मंझौल के सत्संग गुरुद्वारा का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर
सत्संग गुरुद्वारा मंझौल का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है। 16-17वीं शताब्दी में गुरु तेग बहादुर द्वारा स्थापित इस गुरुद्वारे की देखरेख लगातार घट रही है। स्थानीय लोगों ने जमीन पर अतिक्रमण किया और जमीन...

मंझौल, एक संवाददाता। सत्संग गुरुद्वारा मंझौल का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर पहुंचता जा रहा है। गुरुद्वारा का खपरैल का भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। लोगों के अनुसार सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर ने असम जाने के क्रम में 16-17वीं शताब्दी में मंझौल में सत्संग गुरुद्वारा की स्थापना की थी। गुरु तेग बहादुर की हत्या के बाद भी लाव लश्कर के साथ पंजाब से सिखों के समूह का आकर प्रतिवर्ष शब्द कीर्तन जारी रहा था। धीरे-धीरे पंजाब से सिखों का आना बंद हो गया। गुरु तेग बहादुर ने गुरुद्वारे की देखभाल के लिए गुरु ग्रंथी को नियुक्त किया था।
9 से 10 गुरु ग्रंथी ने गुरुद्वारा की देखरेख की। लोगों के अनुसार लगभग 40 बीघा जमीन गुरुद्वारे में लोगों ने दान में दी थी। गुरु ग्रंथी गुरुद्वारे की जमीन को लगातार बेचते रहे तथा शेष जमीन का स्थानीय लोगों ने अतिक्रमण कर लिया। बेगूसराय की पूर्व डीएम हरजोत कौर की पहल पर इस गुरुद्वारे की धरोहर गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र ग्रंथ को पंजाब ले जाकर किसी गुरुद्वारे में सुरक्षित रखा गयाई। सही ढंग से ध्यान देने पर सत्संग गुरुद्वारा मंझौल एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल बन सकता था। जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह महत्वपूर्ण धर्मस्थल अब अस्तित्व समाप्ति के दौर में पहुंच गया है।
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