Satwan Festival in Bihar Celebrating Agricultural Culture with Sattu 14 अप्रैल को मनाया जाएगा लोकपर्व विशुआ, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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14 अप्रैल को मनाया जाएगा लोकपर्व विशुआ

विशुआ पर्व में भगवान को अर्पित किया जाएगा सत्तू विशुआ पर्व को लेकर बाजारों में

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरFri, 11 April 2025 04:56 AM
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14 अप्रैल को मनाया जाएगा  लोकपर्व विशुआ

भागलपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। सतुआन पर्व बिहार के प्रमुख लोक पर्वों में से एक है, अंग क्षेत्र में यह पर्व विशुआ के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व सोमवार 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। यह पर्व रबी फसल के कटाई के बाद आता है, इसलिए यह कृषि संस्कृति का उत्सव भी है, जिसमें नए अन्न के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। इस पर्व पर ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष उत्साह देखा जाता है। पंडित पिंकू झा ने बताया कि इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है, जिससे खरमास की समाप्ति होती है और शुभ कार्यों का शुभारंभ होता है। पर्व में मिट्टी के घड़े में गंगाजल रखा जाता है, जिस पर आम के पल्लव, टिकोला आदि सजाए जाते हैं। फिर ईष्ट देवता की आराधना कर उन्हें सत्तू का भोग अर्पित किया जाता है, जिसे बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

उधर, गर्मी के बीच विशुआ पर्व को लेकर सत्तू की बिक्री में तेजी देखी जा रही है। परंपरागत सत्तू के साथ-साथ अब लोगों की पसंद को देखते हुए बाजार में कई तरह के फ्लेवर और मिश्रण वाले सत्तू भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दुकानदारों ने जानकारी दी कि ग्राहकों की मांग को देखते हुए चना, जौ, मकई, कुरथी जैसे सत्तू के साथ-साथ अब मल्टी ग्रेन सत्तू की बिक्री भी जोरों पर है। इसमें गेहूं, देसी चना, सफेद मटर, मक्का, मूंगफली, हरा चना, जीरा, काजू और हरी इलायची सहित पौष्टिक तत्वों को मिलाकर विशेष रूप से तैयार किया गया सत्तू लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है। सत्तू दुकानदार चंदन कुमार ने बताया कि आम दिनों में जहां 30 से 40 किलो प्रति दिन सत्तू की खपत होती है, वहीं गर्मियों में इसकी बिक्री दोगुनी हो जाती है। सिकंदरपुर पानी टंकी स्थित आटा मिल के कारोबारी संजीव कुमार चौरसिया ने बताया कि पहले लोग अपना अनाज देकर सत्तू तैयार करवाते थे, लेकिन अब लोग सीधे रेडीमेड सत्तू खरीदकर पर्व मना रहे हैं। पहले यह पर्व पारंपरिक रूप से मनाया जाता था, जिसमें सत्तू तैयार करने की प्रक्रिया भी त्योहार का हिस्सा होती थी। लेकिन अब समय और सुविधा की कमी के चलते लोग बाजार से बना-बनाया सत्तू ही ले रहे हैं।

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