Challenges Faced by Waiter Community Economic Struggles and Social Stigma बोले औरंगाबाद : होटल में काम करने वाले बेहतर प्रशिक्षण और सम्मान चाहते हैं, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : होटल में काम करने वाले बेहतर प्रशिक्षण और सम्मान चाहते हैं

वेटर समाज के लोग मुख्य रूप से शादी-विवाह के सीजन पर निर्भर रहते हैं। साल में केवल 3-4 महीने काम मिलता है, जिससे आर्थिक तंगी और सामाजिक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादThu, 8 May 2025 11:55 PM
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 बोले औरंगाबाद : होटल में काम करने वाले बेहतर प्रशिक्षण और सम्मान चाहते हैं

वेटर समाज के लोग मुख्य रूप से दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं। शादी-विवाह का सीजन, उनके लिए आय का प्रमुख स्रोत होता है। यह भी कुछ महीनों का ही काम है। इस दौरान वे देर रात तक काम करते हैं लेकिन उनकी मेहनत का मोल अक्सर कम आंका जाता है। उन्होंने बताया कि शादी के सीजन में एक दिन की मजदूरी पांच सौ से आठ सौ रुपये तक मिलती है, लेकिन ये काम साल में 3-4 महीने ही मिलता है। बाकी समय खाली बैठना पड़ता है। साल के बाकी महीनों में रोजगार का अभाव एक बड़ी समस्या है। कई वेटर शेष दिनों में छोटे स्तर के काम जैसे रेहड़ी-पटरी पर सामान बेचना, मजदूरी या खेतों में काम करना शुरू करते हैं, लेकिन ये काम भी अनिश्चित और कम आय वाले होते हैं।

नतीजतन, परिवार का पालन-पोषण करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है। आर्थिक तंगी के साथ-साथ वेटर समाज को सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना पड़ता है। समाज का एक बड़ा वर्ग उनकी सेवा को कमतर आंकता है और उन्हें हेय दृष्टि से देखता है। समारोहों में मेहमानों की ओर से अक्सर उन्हें खरी-खोटी सुननी पड़ती है। अपमानजनक टिप्पणियां भी सहनी पड़ती हैं। वेटरों ने कहा कि हम मेहनत से मेहमानों की सेवा करते हैं लेकिन कई बार लोग हमें नौकर समझकर डांटते हैं। कुछ लोग तो ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे हम इंसान ही नहीं हों। यह सामाजिक तिरस्कार न केवल उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, बल्कि उनके बच्चों पर भी मनोवैज्ञानिक असर डालता है, जो अपने माता-पिता के पेशे को लेकर हीन भावना महसूस करने लगते हैं। वेटर समाज के अधिकांश लोग आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते। सीमित आय और अनिश्चित रोजगार के कारण बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय कम उम्र में ही काम पर लगाना पड़ता है। इससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह समुदाय गरीबी और अशिक्षा के चक्र में फंसा रहता है। कुछ परिवार अपने बच्चों को इस पेशे से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं लेकिन संसाधनों की कमी और सामाजिक समर्थन के अभाव में उनके प्रयास अधूरे रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि उनके बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन अवसरों का अभाव उन्हें पीछे धकेल देता है। अगर इन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण मिले, तो ये समाज में बेहतर योगदान दे सकते हैं। सरकारी योजनाएं और कल्याणकारी कार्यक्रम, जो कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए बनाए गए हैं, वेटर समाज तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाते। ज्यादातर वेटर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जहां न तो उनके पास कोई स्थायी रोजगार है और न ही सामाजिक सुरक्षा। न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य बीमा या पेंशन जैसी सुविधाएं उनके लिए सपना ही हैं। कई वेटरों को सरकारी योजनाओं की जानकारी ही नहीं होती और जो जानते हैं, वे जटिल प्रक्रियाओं के कारण उनसे वंचित रह जाते हैं। वेटर समाज की समस्याओं का समाधान के लिए आर्थिक सहायता के साथ-साथ सामाजिक, शैक्षिक और नीतिगत स्तर पर व्यापक बदलाव की जरूरत है। उनके लिए कौशल विकास कार्यक्रम शुरू हों तो वे खानपान उद्योग, आतिथ्य क्षेत्र या अन्य पेशों में बेहतर अवसर पा सकते हैं। समाज में वेटरों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता बढ़ाने की भी जरूरत है। वेटरों के लिए न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं लागू की जानी चाहिए। उनके बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा, छात्रवृत्ति और व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकारी योजनाओं की नहीं मिल पाती है जानकारी वेटर समाज के लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी भी नहीं मिल पाती है। गांव की बस्तियों में रहने वाला वेटर समाज सरकारी योजनाओं के लाभ से महरूम है। जानकारी के अभाव और जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण इस समुदाय के लोग उन योजनाओं से वंचित रह जाते हैं, जो उनकी जिंदगी बदल सकती हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं की जानकारी वेटर समाज तक पहुंच ही नहीं पाती। अधिकांश वेटरों ने बताया कि उन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। समारोह में ड्यूटी के बाद उन्हें अपनी नींद पूरी करने की चिंता सताती रहती है। इसके अलावा उन्हें घरेलू काम भी होता है। उन्हें कभी फुर्सत ही नहीं मिलती है कि कार्यालय जाए। यदि वे जाते भी है तो उनसे बात करने को कोई तैयार नहीं होता है। वे पढ़े-लिखे नहीं होते हैं इसलिए योजनाओं को समझ भी नहीं पाते हैं। योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए उन्हें सहायता की जरूरत है। सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए, अन्यथा समाज का यह वर्ग पुश्त दर पुश्त पिछड़ा ही रह जाएगा। उनके बाल बच्चों को न तो अच्छी शिक्षा मिल रही है और न ही अच्छा वातावरण, ताकि वे आगे बढ़ सके। कहने को तो स्कूल में सभी तरह की सुविधा उपलब्ध है पर बहुत तेरे वेटर के बच्चे स्कूल तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। गरीबी उन्हें इसी धंधे की आग में झोंक देती है। इनके विकास के लिए सरकार को विशेष योजना चलाने की जरूरत है। शिकायतें- 1. वेटरों को सीमित महीनों में ही काम मिलता है, जिससे साल भर उनकी आय अनिश्चित रहती है। इन्हें दैनिक मजदूरी मिलती है जो अक्सर इतनी कम होती है कि परिवार का भरण-पोषण मुश्किल होता है। 2. समाज में वेटरों को निम्न दर्जे का समझा जाता है और उपेक्षा की नजर से देखा जाता है। 3. कई बार उत्सवों में मेहमानों या आयोजकों से इन्हें खरी-खोटी सुननी पड़ती है। 4. शादी-विवाह जैसे आयोजनों पर निर्भर होने के कारण काम की कोई गारंटी नहीं होती। सुझाव- 1. वेटरों को ऑफ-सीजन में अन्य कौशल जैसे खानपान, आतिथ्य, या छोटे व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। 2. समाज में वेटरों के प्रति सम्मान और सहानुभूति बढ़ाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाए। 3. सरकार या आयोजकों द्वारा वेटरों के लिए न्यूनतम दैनिक मजदूरी निर्धारित की जाए। 3.वेटरों के लिए सहकारी समितियां बनाई जाएं जो साल भर काम की उपलब्धता सुनिश्चित करें। 4. वेटरों को कम ब्याज वाले ऋण और स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से जोड़ा जाए। हमारी भी सुनिए शादी का सीजन खत्म होने के बाद काम मिलना मुश्किल हो जाता है। परिवार का पेट पालने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। संतोष कुमार दिन भर मेहनत करने के बाद भी मजदूरी इतनी कम है कि बचत नहीं हो पाती। लोग हमें तुच्छ समझकर बात करते हैं, जो मन को दुखाता है। रंजन कुमार साल के सिर्फ चार महीने काम मिलता है, बाकी समय बेरोजगारी में कटता है। समाज में हमें कोई सम्मान नहीं मिलता और केवल तिरस्कार होता है। पिंटू कुमार मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी नहीं करते, फिर भी ताने सुनने पड़ते हैं। इस काम से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी पूरा नहीं हो पाता। दीपक गुप्ता काम के लिए हर बार अलग-अलग जगह भटकना पड़ता है, कोई स्थिरता नहीं। लोग हमें नौकर समझकर अपमानित करते हैं। पिंटू कुमार दी के सीजन में दिन-रात काम करते हैं, लेकिन पैसे बहुत कम मिलते हैं। बाकी महीनों में कुछ और काम मिले, तो शायद जिंदगी आसान हो। महेंद्र साव मेहनत से खाना परोसते हैं, लेकिन लोग हमें नीची नजर से देखते हैं। बेरोजगारी के दिनों में बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। मजदूरी लेने में दिक्कत होती है। रामू कुमार कई बार मेहमान गुस्सा निकालते हैं, जैसे हमारी कोई इज्जत ही न हो। इस काम से घर का खर्च चलाना बहुत मुश्किल है। इसमें भविष्य भी अंधकारमय है। पंकज कुमार सीजन में काम मिलता है, लेकिन बाकी समय खाली बैठना पड़ता है। समाज हमें सिर्फ मजदूर समझता है, इंसान नहीं। योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है। विजय कुमार दिन भर खड़े रहकर काम करने के बाद भी उचित मजदूरी नहीं मिलती। लोग हमें देखकर ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे हम कुछ हैं ही नहीं। प्रियोद कुमार शादी-विवाह में काम करने के बाद भी स्थायी आय का कोई साधन नहीं। अपमान सहना इस काम का हिस्सा बन गया है। गोलू कुमार सीजन के बाद काम नहीं मिलता, जिससे बच्चों की फीस भरना मुश्किल है। लोग हमें तिरस्कार से देखते हैं, जो आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है। पवन कुमार मेहनत का फल सिर्फ थोड़े पैसे हैं, जो महीने भर भी नहीं चलते। कई बार मेहमानों के गलत व्यवहार से मन टूट जाता है। दीपक कुमार साल के ज्यादातर दिन बेरोजगार रहते हैं, कोई दूसरा काम नहीं मिलता। समाज में हमें कोई महत्व नहीं दिया जाता। आमदनी बेहद कम होती है। विनोद कुमार दिन भर मेहनत के बाद भी परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं। लोग हमें नीच समझकर बात करते हैं, जो बहुत दुख देता है। रमेश कुमार काम सिर्फ कुछ महीनों का, बाकी समय खालीपन और चिंता में बीतता है। मेहमानों की डांट सुनकर लगता है, हमारी कोई कीमत नहीं। सनी कुमार इस काम से इतना कम कमाते हैं कि भविष्य की कोई योजना नहीं बना सकते। समाज का व्यवहार हमें हमेशा छोटा महसूस कराता है। संतोष कुमार सीजन में थकान और बाकी समय बेरोजगारी, दोनों से जूझना पड़ता है। लोग हमें सिर्फ नौकर समझते हैं, इंसान नहीं। मुन्ना कुमार मजदूरी इतनी कम है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाता। कई बार मेहमानों के ताने सुनकर मन रोने को करता है। राजू कुमार पैसे तो कम मिलते ही हैं, उचित सम्मान भी नहीं मिलता है। वर्ष के कुछ खास दिनों में ही काम मिलता है। बाकी दिन बेरोजगार होते हैं। आरजू कुमार वेटरों के कल्याण के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है। इनका ई-श्रम कार्ड बनाया जा सकता है, जो आकस्मिकता की स्थिति में उन्हें सहायता प्रदान करेगा। -रणविजय कुमार, श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी, कुटुंबा

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