Crop Rotation Benefits Farmers in Kaimur Enhance Soil Fertility with Reduced Fertilizer Use कैमूर के 35 सौ किसान फसल चक्र प्रणाली से कर रहे खेती, Bhabua Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsBhabua NewsCrop Rotation Benefits Farmers in Kaimur Enhance Soil Fertility with Reduced Fertilizer Use

कैमूर के 35 सौ किसान फसल चक्र प्रणाली से कर रहे खेती

कैमूर के किसान एक सीजन में ज्यादा खाद वाली फसल उगाने के बाद अगले सीजन में कम खाद वाली फसल उगाकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को मजबूत कर रहे हैं। लगभग 3500 किसान 15 हजार हेक्टेयर में फसल चक्र प्रणाली को...

Newswrap हिन्दुस्तान, भभुआWed, 23 April 2025 09:24 PM
share Share
Follow Us on
कैमूर के 35 सौ किसान फसल चक्र प्रणाली से कर रहे खेती

एक सीजन में ज्यादा खाद उपयोग वाली फसल उगाने के बाद अगले सीजन में कम खाद की जरूरतवाली फसल की कर रहे खेती फेर-बदलकर खेती करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति मजबूत होती है जिले के किसान 15 हजार हेक्टेयर में इस प्रणाली से कर रहे खेती (पड़ताल/पेज चार की लीड खबर) भभुआ, कार्यालय संवाददाता। कैमूर में जहां तापमान बढ़ रहा है, वहीं बारिश भी कम हो रही है। इससे फसल चक्र प्रणाली के प्रभावित होने की आशंका बढ़ रही है। यहां के अधिकतर किसान धान व गेहूं की खेती करते हैं। लेकिन, सब्जी, तेलहन व दलहन की भी खेती अच्छी होती है। मिट्टी उर्वरा शक्ति व उपज बढ़ाने के लिए जहां कुछ किसान हरी खाद की खेती कर रहे हैं, वहीं करीब 3500 किसान 15 हजार हेक्टेयर में फेर-बदलकर खेती कर रहे हैं। इसकी पुष्टि प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी शिवजी कुमार ने भी की है। उन्होंने बताया कि कैमूर के किसान 1.41 लाख हेक्टेयर में धान, 1.25 लाख हेक्टेयर में गेहूं, पांच हजार हेक्टेयर में उद्यान, आठ हजार हेक्टेयर दलहन व तेलहन की खेती करते हैं। जिला उद्यान पदाधिकारी डॉ. अभय कुमार गौरव ने बताया कि चांद, रामपुर, भभुआ, कुदरा, भगवानपुर में फल-फूल की खेती फसल चक्र विधि से खेती की जा रही है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ. अमीत कुमार सिंह कहते हैं कि अदल-बदलकर खेती करने को फसल चक्र कहते हैं। एक ही फसल लगातार एक ही खेत में लगाने से उखड़ा रोग लगता है। किसान राजधार सिंह व महेंद्र कुशवाहा कहते हैं वह फसल चक्र विधि को अपनाकर खेती करते हैं। यही कारण है कि उनके खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरकरार है और खाद की भी जरूरत कम पड़ती है। फसल चक्र फसलों में पोषण प्रबंधन की विधि के रूप में ही नहीं, बल्कि मृदा बांझपन, मृत मृदा और रुग्ण मृदाओं को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक विधि है, जिसे सभी किसानों को अपनाना चाहिए। किसान धर्मेंद्र मौर्य कहते हैं कि धान की फसल के लिए जब पानी का प्रबंध कम होता है, तब अगले सीजन में वह गेहूं की जगह कम पानी में उत्पादित होनेवाली फसल की खेती करते हैं। फसल चक्र की प्लानिंग में यह रखे ध्यान जिला कृषि पदाधिकारी बताते हैं कि प्राय: फसल चक्र एक से तीन वर्ष तक का तैयार किया जाता है। फसल चक्र की प्लानिंग करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि जिस क्षेत्र के लिए फसल चक्र तैयार किया जा रहा है, वहां की जलवायु, भूमि, बाजार की मांग कैसी है। इसके अलावा सिंचाई व यातायात सुविधा, किसान की घरेलू आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए फसल चक्र तैयार किया जाता है। फसल चक्र विधि से खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ किसान अंतरवर्ती विधि से भी खेती करते हैं, जिससे लाभ मिलता है। फसल चक्र अपनाते समय फसल का प्रभेद परिपक्वता अवस्था का ध्यान रखना होता है। 35 डिग्री से ज्यादा तापमान रहने पर क्षति कैमूर में अभी 35 डिग्री से ज्यादा तापमान रह रहा है। इससे मिट्टी के कार्बन को क्षति होती है। यह कार्बनडाईऑक्सड बनकर वायुमंडल में प्रवेश करता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन 0.5 प्रतिशत से कम है, तो मिट्टी का स्वास्थ्य सही नहीं माना जाता है। मिट्टी में जीवाष्प कम हो जाते हैं। सांप, घोघा, केचुआ, मकरा आदि मित्र कीट अधिक तापमान रहने पर मर जाते हैं, जिससे उर्वरा शक्ति को ह्रास होता है। सिंचाई का प्रबंध करें। हरी खाद या मूंग लगाकर उसकी फली को तोड़कर उसके ठंडल को मिट्टी में पलट दें। मूंग 55 दिनों में तैयार हो जाता है। कम व ज्यादा खाद की जरूरत अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद खाने वाली फसल बोने से दूसरी फसल को कम खाद देने की जरूरत पड़ती है। साथ ही पिछली फसल को दी गई खाद का सदुपयोग हो जाता है। उदाहरण के लिए आलू-प्याज, गन्ना-गेहूं, कपास-चना, मक्का-चना आदि। अधिक व कम जल वाली फसल अधिक जल की जरूरत वाली फसल के बाद कम पानी वाली फसल बोई जानी चाहिए। ऐसा करने से एक तो सिंचाई साधनों का अत्यधिक उपयोग नहीं करना पड़ेगा, दूसरे भूमि में लगातार अधिक पानी बना रहने से वायु संचार व जीवाणु क्रियाओं को बाधा रहती है, उससे भी बचा जा सकता है। उदाहरण के लिए धान-चना, धान-सरसो आदि। कोट कैमूर जिले के करीब 3500 किसान 15 हजार हेक्टेयर भूमि में फसल चक्र प्रणाली अपनाकर खेती कर रहे हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति को मजबूती मिल रही है। मित्र कीट भी संरक्षित रहते हैं और कार्बनडाइऑक्साइड कम निकलता है। शिवजी कुमार, प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी कोट कैमूर के चांद, रामपुर, भभुआ, कुदरा, भगवानपुर, रामगढ़ सहित अन्य प्रखंडों में किसान अदल-बदलकर सब्जी व फल की खेती कर रहे हैं। खरीफ व रबी सीजन में फेर-बदलकर खेती करनेवाले किसानों की संख्या में वृद्धि हो रही है। डॉ. अभय कुमार गौरव, जिला उद्यान पदाधिकारी कोट तापमान 35 डिग्री से ज्यादा रहने पर मिट्टी में कार्बन की क्षति होती है। मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन 0.5% से कम है, तो मिट्टी का स्वास्थ्य सही नहीं माना जाता है। सांप, घोघा, केचुआ, मकरा आदि मित्र कीट अधिक तापमान रहने पर मर जाते हैं। डॉ. अमीत कुमार सिंह, कृषि वैज्ञानिक, केविके फोटो- 23 अप्रैल भभुआ- 3 कैप्शन- भभुआ के राजेंद्र सरोवर बाईपास पथ में बुधवार को पत्तागोभी की फसल की कोढ़ाई करता किसान।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।