भारत भूमि के कण-कण में समाहित है सनातन धर्म
बक्सर में एक संवाददाता ने बताया कि जब राजनीति, धर्मनीति और समाजनीति दिशाहीन होती है, तब देश गुलाम बन जाता है। मानव स्वार्थ के प्रभाव में आकर सिद्धांतविहीन राजनीति का निर्माण होता है। भारत को सनातन...

बक्सर, निज संवाददाता। कोई भी देश तब गुलाम होता है। जब राजनीति, धर्मनीति एवं समाजनीति दिशाहीन हो जाती है। इसका मूल कारण की प्रबलता है। जब मानव स्वार्थ के वशीभूत हो जाता है तब वह महादानव बन जाता है। नतीजतन, सिद्धांतविहीन राजनीति, शास्त्रविहीन धर्मनीति और संस्कारहीन समाज बन जाता है। व्यक्ति की सोच स्वयं तक ही सीमित होने से देश, धर्म और समाज का पतन प्रारंभ हो जाता है। श्रीमार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि भारत भूमिखंड नहीं है, अपितु यह सनातन धर्म की अखंड भूमि है। यहां के कण-कण में सनातन धर्म का निवास है। यहीं कारण है कि गंगा का जल पानी नहीं, तुलसी का पत्ता, पत्ता नहीं, शालिग्राम पत्थर नहीं है।
अपितु ये तीनों मुक्ति देने वाले ब्रह्मवस्तु हैं। परमात्मा द्रव्य हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण वेद शास्त्र पुराणों आदि में देखा जाता है। भारत में मरते हुए प्राणी के मुख में तुलसीदल, गंगाजल एवं शालिग्राम भगवान का जल डाला जाता है। यह वही पवित्र धरा देवी हैं। जिन्होंने जगत नियंता नारायण के वराह अवतार के समय भगवान वराह की प्रियतम भार्या बनीं और श्रीकृष्ण अवतार में द्वारकाधीश की भी भार्या सत्यभामा हुईं। यहां अनेक बार नारायण के विभिन्न अवतार हुए हैं। यही से संपूर्ण सृष्टि में धर्म की स्थापना होती है। ईश्वर परम जन्म लेकर हम सबसे विभिन्न रिश्तों को जोड़ते हैं और मानवीय संबंधों का प्रशिक्षण भी करते हैं। यहां की जाने वाली भक्ति नारायण को भी भक्त के अधीन कर देती है। अतः यहां के संतो विद्वानों एवं धर्म आचार्याओं की विशेष जिम्मेदारी है कि वे समाज में प्रवचन और आचरण से धर्म, संस्कार व सिद्धांत की शिक्षा देकर देश, धर्म एवं समाज की कल्याण के लिए रक्षा करें।
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