बोले कटिहार: मिले सस्ता लोन और सरकारी सहायता तो समस्याएं होंगी दूर
कटिहार और सीमांचल में मशरूम उत्पादन ने महिलाओं को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है। यह व्यवसाय कम लागत में अधिक मुनाफा देता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रहा है। हालांकि, किसानों को बीज की...
मशरूम उत्पादक किसानों की परेशानी प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, देवाशीष गुप्ता
कटिहार और सीमांचल का इलाका मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में अब राष्ट्रीय पहचान की ओर बढ़ रहा है। खास बात यह है कि इस कारोबार से बड़ी संख्या में महिलाएं भी जुड़ रही हैं, जो न केवल अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई रफ्तार दे रही हैं। मशरूम की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय बनता जा रहा है। इसके पोषण गुण और स्वास्थ्य लाभ इसे सुपर फूड की श्रेणी में रखते हैं। प्रोटीन का यह बेहतरीन स्रोत शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। हालांकि, किसानों के सामने पूंजी, बीज की गुणवत्ता और प्रशिक्षण जैसी कई चुनौतियां आज भी बनी हुई हैं। उत्पादकों का कहना है कि यदि बैंकों से सस्ता लोन और सरकारी सहायता मिले तो यह क्षेत्र न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाएगा बल्कि सीमांचल के ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार का मजबूत जरिया भी बन सकता है।
78 स्वयं सहायता समूह की महिलाएं मशरूम उत्पादन से जुड़ी
03 प्रखंडों की महिलाएं अपने घरों में कर रहे हैं मशरूम का उत्पादन
700 से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर चली
सीमांचल का कटिहार जिला अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान बनाने की ओर अग्रसर है। खास बात यह है कि इस खेती से गांव की महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़कर स्वरोजगार के सपने को साकार कर रही हैं। मशरूम उत्पादन न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुधार रहा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी नई जान फूंक रहा है। कटिहार की मशरूम उत्पादक और स्वयं सहायता समूह की संचालिका कुमारी प्रीति इसकी मिसाल हैं। प्रीति बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार वर्ष 2000 में मशरूम का स्वाद चखा, तो इसकी खेती का सपना देखना शुरू किया। 2015 में उन्होंने छोटे स्तर पर आत्मा एवं कृषि विज्ञान केंद्र की प्रेरणा से इसकी शुरुआत की और आज गांव की कई महिलाएं और युवा उनके मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय से जुड़ चुके हैं।
कम लागत में होता है अधिक लाभ
मशरूम की खेती का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी कम लागत और अधिक लाभ वाली विशेषता है। छोटे से कमरे में भी इसकी खेती संभव है। इसके पोषण गुण इसे ‘सुपर फूड की श्रेणी में शामिल करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, मशरूम में प्रोटीन, फाइबर और मिनरल्स प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के लिए पौष्टिक और स्वादिष्ट आहार का बेहतरीन विकल्प है।
मशरूम उत्पादकों के समक्ष चुनौतियां
हालांकि, मशरूम उत्पादकों के सामने अभी भी कुछ अहम चुनौतियां हैं। बीज उत्पादन के लिए स्थानीय स्तर पर उन्नत प्रयोगशाला का अभाव, किसानों को पंजाब, यूपी और बंगाल जैसे राज्यों पर निर्भर बना देता है। इसके अलावा पूंजी की कमी और बैंक से कर्ज लेना किसानों के लिए अब भी एक बड़ी बाधा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था बन सकता है सशक्त
कृषि विज्ञान केंद्र, कटिहार के वैज्ञानिक पंकज कुमार मानते हैं कि मशरूम उत्पादन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बना सकता है, लेकिन बैंकों और सरकारी संस्थाओं की मदद इसके विस्तार के लिए बेहद ज़रूरी है। आसान ऋण व्यवस्था, सरकारी प्रशिक्षण और सब्सिडी योजनाएं किसानों और महिलाओं के इस छोटे लेकिन लाभदायक व्यवसाय को बड़ा आकार दे सकती हैं। कटिहार के गांवों में मशरूम न केवल थाली की स्वादिष्ट डिश बन चुका है, बल्कि ग्रामीणों के सपनों और भविष्य का आधार भी बनता जा रहा है। सही सहयोग मिले तो यह सीमांचल की तस्वीर बदल सकता है।
सुझाव:
1. कटिहार और सीमांचल क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले मशरूम बीज (स्पॉन) उत्पादन के लिए सरकारी प्रयोगशालाएं खोली जाएं, ताकि किसानों की अन्य राज्यों पर निर्भरता खत्म हो।
2.कृषि विज्ञान केंद्र और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से नियमित मशरूम उत्पादन, संरक्षण और विपणन का व्यावहारिक प्रशिक्षण ग्रामीण महिलाओं और किसानों को दिया जाए।
3. लघु और सीमांत किसानों के लिए मशरूम उत्पादन के लिए बैंकों से लोन प्राप्त करने की प्रक्रिया सरल और प्रोत्साहन पूर्ण बनाई जाए।
4. मशरूम उत्पादकों के लिए सरकारी या सहकारी स्तर पर विपणन चैनल स्थापित किया जाए, जिससे उन्हें बाजार में उचित मूल्य और स्थायी ग्राहक मिल सकें।
5.मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार विशेष सब्सिडी और फसल बीमा योजना शुरू करे, ताकि किसानों को जोखिम से बचाया जा सके।
शिकायतें:
1. स्थानीय स्तर पर उन्नत प्रयोगशालाओं के अभाव में किसानों को बार-बार दूसरे राज्यों से महंगे दाम पर बीज मंगवाना पड़ता है।
2. बैंकों द्वारा मशरूम उत्पादकों को कृषि ऋण देने में अक्सर देरी और अस्वीकार करने की समस्या सामने आती है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
3. मशरूम की वैज्ञानिक खेती और प्रबंधन पर पर्याप्त सरकारी प्रशिक्षण नहीं मिल पाता, जिससे नवोदित किसान तकनीकी ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
4. स्थानीय मंडियों में मशरूम के लिए संगठित बाजार नहीं होने से किसानों को बिचौलियों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
5. अधिकांश छोटे किसान सरकारी सब्सिडी, प्रशिक्षण और सहायता योजनाओं से अनजान हैं, क्योंकि जागरूकता अभियान पर्याप्त नहीं हैं।
इनकी भी सुनिए
मशरूम की खेती से हमें घर बैठे आमदनी का रास्ता मिला है। पहले सोचा नहीं था कि इतनी कम जगह और कम लागत में इतना अच्छा मुनाफा होगा। सरकार अगर और मदद करे तो हम और विस्तार कर सकते हैं।
फोटो- 01 बेबी देवी
मशरूम की खेती ने हमारी आर्थिक हालत सुधारी है। अब महिलाएं खुद आत्मनिर्भर हो रही हैं। अगर बीज और प्रशिक्षण सही समय पर मिले तो हम ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं।
फोटो - 02 मीना देवी
मशरूम उत्पादन से गांव की महिलाओं को रोजगार मिला है। इसने हमारी पहचान बदली है। बैंक लोन आसान हो जाए तो हम अपने काम को और आगे बढ़ा सकते हैं।
फोटो - 03 रुक्मणि देवी
कम पूंजी में ज्यादा मुनाफा देने वाला मशरूम उत्पादन हम महिलाओं के लिए वरदान है। लेकिन सरकारी मदद और बाजार की कमी आज भी सबसे बड़ी परेशानी है।
फोटो - 04 आरती कुमारी
मशरूम की खेती से घर के खर्च चलाने में सहारा मिला है। अगर सरकार सस्ती दर पर लोन और अच्छे बीज उपलब्ध कराए तो यह रोजगार और मजबूत होगा।
फोटो - 05 लागमणि देवी
हमारे जैसे ग्रामीण इलाकों में मशरूम उत्पादन स्वरोजगार का अच्छा विकल्प है। सरकारी सहयोग और बीज की समस्या हल हो जाए तो और बेहतर संभावनाएं बनेंगी।
फोटो - 06 पूनम देवी
मशरूम उत्पादन से गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का रास्ता मिला है। लेकिन बाजार की स्थिरता और उचित मूल्य मिलने की गारंटी जरूरी है।
फोटो - 07 सुनीता देवी
मशरूम की खेती से हमें आर्थिक आज़ादी मिली है। अगर सरकार प्रशिक्षण शिविर नियमित कराए और लोन आसान बनाए तो यह रोजगार कई घरों तक पहुंचेगा।
फोटो - 08 संगीता देवी
गांव की महिलाओं के लिए मशरूम उत्पादन एक नई उम्मीद है। बीज और विपणन की दिक्कतें हैं, जो सरकार सुलझाए तो हम और अच्छा कर सकते हैं।
फोटो - 09 अनिता देवी
मशरूम खेती से महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। हमें सरकारी योजनाओं की जानकारी और बैंकों से सरल लोन की सुविधा की सख्त ज़रूरत है।
फोटो - 10 शकीना खातून
मशरूम उत्पादन ने हमारे सपनों को उड़ान दी है। अगर बाजार स्थिर हो और सरकारी मदद मिले तो यह खेती गांव के लिए क्रांति ला सकती है।
फोटो - 11 सोनी देवी
कम जमीन और कम खर्च में भी मशरूम से आय हो रही है। सरकारी सहायता और बाजार की सुविधा हो तो हम महिलाएं और आगे बढ़ेंगी।
फोटो - 12 प्रियंका गुप्ता
मशरूम की खेती ने घर बैठे रोजगार का रास्ता खोला है। लेकिन बीज की कमी और बैंक से ऋण मिलने में दिक्कतें हमेशा चिंता का कारण हैं।
फोटो - 13 उर्मिला देवी
स्वरोजगार के तौर पर मशरूम की खेती ने महिलाओं की जिंदगी में बदलाव लाया है। लेकिन सरकारी योजनाओं की जानकारी हर महिला तक पहुंचनी चाहिए।
फोटो - 14 कुमारी प्रीति
हम महिलाओं के लिए मशरूम उत्पादन आत्मनिर्भर बनने का सुनहरा जरिया है। सरकार अगर मार्केटिंग में मदद करे तो हम और ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
फोटो - 15 ममता देवी
मशरूम की खेती से घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है। अगर सही प्रशिक्षण और सरकारी बीज सप्लाई मिले तो इस काम में और तरक्की संभव है।
फोटो - 16 जुली देवी
कम लागत में मशरूम उत्पादन से महिलाओं को आत्मनिर्भरता मिली है। अगर सरकारी योजनाओं की पहुंच आसान हो तो इसका लाभ और बढ़ेगा।
फोटो - 17 माया देवी
मशरूम की खेती से ग्रामीण महिलाओं के सपनों को पंख मिले हैं। सही मार्गदर्शन और सरकारी सब्सिडी से यह व्यवसाय और रफ्तार पकड़ सकता है।
फोटो - 18 सबिता देवी
बोले जिम्मेदार
कटिहार में मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभाग हर संभव प्रयास कर रहा है। मशरूम की खेती ग्रामीण महिलाओं और किसानों के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम साबित हो रहा है। जल्द ही किसानों को प्रशिक्षण, गुणवत्ता वाले बीज और बाजार से जोड़ने के लिए योजनाएं लागू की जाएंगी। विभाग का लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस लाभकारी व्यवसाय से जुड़ें और आर्थिक रूप से सशक्त बनें। साथ ही बैंक ऋण प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए भी विभाग प्रयासरत है।
फोटो - 19 मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार
फोटो - 20 अपनी बात रखते हुए
फोटो - 21 मशरूम को सुखाती हुई महिलाएं
फोटो - 22 मशरूम उत्पादन में जुटी ग्रामीण महिलाएं
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