Nirjala Ekadashi Vrat : 6 या 7 जून, निर्जला एकादशी कब है? नोट कर लें डेट, पूजा-विधि से लेकर सबकुछ
निर्जला एकादशी व्रत को लेकर इस बार संशय बना हुआ था। दृग पंचांग के अनुसार स्मार्त यानि गृहस्थ लोग 6 जून शुक्रवार को व्रत रखेंगे और अगले दिन यानी 7 जून को पारण करेंगे। जबकि वैष्णव यानि साधु सन्यासी समाज के लोग 7 जून को व्रत करेंगे और 8 जून को व्रत का पारण करेंगे।

Nirjala Ekadashi Vrat : निर्जला एकादशी व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और जैसा कि नाम इसके नाम से पता चल रहा है, इसमें निर्जला व्रत रखने का विधान है। यह व्रत सबसे कठिन एकादशी में से एक माना जाता है, इसलिए इसके नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि व्रत खंडित न हो और व्रती को इसका पूरा फल प्राप्त हो सके। निर्जला एकादशी व्रत को लेकर इस बार संशय बना हुआ था। दृग पंचांग के अनुसार स्मार्त यानि गृहस्थ लोग 6 जून शुक्रवार को व्रत रखेंगे और अगले दिन यानी 7 जून को पारण करेंगे। जबकि वैष्णव यानि साधु सन्यासी समाज के लोग 7 जून को व्रत करेंगे और 8 जून को व्रत का पारण करेंगे।
निर्जला एकादशी पर व्रत का नियम का पालन करना है जरूरी एकादशी व्रतों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एकादशी होती है। इसे निर्जला-एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार ऐसी मान्यता है कि केवल निर्जला एकादशी व्रत करने मात्र से वर्ष भर की सभी 24 एकादशियों के व्रतों का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। अत: जो साधक वर्ष की समस्त एकादशियों का व्रत कर पाने असमर्थ हों, उन्हें निर्जला एकादशी अवश्य करना चाहिए। निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है।
हिन्दू पंचाग के अनुसार, वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। यह व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी अति महत्त्वपूर्ण है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित है। इस एकादशी का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। जो इस पवित्र एकादशी व्रत को करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। विशेष एकादशी के पूजन का है विशिष्ट नियम इस विशेष एकादशी के पूजन का विशिष्ट नियम भी है, जिसका अनुपालन बहुत जरूरी होता है। इस दिन अन्न का त्याग बहुत जरूरी है। इस दिन किसी भी प्रकार का अनाज पूरी तरह से वर्जित है। इसमें फलाहार भी मान्य नहीं है। व्रत के दौरान मन को शांत और शुद्ध रखना चाहिए। किसी के प्रति बुरे विचार नहीं लाने चाहिए और तीखा बोलने से बचना चाहिए। दिनभर कम बोलना चाहिए और हो सके तो मौन रहना चाहिए। दिन में सोने से बचना चाहिए। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और कथा सुनना चाहिए। इसके साथ ही इस तिथि पर रात में जागरण करना भी शुभ माना जाता है।
द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है लेकिन पारण से पहले जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देना और और पूजा करना जरूरी होता है। व्रत के दौरान क्रोध और लोभ जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहना सबसे जरूरी और अनिवार्य है, अन्यथा व्रत का लाभ नहीं मिलता। विधि पूर्वक व्रत करने का है विधान श्रद्धालु प्रात:काल सूर्योदय के समय स्नान के बाद विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना कर निर्जला एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। साधक और श्रद्धालुओं के लिए यह आवश्यक है कि वह पवित्रीकरण के लिए आचमन किए गए जल के अतिरिक्त अगले दिन सूर्योदय तक जल की बिन्दु तक ग्रहण न करें एवं अन्न व फलाहार का भी त्याग करें। इसके बाद अगले दिन द्वादशी तिथि में स्नान के बाद पुन: विष्णु पूजन कर किसी विप्र को जल से भरा कलश व यथोचित दक्षिणा भेंट करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण कर पारण करें।