Ekdant sankashti chaturthi katha: यहां पढ़ें एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा
Ekdant sankashti chaturthi vrat katha: एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत कथा पढ़ने या सुनने के बाद ही व्रत पूर्ण होता है। यहां पढ़ें एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत-

Ekdant sankashti chaturthi vrat katha: आज 16 मई 2025, शुक्रवार को एकदंत संकष्टी चतुर्थी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने व कथा सुनने से संकटों से रक्षा होती है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा पुण्य फलदायी होती है। यहां पढ़ें एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा-
एक समय की बात है कि सतयुग में सौ यज्ञ करने वाले पृथु नामक राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में दयादेव नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदों में निष्णात ब्राह्मण के चार पुत्र थे और सभी का विवाह हो गया था। एक दिन चारों बहुओं में सबसे बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी कि हे माता जी! मैं बचपन से ही संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूं, कृपा मुझे यहां भी चतुर्थी तिथि का व्रत करने की अनुमति दे दीजिए।
बहू की बात सुनकर सास ने कहा कि बहू, तुम सभी में बड़ी बहू हो, तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और न ही तुम मिक्षुणी हो। ऐसी स्थिति में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो। हे सौभाग्यवती! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का है और व्रत रखकर तुमको क्या करना है। लेकिन बहू नहीं मानी और व्रत करने लगी। कुछ समय बाद ही बहू ने एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया।
जैसे की सास को पता चला कि बहू अभी भी व्रत कर रही है, वह उसे व्रत छोड़ने के लिए मजबूर करने लगी। ऐसा करने से भगवान गणेश नाराज हो गए। कुछ समय बाद बड़े पुत्र के बेटे का विवाह तय हो गया। विवाह के दिन वर का अपहरण हो गया। इस अनहोनी घटना से शादी के मंडप में खलबली मच गई। सभी लोग परेशान हो गए कि लड़का कहां चला गया? ऐसा खबर सुनकर उसकी मां अपनी सास से रो-रोकर कहने लगी, हे माताजी! आपने मेरे गणेश चतुर्थी का व्रत छुड़वा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप मेरा बेटा गायब हो गया है। अपनी बहू से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दयादेव और उसकी पत्नी बहुत दुखी हुए। साथ ही बहू भी दुखी हुई। पुत्र के लिए दुखी पुत्रवधू हर महीने संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।
अन्य पौराणिक कथा-
एक समय की बात है कि गणेश जी वेदज्ञ और दुर्बल ब्राह्मण का रूप धारण करते भिक्षा के लिए मधुरभाषिणी के घर आए। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी! मुझे भिक्षा स्वरूप इतना भोजन दो कि मेरी क्षुधा शांत हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस पुत्रवधू ने उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। भक्तिपूर्वक भोजन कराने के बाद वस्त्र आदि दान में दिए। कन्या की सेवा से संतुष्ट होकर ब्राह्मण ने कहा- हे कल्याणी! हम तुम पर प्रसन्न हैं, तुम अपनी इच्छा के अनुसार मुझसे वरदान मांग लो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हूं और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूं।
ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी- हे गणेश भगवान! अगर आप मुझे पर प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे पुत्र के दर्शन करा दीजिए। कन्या की बात सुनकर गणेश जी ने कहा कि हे सुंदर विचार वाली, जो तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पुत्र शीघ्र आएगा। कन्या को वरदान देने के बाद भगवान गणेश अंतर्ध्यान हो गए। कुछ समय बाद उसका पुत्र घर वापस आ गया। सभी बहुत प्रसन्न हुए और उसका विवाह हुआ। इस प्रकार ज्येष्ठ माह के चौथ सभी कामनाओं को पूर्ण करती है।