तीमारदार अपने मरीज को गोद में उठाकर चिकित्सक तक एवं वार्ड तक ले जाने को मजबूर हैं। इमरजेंसी वार्ड में गंभीर रूप से घायलों के साथ साथ एक्सरे से लेकर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज आते रहते हैं। व्हील चेयर व स्ट्रेचर की कमी झेल रहे जिला अस्पताल में लोग अपने मरीजों को गोद में या अन्य विकल्पों की मदद से इमरजेंसी वार्ड तक अथवा चिकित्कस के पास लेकर जाते है। ऐसे में अगर किसी घायल, दिव्यांग या फिर गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को अस्पताल की पहली या दूसरी मंजिल पर ले जाना पड़े तो यह मरीज के परिजन के लिए एक गंभीर चुनौती बन जाता है। अस्पताल परिसर में मरीजों की सुगमता के लिए व्हीलचेयर और स्ट्रेचर का होना बेहद जरूरी होता है। यह उपकरण दुर्घटना में घायल मरीजों , सर्जरी के मरीजों या फिर दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण चलने में असमर्थ मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होते हैं। लेकिन जिला अस्पताल में जब भी इस तरह के मरीज आते हैं, तो उनके परिजन को व्हील चेयर अथवा स्ट्रेचर पाने के लिए पूरे जिला अस्पताल के चक्कर काटना पड़ता है। इस लंबे इंतजार के चलते मरीजों को तमाम मुश्किलों को सामना भी करना पड़ता है। इस दौरान घायल मरीजों का दर्द और भी बढ़ जाता है। अस्पताल में जो व्हील चेयर और स्ट्रेचर उपलब्ध भी हैं, उनकी हालत बेहद खराब है। व्हील चेयर हो या फिर स्ट्रेचर हो हर किसी के कुशन फटे हुए हैं, जिससे इन पर मरीजों के लेटने अथवा बैठने से उनका दर्द और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा स्ट्रेचर और व्हील चेयर के पहिए जाम होने से मरीजों के तीमारदारों को काफी ताकत लगाकर उन्हें खींचना पड़ता है। इससे भी मरीजों को असुविधा होती है। इस सबको लेकर जिला अस्पताल के अधीक्षक अथवा दूसरे जिम्मेदार चिकित्सा अधिकारी इस बात का दावा कर रहे हो कि वह नियमित रूप से व्हीलचेयर और स्ट्रेचर की मरम्मत और रखरखाव करते हैं, लेकिन जिला अस्पताल आने वाला हर एक व्यक्ति इस तल्ख हकीकत से अच्छी तरह से परिचित है। जिला अस्पताल में मरीजों की अधिक संख्या को देखते हुए व्हील चेयर और स्ट्रेचर जैसी सुविधा की भारी कमी है। हरगांव ब्लॉक के उदनापुर गांव के संतोष बताते हैं कि रात में मेरे पैर में चोट लग जाने के कारण मैं जिला अस्पताल में दिखाने आया हूं। मुझे तेज और असहनीय दर्द है, पैदल चलकर चिकित्सक के पास जाना फिलहाल मेरे लिए मुश्किल है। चिकित्सक से मिलने के लिए मुझे व्हील चेयर की जरूरत थी, लेकिन मुझे लगभग आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ा। तमाम कोशिशों के बाद जब मुझे व्हील चेयर मिल पाई तो उसके दोनों पहिए फंस-फंस कर चल रहे थे और उनमें से आवाज भी आ रही थी। फार्मेसी में दवाओं का संकट, कर्मियों का व्यवहार ठीक नहीं --- जिला अस्पताल का प्रशासन भले ही यह दावा कर रहा हो कि अस्पताल में पर्याप्त दवाएं उपलब्ध हैं और बिना दवाओं के किसी भी मरीज को वापस नहीं भेजा जाएगा, लेकिन तल्ख हकीकत कुछ और ही है। जिला अस्पताल की फार्मेसी में हर समय सभी दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती है। जिसके चलते कई बार मरीजों को कुछ विशेष दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। इसके अलावा चिकित्सकों द्वारा जेनरिक दवाएं न लिखने एवं जिला अस्पताल के परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के न होने से मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदनी पड़ती हैं, जिससे उन पर आर्थिक बोझ पड़ता है। शहर के तरीनपुर मोहल्ले में रहने वाली सुधा श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ समय पूर्व उनके बच्चे को निमोनिया हुआ था। डॉक्टर ने कुछ एंटीबायोटिक दवाएं लिखी थीं, लेकिन वह दवाएं जिला अस्पताल में नहीं मिली, जिसके चलते मुझे बाहर से महंगी कीमत पर दवाएं खरीदनी पड़ीं। मरीजों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ती एम्बुलेंस सेवाएं --- प्रदेश सरकार द्वारा सूबे में 102 और 108 एम्बुलेंस चलाई जा रहीं हैं। इन दोनों एम्बुलेंस सेवाओं के संचालन निजी संस्था जीवीके के सहयोग से किया जा रहा है। हालांकि फोन करने पर संबंधित एम्बुलेंस मरीज को नि:शुल्क उपलब्ध तो हो जाती है, लेकिन फोन करने की इस प्रक्रिया और एम्बुलेंस के मरीज तक पहुंचने में काफी समय लगता है, यह समय मरीज के लिए बेहद भारी होता है। इसके अलावा आए दिन शहर में... बल्कि यूं कहें कि अस्पताल के गेट और अस्पताल के आसपास के रास्तों पर लगने वाले जाम के कारण एम्बुलेंस को स्पॅाट पर पहुंचने में विलंब हो जाना एक आम बात है। इस सबके अलावा एम्बुलेंस में आए दिन तकनीकी खराबी आती रहती हैं, जिसका खामियाजा भी मरीजों को ही भुगतना पड़ता है। गंभीर और आपात स्थिति वाले मरीजों को घर से या फिर किसी स्वास्थ्य केंद्र से उच्च स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए प्रदेश सरकार के माध्यम से तमाम आधुनिक चिकित्सीय उपकरणों से लैस एम्बुलेंस का संचालन किया जा रहा है। इन एम्बुलेंस को एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एम्बुलेंस कहा जाता है। इन एम्बुलेंस का संचालन एक निजी संस्था जिकित्सा हेल्थ केयर द्वारा किया जा रहा है। लेकिन बेहद दुर्भाय की बात तो यह है कि इनका कोई शार्ट टोल फ्री नंबर नहीं है, जिससे मरीजों को इन एम्बुलेंस की जानकारी नहीं है और लोग इस एम्बुलेंस सेवा का लाभ नहीं ले पाते हैं। कहने को तो एम्बुलेंस पर मरीजों के स्वास्थ्य को लेकर कई आधुनिक और आवश्यक चिकित्सा उपकरण वेंटिलेटर, कार्डियक मॉनिटर, ब्लड प्रेशर मॉनिटर, पल्स ऑक्सीमीटर, डिफिब्रिलेटर, इंट्यूबेशन आदि लगे हुए हैं। यह उपकरण कब काम करेंगे और कब काम नहीं करेंगे, यह कोई नहीं जानता है। इसी तरह एम्बुलेंस में मौजूद दर्द निवारक दवाएं, एंटीरैडमिक दवाएं और एंटीकोएगुलेंट दवाएं कभी-कभार ही मरीजों को मिल पाती हैं। रही बात इन एम्बुलेंस पर टेली कालिंग की सुविधा की तो वह इंटरनेट पर निर्भर करती है। जिले भर में कुल 91 एम्बुलेंस हैं। इनमें से चार एएलएस एम्बुलेंस, 47 बीएलएस एम्बुलेंस 108 नंबर की और 46 बीएलएस एम्बुलेंस 102 नंबर की हैं। जिले में संचालित 108 और 102 एम्बुलेंस पर कुल 172 पॉयलट और 179 ईएमटी की तैनाती है। इन सभी एम्बुलेंस का संचालन सही तरीके से हो इसको लेकर सभी गाड़ियों को जीपीएस से लैस किया गया है। इसके अलावा हर एक एम्बुलेंस पर एक मोबाइल फोन है, जिस पर एक सीयूजी नंबर है। जिसे एम्बुलेंस के जीपीएस से कनेक्ट किया गया है। 18 स्ट्रेचर जिला अस्पताल में 11 व्हील चेयर जिला अस्पताल में 10 वार्ड जिला अस्पताल में 02 जिला अस्पताल सुझाव --- - जिला अस्पताल में स्ट्रेचर की संख्या बढ़ाई जाएं। - फार्मेसी वार्डों के निकट सुविधाजनक स्थान पर हो। - फार्मेसी में जीवन रक्षक व सभी दवाएं उपलब्ध कराई जाए। - फार्मेसी ने तैनात कर्मियों का मरीजों के प्रति व्यवहार में सुधार हो। - फार्मेसी को आधुनिक और डिजिटल किया जाए। - हेल्प डेस्क में तैनात कमचारियों की जवाबदेही तय हो। शिकायतें--- - हेल्प डेस्क के कर्मचारियों का रैवैया लापरवाह है। - फार्मेसी में दवाओं की उपलब्धता की स्थिति दयनीय है। - फार्मेसी में तैनात कर्मचारियों का व्यवहार मरीजों के प्रति ठीक नहीं है। - फार्मेसी में समय के साथ बदलाव नहीं हुए हैं। - अस्पताल में स्ट्रेचर और व्हील चेयर की संख्या काफी कम है। - फार्मेसी कक्ष वार्डों से काफी दूरी पर स्थित है। प्रस्तुति- राजीव गुप्ता

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