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Vat Savitri vrat ki katha: आज वट सावित्री पूर्णिमा, यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा

Vat Savitri vat parrnima vrat ki katha: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों दिन करती हैं। अलग-अलग परंपराओं के अनुसार अलग-अलग जगहों पर वट सावित्री व्रत वट अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानTue, 10 June 2025 07:57 AM
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Vat Savitri vrat ki katha: आज वट सावित्री पूर्णिमा, यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों दिन करती हैं। अलग-अलग परंपराओं के अनुसार अलग-अलग जगहों पर वट सावित्री व्रत वट अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। दोनों में वट वृक्ष की ही पूजा की जाती है और सत्यवान सावित्री की कथा पढ़ी जाती है। महिलाएं पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसा कहा जाता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए पेड़ की उपासना करने से महिलाओं को सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। पहले इस साल 26 मई 2025 को वट सावित्री के व्रत को रखा जा चुका है। इसके बाद अब वट पूर्णिमा व्रत किया जाएगा। इस बार पूर्णिमा दो दिन है। 10 और 11 जून दोनों दिन पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा। पंचांग के मुताबिक इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होगी। इसका समापन 11 जून को दोपहर 1:13 मिनट पर है। ऐसे में वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून को रखा जा रहा है। यहां पढ़ें संपूर्ण कथा-एक समय मद देश में अश्वपति नाम का राजा था। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी के साथ सावित्री देवी का व्रत और पूजन किया और संतान होने का वर मांगा। इस पूजा के बाद उनके यहां सर्वगुण संपन्न कन्या हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री जब विवाह के योग्य हुई तो राजा ने उससे अपना वर चुनने को कहा। एक दिन महर्षि नारज और अशवपति वार्तालाप कर रहे थे, तभी सावित्री अपने वर का चयन करके लौटी। नारद जी ने वर के बारे में पूछा तो सावित्री ने बताया कि राजा द्यम्रुत्य सेन जिनका राज्य हर लिया गया था, वो अपनी पत्नि और पुत्र के साथ वन में भटक रहे थे, उनके पुत्र सत्यवान को मैनें अपने वर के तौर पर चुन लिया है। नारद जी ने ग्रहों की गणना करके बताया कि राजा तुम्हारी पुत्री ने सुयोग्य वर को चुना है। सत्यवान पुण्य धर्मात्ना और गुणी है। लेकिन उसमें एक भारी दोष है, वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। उन्होंने बताया कि जब सावित्री 12 वर्ष की होगी, तो सत्यवान मर जाएगा।

सावित्री ने आगे कहा-पिताजी अब मैं सत्यवान को अपना पति मान चुकी हूं। सावित्री ने सत्यवान की मत्यु का समय जान लिया।राजा ने सत्यवान के साथ सावित्री का विवाह कर दिया। वह वन में अपने सास ससुर की सेवा करते हुए रहने लगी। जब सावित्री 12 साल की हुई तो उसे नारद जी का वचन उसे परेशान करने लगा। वह उपवास करने लगी और पितरों का पूजन किया। वह रोज की तरह सत्यवान के साथ लकड़ियां काटने वन में गई।

सत्यवान जैसे ही पेड़ पर लकड़ी काटने गया, उसके सिर में पीड़ा होने लगी। वह नीचे आ गया और सावित्री ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। सावित्री का मन डर से कांप रहा था, तभी उसने सामने से यमराज को आते देखा। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर चल दिए और सावित्री भी पीछे-पीछे चल दी। यमराज ने उसे वापस जाने को कहा। लेकिन सावित्री ने कहा कि पत्नी की सार्थकता इसी में है कि वो पति की छाया की तरह सेवा करे। उसने कहा कि इनके पीछे जाना ही मेरा स्त्रीधर्म है। सावित्री के धर्मयुक्त वचनों को सुनकर यमराज प्रसन्न हो गए।

यमराज ने पीछे मुड़कर देखा और सावित्री से कहा-आगे मत बढ़ो, तुम्हें मुंह मांगा वरदान दे चुका हूं। यमराज ने कहा कि अपने पति के प्राणों के अलावा तुम कुछ भी वरदान मांग सकती हो। इस पर सावित्री ने कहा कि मुझे मेरे सास-ससुर की आंखों की ज्योति दे दो। इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और फिर यमराज के साथ चल दी। यमराज के समझाने पर बोली की पति के बिना नारी जीवन की कोई सार्थकता नहीं है। पति के साथ जाना ही मेरा कर्तव्य है। सावित्री की निष्ठा देखकर यमराज बोले तुम कुछ भी वर मांग लो, लेकिन यह विधि का विधान है। सावित्री ने कहा कि महाराज आप मुझे 100 पुत्रों की मां होने का वरदान दें। इस पर यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए।

इसके बाद यमराज ने सावित्री से कहा कि अब आगे मत बढ़ों, तुम्हें मुंहमागा वरदान दे चुका हूं। इस पर सावित्री ने कहा, आपने मुझे वरदान तो दे दिया लेकिन आप मुझे बताएं कि बिना पति के मैं 100 संतानों की मां कैसे बनूगी। मुझे मेरा पति वापस मिलना ही चाहिए। यमराज ने सावित्री की निष्ठा और पति भक्ति और शक्तिपूर्णवचनों के कारण सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।

इसके बाद सावित्री उसी वटवृक्ष के पास गई, उसकी परिक्रमा की और उसके पति के प्राण वापस आ गए हैं। उसके सास-ससुर की आंखे भी वापस आ गईं। यमराज के आशीर्वाद से सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी। जैसे सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा की वैसे सभी के पति के प्राणों की रक्षा हो और सभी का सुहाग अमर रहे। बोलो सत्यवान सावित्री की जय

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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