Historic Ranglal High School in Sherghati Faces Decline Once Students Rode Elephants to Attend शेरघाटी के रंगलाल हाइ स्कूल में हाथी पर चढ़कर पढ़ने आते थे बच्चे, Gaya Hindi News - Hindustan
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शेरघाटी के रंगलाल हाइ स्कूल में हाथी पर चढ़कर पढ़ने आते थे बच्चे

शेरघाटी के रंगलाल हाइ स्कूल में हाथी पर चढ़कर पढ़ने आते थे बच्चे गर्दिश का नमूना बन गया है शेरघाटी का ऐतिहासिक रंगलाल हाइ स्कूल 1914 में स्थापित हुआ था

Newswrap हिन्दुस्तान, गयाMon, 14 April 2025 09:53 PM
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शेरघाटी के रंगलाल हाइ स्कूल में हाथी पर चढ़कर पढ़ने आते थे बच्चे

शेरघाटी के रंगलाल हाइ स्कूल में हाथी पर चढ़कर पढ़ने आते थे बच्चे गर्दिश का नमूना बन गया है शेरघाटी का ऐतिहासिक रंगलाल हाइ स्कूल

1914 में स्थापित हुआ था रंगलाल हाइ स्कूल

2009 में शुरु हुई इंटरमीडिएट की पढ़ाई

विद्यालय में नहीं हैं भाषा, विज्ञान और गणित के शिक्षक

500 छात्रों के लिए हैं 13 शिक्षक

गौरव से गर्दिश तक

शेरघाटी, निज संवाददाता

एक समय छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए गौरव का कारण समझा जाने वाला शेरघाटी का ऐतिहासिक रंगलाल हाई स्कूल अब गर्दिश का नमूना बन गया है। अतीत की बात करें तो आजादी के पूर्व एक समय ऐसा भी था जब बड़े घरानों के छात्र हाथी पर सवार होकर यहां पढ़ने आते थे। निकट के नीमा गांव के रहने वाले प्रसिद्ध वकील डब्लु सिंह अपने पिता की जुबानी दुहराते हैं कि उनके पिता और गया कोर्ट के नामी वकील रहे शिवबचन सिंह, चाचा रामवचन सिंह, गांव के सरदार बेनी माधव सिंह, रामकृष्ण सिंह, रामलखन प्रसाद सिंह और आनंदी सिंह आदि हाथी पर सवार होकर पांच किमी दूर रंगलाल हाई स्कूल पढ़ने आते थे। उस समय परिवार के लोगों के आने जाने के लिए हाथी का ही इस्तेमाल किया जाता था। यह जमाना 1942 के आसपास का था। हाथीवान पीपल के पेड़ में हाथी को बांधकर दिन भर इंतजार करता था और शाम होने पर घर लौटता था। तब रामानुज पांडेय विद्यालय के प्रधान शिक्षक हुआ करते थे, जिनका कठोर अनुशासन बरतने के लिए जिले भर में नाम था। इस विद्यालय में छात्र, शिक्षक और फिर हेडमास्टर हुए रामाश्रय शर्मा कहते हैं कि पुराने दिनों में समृद्ध पुस्तकालय और उच्च क्वालिटी के लैब के साथ पढ़ने वाले छात्र भी होते थे, आठों घंटियां पढ़ाई होती थी। वर्ष 1914 में पहले हेडमास्टर हरिहर प्रसाद बनाए गए थे, जबकि रामानुज पांडेय और वेदनारायण सिंह की हेडमास्टरी वाले दिनों को स्कूल के स्वर्णकाल के रूप में देखा जाता है। आज स्थिति इसके ठीक विपरीत है। न पढ़ने वाले बच्चे हैं और न पढ़ाने वाले शिक्षक।

नौवीं दसवीं की पढ़ाई के लिए हैं सिर्फ दो शिक्षक

छात्रों की मानें तो आज की तारीख में नौवीं दसवीं कक्षा के छात्रों की पढ़ाई के लिए सिर्फ दो विषय क्रमश:गणित और संस्कृत के शिक्षक मौजूद हैं। विज्ञान, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों के लिए कोई शिक्षक नहीं हैं। इसी तरह इंटर की पढ़ाई के लिए इस स्कूल में गणित, भौतिकी, वनस्पतिशास्त्र, रसायन, उर्दू, राजनीति शास्त्र, भूगोल, मनोविज्ञान और समाजिक विज्ञान के लिए कोई शिक्षक नहीं हैं।

2009 में शुरु हुई थी इंटर की पढ़ाई

पांच सौ से अधिक छात्रों के लिए यहां केवल 13 शिक्षक हैं। वर्ष 2009 से इस स्कूल में इंटरमीडिएट कक्षा के छात्रों का दाखिला शुरु हुआ था। स्थानीय प्रधानाध्यापक अशोक सिंह कहते हैं कि शिक्षकों की कमी के बावजूद किसी तरह बच्चों की पढ़ाई की जा रही है।

1914 में हुई थी विद्यालय की स्थापना

बता दें कि वर्ष 1914 में शेरघाटी के भूपति परिवार के रंगलाल जी ने स्कूल, खेल मैदान और छात्रावास के लिए जमीन उपलब्ध करायी थी। वर्ष 2014 में शेरघाटी के तत्कालीन विधायक विनोद प्रसाद यादव की अगुवाई में विद्यालय का शताब्दी समारोह भी मनाया गया था। उस समय एक स्मारिका का भी प्रकाशन हुआ था। तब बड़ी बड़ी बातें की गई थीं, मगर इसके गौरव को वापस पाने के लिए कुछ नहीं किया गया।

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