वेतन के अभाव में वित्तरहित शिक्षा कर्मी पाई-पाई को मोहताज, अंतहीन इंतजार
पूर्वी चंपारण जिले के वित्तरहित शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मियों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। वेतन के अभाव में कर्मी कर्ज में डूबे हुए हैं। सरकारों ने आश्वासन तो दिए लेकिन...
पूर्वी चंपारण जिले के दो दर्जन के करीब वित्तरहित शिक्षण संस्थानों में कार्यरत रहे शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मियों की आर्थिक स्थिति वेतन के अभाव में चरमरा गई है। 1981 में वित्तरहित शिक्षा नीति के लागू होने के बाद इंटर कॉलेज खोलकर शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मियों की बहाली की गई। शासी निकाय या प्रबंधन समितियों के द्वारा बहाली तो कर दी गई लेकिन कार्यरत कर्मी सरकारी स्तर पर वेतन के लिए संघर्षरत रहे। प्रो रणजीत कुमार,प्रो फैयाज अहमद,डॉ (प्रो) राजेश्वर पांडेय ने बताया कि सरकारें बनती रहीं। आश्वासन मिलता रहा, लेकिन वित्तरहित शिक्षा नीति नहीं बदली। शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मी आर्थिक तंगी के बीच जीवन बसर करते रहे।
कर्ज में डूबे कर्मी परिवार की गाड़ी किसी तरह खींचते रहे। लेकिन सरकारें कान में तेल डाल इस समस्या से मुंह मोड़ती रही। वर्ष 2008 में अनुदान की व्यवस्था तो की गई लेकिन वह भी नाकाफी रही। डॉ. संतोष कुमार , प्रो. प्रभु भगत , प्रो मोहम्मद कैसर ने बताया कि समय पर अनुदान नहीं मिलने से कर्मी आर्थिक बोझ तले हमेशा दबे दिखे। बकाया अनुदान भुगतान के लिए परेशान रहे। प्रो. बालेश्वर प्रसाद जायसवाल ने बताया कि 44 साल पहले जो नियुक्त हुए उसमें 90 फीसद तो सेवानिवृत्त हो गए। पैसे के अभाव में कितने कर्मी असामयिक चल बसे, लेकिन सरकार ने न तो वेतनमान की व्यवस्था कर सकी और न इन अनुदानित शिक्षण संस्थानों का सरकारीकरण ही किया। इसके ऊपर से सरकार के द्वारा वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की जांच कराए जाने का सिलसिला शुरू हो गया। प्रो. मनोहर मिश्र ने बताया कि जांच के नाम पर संस्थाएं शोषण का शिकार होती रही। जांच के नाम पर हद को पार करते हुए कई वित्तरहित शिक्षण संस्थानों के कोड सस्पेंड कर दिए गए। बताया कि जो इंटर कॉलेज 44 साल पहले खुले उसका इंफ्रास्ट्रक्चर स्वयं के अनुसार प्रबंधन समितियों ने कराया ताकि कमजोर व गरीब बच्चों को बेहतर से शिक्षा मुहैया कराया जा सके। लेकिन बाद में सरकारी फरमान से नए अनुशंसित इंफ्रास्ट्रक्चर सहित अन्य आवश्यकताओं के नाम पर तीन सदस्यीय दल के द्वारा जांच का दौर शुरू हो गया। जांच तो हुई लेकिन न तो सरकारीकरण किया गया और न कर्मियों को अनुदान के बदले वेतनमान की व्यवस्था ही की गई। प्रो. पवन कुमार,प्रो. अभिमन्यु कुमार ने बताया कि कई इंटर कॉलेज का कोड निलंबित किया गया है। उसे बच्चों के हित में बहाल किया जाना चाहिए। जिन इंटर कॉलेज का अनुदान वर्षों से बकाया है उसे जल्द भुगतान के लिए पहल होनी चाहिए। अनुदान आवंटन की जो 50 लाख रुपए तक की सीमा तय है उसकी जगह जितनी राशि होती है उसके भुगतान की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रो. दिनेश चंद्र प्रसाद ने बताया कि रिटायर्ड शिक्षा कर्मियों को पेंशन की सुविधा मिलनी चाहिए। कई इंटर कॉलेज में जांच के बाद कला, विज्ञान या वाणिज्य संकाय में 384-384 छात्र संख्या को घटा कर 40-40 कर दिया गया है,उसे पूर्व की तरह रहने देने की जरूरत है। प्रो सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि इन वित्तरहित शिक्षण संस्थानों से हर साल हजारों बच्चे पास होकर विभिन्न निजी क्षेत्र व सरकारी विभाग में नौकरियां कर रहे हैं। गरीब व कमजोर तबके के बच्चे हर साल बेहतर अंक से पास भी कर रहे हैं। इसके बाद भी वित्तरहित शिक्षण संस्थानों की सूरत नहीं बदली। लिहाजा कार्यरत कर्मी आर्थिक तंगी से जूझने को विवश हैं।
बिहार बोर्ड ने कई वित्तरहित इंटर काॅलेजों में घटा दी सीटों की संख्या:
वित्त रहित इंटर कालेजों में छात्रों से प्राप्त शुल्क से शिक्षक व कर्मियों का मासिक भुगतान होता है। लेकिन बिहार बोर्ड के द्वारा दो साल पहले इन वित्त रहित शिक्षण संस्थानों की जांच 25 बिंदुओं पर कराई गई । जांच के बाद कई इंटर कालेजों में छात्रों की सीट संख्या घटाकर 40-40 संकाय वार कर दी गई। जबकि पहले मान्यताप्राप्त इन इंटर काॅलेजों में कला, विज्ञान और वाणिज्य संकाय में छात्र छात्राओं की संख्या संकायवार 384-384 निर्धारित थी। इससे इन संस्थानों को आर्थिक रूप से काफी क्षति हुई। सीट संख्या घटा देने से अब कार्यरत कर्मियों के मासिक भुगतान पर ही संकट खड़ा हो गया।
शिकायतें:
1. वित्तरहित शिक्षा नीति की समाप्ति नहीं होने से इंटर कालेजों में कार्यरत सैकड़ों शिक्षा कर्मी आर्थिक तंगी के शिकार हैं।
2. वित्तरहित शिक्षण संस्थानों के सरकारीकरण की मांग वर्षों से की जा रही है लेकिन शिक्षक व कर्मियों की आवाज नहीं सुनी गयी।
3. इंटर कालेजों से सैकड़ों शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इसके बाद भी उनको पेंशन की सुविधा नहीं मिलती।
4. वित्तरहित इंटर कालेजों का वर्षों से अनुदान राशि बकाया है। इसके कारण शिक्षक व कर्मी आर्थिक रूप से परेशान हैं।
5. इंटर काॅलेजों को 50 लाख तक अनुदान देने की व्यवस्था है। मानक से अधिक राशि होने के बावजूद भुगतान नहीं होता।
सुझाव:
1. वित्तरहित शिक्षा नीति को समाप्त कर वित्तसहित करने की जरूरत है। इससे कर्मियों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
2. वित्तरहित इंटर कालेजों के पास भूमि, भवन सहित इंफ्रास्ट्रक्चर भरपूर है। इसको लेकर सरकारीकरण होना चाहिए।
3. इंटर कालेजों में कार्यरत सैकड़ों शिक्षाकर्मियों को वेतनमान का लाभ नहीं मिला है। इसलिए इन्हें पेंशन की सुविधा मिलनी चाहिए।
4. वित्तरहित इंटर कालेजों का वर्षों से बकाया अनुदान राशि का एकमुश्त भुगतान की व्यवस्था होनी चाहिए।
5. वित्तरहित इंटर कालेजों का 50 लाख से अधिक जो राशि है उसे मिलनी चाहिए। इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए।
बोले जिम्मेदार:
वित्त रहित शिक्षा नीति सरकार के शिक्षा की दोहरी नीति का परिणाम है। वर्षों से वित्त रहित शिक्षण संस्थानों में काम करते हुए शिक्षक रिटायर भी हो गए। कई लोग असमय काल के गाल में समा गए। वे शिक्षकों की आवाज सरकार तक पहुंचाएंगे। वित्त रहित शिक्षकों का हक दिलाने के लिए वे पूरी कोशिश करेंगे। उन्होंने राज्य में दो प्रकार की शिक्षा व्यवस्था को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। वे वित्तरहित शिक्षकों के हक के लिए पूरा प्रयास करेंगे। महेश्वर सिंह, विधान पार्षद
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