Alert on Brain Fever Children Aged 1-15 Most Affected जिलास्तरीय टास्क फोर्स की बैठक में दिए कई अहम निर्देश, Buxar Hindi News - Hindustan
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जिलास्तरीय टास्क फोर्स की बैठक में दिए कई अहम निर्देश

बक्सर में मस्तिष्क ज्वर और एईएस के मामलों की रोकथाम के लिए जिला स्तरीय टास्क फोर्स की बैठक हुई। इस बीमारी से 1 से 15 वर्ष तक के बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। मस्तिष्क ज्वर के मामलों की संख्या अप्रैल...

Newswrap हिन्दुस्तान, बक्सरWed, 9 April 2025 10:47 PM
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जिलास्तरीय टास्क फोर्स की बैठक में दिए कई अहम निर्देश

रहे अलर्ट 01 से 15 वर्ष तक के बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं मस्तिष्क ज्वर से मस्तिष्क ज्वर के ज्यादातर मामले अप्रैल से नवंबर माह के बीच होते हैं बक्सर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। कलेक्ट्रेट परिसर स्थित कार्यालय कक्ष में बुधवार को वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम अंतर्गत एईएस नियंत्रण व समुचित प्रबंधन के लिए जिला स्तरीय टास्क फोर्स की बैठक की गई। अध्यक्षता जिला स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष सह डीएम अंशुल अग्रवाल ने किया। बैठक का उद्देश्य समुदाय स्तर पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों में मस्तिष्क ज्वर, एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) के मामले की रोकथाम, प्रबंधन के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करना है। इस दौरान मस्तिष्क ज्वर यानी एईएस, जापानी इन्सेफलाइटिस, दिमागी बुखार व चमकी बुखार के संबंध बताया गया कि ये वैसी बीमारियों का समूह है, जिसके कारण ज्ञात और अज्ञात दोनों है। लेकिन इनका प्रारंभिक लक्षण एक समान हैं। मस्तिष्क ज्वर में के दौरान चमकी, बेहोशी, बात करने में असमर्थता, भ्रम की स्थिति इत्यादि जैसे लक्षण होते है। मस्तिष्क ज्वर से 01 से 15 वर्ष तक के बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं। मस्तिष्क ज्वर के संक्रामक कारणों में विभिन्न वायरस, विषाणु-जापानी इंसेफलाइटिस, खसरा, गलसुआ, चेचक छोटी माता इत्यादि है। बताया कि राज्य में मस्तिष्क ज्वर के ज्यादातर मामले अप्रैल से नवंबर माह के बीच होते हैं। यह 15 वर्ष तक के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है साथ ही इससे संबंधित मृत्यु दर 20-30 प्रतिशत है। इस उम्र के ऐसे कुपोषित बच्चें जो धान के खेत के आसपास रहते है, वैसे बच्चे जो जलीय पक्षी जैसे सारस, बगुला, बत्तख के संपर्क में रहते है, जो गांव में सूअरबाड़ों के नजदीक रहते है, जो बिना भरपेट भोजन किये रात में सो जाते है, या गर्मी में बिना खाना पानी की परवाह किये धूप में खेलते है, या फिर जो कच्चे या अधपके हुए लीची का सेवन करते है। ऐसे बच्चों में इस बीमारी के होने की संभावना अधिक होती है।

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