बोले जमुई: नृत्य-संगीत के कलाकारों को खल रही मंच की कमी
जमुई में नृत्य, संगीत और अन्य कलाओं का समृद्ध इतिहास है, लेकिन आज कलाकारों को उचित मंच और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी उपेक्षा और बदलती पीढ़ी की मानसिकता ने कला की जड़ों को कमजोर...
बोले जमुई: नृत्य-संगीत के कलाकारों को खल रही मंच की कमी
नृत्य-संगीत के कलाकारों को खल रही मंच की कमी
पौराणिक शहर जमुई में संगीत, साहित्य, लेखन, मूर्ति निर्माण, कुंभ कलाकारी, मिष्टान निर्माण और गायकी जैसे कितने की कलात्मक आयाम वर्षों पहले से रचे बसे हैं। पहली ये कलाएं जितनी समृद्ध थी आज नहीं। सरकारी उपेक्षा, नयी पीढ़ी की बदलती मानसिकता ने वर्षों पुराने कला की जड़ को कमजोर किया है। संसाधन के साथ कला प्रदर्शन का मौका नहीं मिलने के कारण इस क्षेत्र में युवा पीढ़ी की रूचि कम हो गयी है। जमुई में आर्थिक दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में बेहतर भविष्य नहीं होने के कारण कला की दुनिया की चमक फीकी पड़ी है।
2000 से अधिक लोग ले रहे ट्रेनिंग
01 भी सरकारी स्तर पर रंग मंच नहीं है जिला में
177 हाई स्कूल हैं जिले में
प्रस्तुति: मनोज तिवारी
जमुई धार्मिक पहलुओं के साथ ही वर्षों से कला की मजबूत विरासत रही है। गीत-संगीत के क्षेत्र में भी यहां का नाम है। लेकिन, आज स्थिति बहुत बदल चुकी है। कला अब अपनी पहचान खो रही है। आज भी युवा पीढ़ी और छोटे-बड़े बच्चे संगीत से लेकर नृत्य कला में तन-मन से लगे हैं। इस विधा से जुड़कर देश में नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन, जमुई में ही उन्हें उचित सुविधा,मौका और प्रोत्साहन नहीं मिलना बड़ा ही दुखद है। आज तक जमुई में कलात्मक प्रशिक्षण से जुड़े किसी भी राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना नहीं हुई है। ऐसी स्थिति में कलाकारों की प्रतिभाएं धूमिल हो रही है। बच्चों को प्रशिक्षित कर पुरानी पहचान को मजबूत बनाने में लगे ललित कला एकेडमी की निदेशक आभा कुमारी कहती हैं जमुई में सालों भर कुछ ना कुछ कार्यक्रम होते रहते हैं। लछुआड़ महोत्सव, जिला स्थापना दिवस , बिहार दिवस आदि होते हैं। इन महोस्तवों में गीत-संगीत व नृत्य के एक से बढ़कर एक कार्यक्रम होते हैं। इनमें स्थानीय नहीं दूसरे जिले के कलाकारों को मोटी रकम देने के साथ ही मंच दिया जाता है। इस में कार्यक्रम होता है। लेकिन, लोकल कलाकारों को मंच नहीं मिलता है। कलाकारों की प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर सुविधा मिलनी सबसे जरूरी है। वर्तमान पीढ़ी को आधुनिक युग में बदलाव की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। जमुई जैसे शहरों में गीत,संगीत या नृत्य के विद्वान यानि विशेषज्ञ गुरु की कमी है। संसाधनों की कमी के बीच अगर किसी तरह कुछ सीख लेते हैं तो आगे भविष्य संवारने के लिए उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है। किसी संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद तकनीकी बारिकी का ज्ञान नहीं हो पाता। डांस ट्रेनर कहते हैं जमुई में फिटनेस और शौक के लिए गीत-संगीत या नृत्य सीखना ठीक है। लेकिन, कॅरियर लेकर जमुई जैसे छोटे जगहों पर दिक्कत है। सरकार चाहे तो इस दिशा में कुछ किया जा सकता है। सरकार को भोजपुरी या हिन्दी फिल्मों को लेकर यहां के कलाकार प्रोत्साहित करने की जरूरत है। निदेशक या संगीत निदेशक के साथ विभाग समन्वय बनाकर प्रदर्शन के आधार पर कलाकारों को मौका दिलाने का अवसर तैयार करना चाहिए।
उपेक्षा के कारण भविष्य बढ़िया नहीं, सम्मान बेहद जरूरी
गीत-संगीत जैसी विधा को बढ़ावा और सम्मान सबसे जरूरी है। मंच मिले जहां सम्मान के साथ कुछ भविष्य की चिंता दूर हो। लेकिन, जमुई में कला के क्षेत्र की स्थिति अच्छी नहीं है। सरकारी उपेक्षा के कारण युवा पीढ़ी भी इस क्षेत्र में आने से परहेज कर रहे हैं। सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर में एक भी केंद्र नहीं है जहां बच्चे जाकर सीख सके।
इसलिए कुछ इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले जमुई से बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। जमुई में कुछ पुराने कलाकार और कुछ नई एकेडमी ने यह बीड़ा उठा रखा है। लेकिन, प्रतिभाओं को सम्मान नहीं मिलने के कारण जिस गति से इसका विकास होना चाहिए, नहीं हो रहा है। कला प्रेमी व साहित्यकार निजी संस्थान चलाने वाले शिक्षक कहते हैं कि जिला स्तर पर प्रतियोगिता के साथ-साथ बढ़िया प्रशिक्षक या कहें गुरु की जरूरत है। इसके अलावा जिलास्तर पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोकल कलाकारों को मौका देने की जरूरत है। मौका मिलेगा तभी तो नई पीढ़ी का रूझान इस ओर होगा। कलाकारों को समय-समय प्रोत्साहित करने की जरूरत है। जिलास्तरीय मंच पर सम्मान मिलने पर कला की खेती अच्छी होगी। इस दिशा में स्थानीय जनप्रतिनिधियों को समय-समय पर कला संस्कृति विभाग की मदद से कार्यक्रम कराने की जरूरत है।
प्रतियोगिताएं होगी तभी तो प्रतिभा को निखरने का मौका मिलेगा
शिकायतें
1.सरकारी उपेक्षा के कारण कलाकारों को बढ़ावा नहीं मिल रहा है। यह समस्या कलाकारों की प्रतिभा को कुंद कर रही है।
2. गीत-संगीत, नृत्य और वाद्य यंत्रों के क्षेत्र में एक से एक कलाकार हैं। पर सरकारी स्तर पर पहचान नहीं मिल रही है।
3. शहर में गीत-संगीत या नाट्य कलाकारों के लिए कोई मंच नहीं है। कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे।
4. गीत-संगीत सीखने के लिए जरूरी वाद्य यंत्र कीमती होते हैं। गरीब बच्चे इसे खरीद पाने में सक्षम नहीं है।
5. जिला स्थापना, बिहार दिवस , लछुआड़ महोत्सव पर स्थानीय कलाकारों को जिला प्रशासन नहीं लेते है।
सुझाव
1. सरकार को कोई बढ़िया योजना लाकर स्थानीय स्तर के कलाकारों का उत्थान करने की जरूरत है।
2. कला व संस्कृति विभाग की ओर से मेधा की खोज के पंचायत, प्रखंड से लेकर जिलास्तर पर प्रतियोगिता होनी चाहिए।
3. शहर में कलाकारों को कोई स्पेशल मंच होना चाहिए। आधुनिक सुविधाओं से लैस ऑडिटोरियम होना चाहिए।
4. सरकारी अनुदान पर कलाकारों को वाद्य यंत्र उपलब्ध कराने की जरूरत है।
5. जिला में जब भी सरकारी स्तर पर कोई महोत्सव हो तो स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता देनी होगी।
1 कलाकारों को यहां प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। आगे बढ़ाने की दिशा में सरकार की ओर से पहल नहीं की जा रही है। गरीब कलाकारों को अनुदानित दर पर वाद्य यंत्र मिलना चाहिए।
सीखा कुमारी
2 वाद्य यंत्रों की कमी से प्रतिभा निखर नहीं पा रही है। 2016 से नृत्य सीख रही हूं। जस्ट डांस एकेडमी नहीं होता तो सीखने के लिए यहां कोई संस्थान नहीं है। जमुई में ऑडिटोरियम की सुविधा नहीं है।
अपेक्षा
3 प्रदर्शन करने के लिए जिला में कोई मंच नहीं है। इस पर गंभीर होने की जरूरत है। गीत-संगीत के अलावा कई अन्य तरह के विधा भी इस क्षेत्र में है। यहां कलाकारों की पुछ नहीं है।
लक्की
4 सरकारी स्तर पर दूसरे जिला या प्रदेश के कलाकारों को मौका दिया जाता है। जिस तरह खेल के आधार पर सरकारी नौकरी मिलती है उसी तरह कलाकारों को उनकी प्रतिभा के आधार पर नौकरी मिलनी चाहिए।
अंजनी कुमारी
5 कलाकारों को मंच पर कम पैसे में काम करने की जगह अच्छी नौकरी मिल पाएगी। कला को कद्रदान की जरूरत होती है। पहले के कुछ कलाकार हैं, लेकिन मंच नहीं मिल पा रहा है।
प्रियांशी कुमारी
6 आज पश्चिमी सभ्यता की नृत्य शैली हावी होती जा रही है। बच्चों में भारतीय शैली के प्रति रुझान कम रहा है। ऐसा सरकार की ओर से बढ़ावा नहीं दिए जाने के कारण हो रहा है। सरकार को गंभीरता से इस पर विचार करने की जरूरत है।
अर्पणा कुमारी
7 अगर कलाकार को मंच मिले जाहिर सी बात है आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी। प्लेटफार्म के अभाव में कलाकारों की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ नहीं पा रही है। उड़ीसा या अन्य प्रदेशों की तरह मौका मिलना चाहिए।
हर्षिता कुमारी
8 जमुई में कलाकारों की कमी नहीं है। लेकिन,आज कला जिस मुकाम पर पहुंच है उसके अनुसार यहां प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है। सरकार को बड़े शहरों की तरह जमुई में भी रंगमंच की व्यवस्था करनी चाहिए।
अनुषा कुमारी
9 संगीत वह विधा है जो किसी की जिंदगी बदल सकती है। यहां सरकारी स्तर पर ट्रेंड बच्चों को मंच नहीं मिल रहा है। जिला स्तर पर गायन से लेकर नृत्य को लेकर प्रतियोगिता होनी चाहिए।
रूबी कुमारी
10 विद्यालय अवधि में जिलास्तरीय प्रतियोगिता हो। उसी वक्त कला में रूचि लेने वाले और प्रतिभा की पहचान हो जाएगी। इसके बाद अच्छे गुरु से प्रशिक्षित कर बड़े शहरों में मौका उपलब्ध हो।
स्वेता सुमन
11 कलाकारों का सबसे जरूरी चीज मंच है। मंच नहीं तो प्रतिभा कुंद हो जाती है। जमुई में प्रतिभा की कमी नहीं है। लेकिन, बढ़िया मंच नहीं मिलने के कारण या तो वह उसका प्रदर्शन नहीं हो या प्रतिभा कुंद हो जा रही है।
आरोही
12 जिले की पहचान पुराने जमाने से बनी है। नए जमाने में भी यहां के कुछ लोग कम से कदम मिलाकर आगे बढ़ तो रहे हैं,लेकिन उन्हें सहयोग, सहायता,प्रोत्साहन,उचित प्लेटफार्म और सही प्रशिक्षण देने की दिशा में प्रयास किया जाना बहुत जरूरी है।
अतिथि
13 इलाहाबाद से संगीत की शिक्षा ली है। जमुई में आकर बच्चों को सीखा रहा हूं। लेकिन जमुई जैसे बड़े और प्राचीन शहर होते हुए यहां कलाकारों के मंच की कमी है। वर्तमान में यहां संगीत व नृत्य की स्थिति अच्छी नहीं है।
प्रेरणा कुमारी
14 लगातार गीत-संगीत व नृत्य की दुनिया में अपनी पहचान खोता जा रहा है। कलाकारों को उपेक्षा व बढ़िया मंच नहीं मिलने के कारण प्रतिभा कुंद हो रही है। जिला प्रशासन की ओर से आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भी स्थानीय कलाकारों को मौका नहीं दिया जा रहा है।
सिद्धी कुमारी
15 उपेक्षा के कारण आज महावीर की भूमि पर कला जैसी विधा का उत्थान नहीं हो पा रहा है। सरकार ही नहीं स्थानीय लोगों को इस दिशा में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। -
सृष्टि राज
16 बच्चियां नृत्य की अलग-अलग शैली तो सीख चुकी हैं,लेकिन उन्हें अपनी मेधा प्रदर्शन करने के लिए मंच नहीं मिल रहा है। सरकारी विद्यालयों में प्रारंभिक स्तर पर कला को प्राथमिकता देनी चाहिए।
दिशा ठाकुर
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