रोज समस्याओं से हो रहीं दो-चार, न्याय की चौखट तक नहीं पहुंच पा रही गुहार
मुजफ्फरपुर की कामकाजी महिलाएं घरेलू हिंसा और शोषण का शिकार होकर भी न्याय की आवाज नहीं उठा पा रही हैं। जागरूकता की कमी और सरकारी सहयोग की कमी के कारण उन्हें कई दफ्तरों में दौड़ना पड़ता है। बसों में...
मुजफ्फरपुर। महिलाओं के हक में कई कानून होने के बाद भी जिले की कामकाजी महिलाएं समस्याओं से जूझ रही हैं। कहां फरियाद करें, इसकी जानकारी नहीं होने के कारण आवाज नहीं उठा पातीं। इनका कहना है कि घरेलू हिंसा, शोषण के मामलों में अगर कोई महिला न्याय पाने के लिए हिम्मत भी जुटाती है तो एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर में इतना दौड़ा दिया जाता है कि थक-हार कर इंसाफ की आस ही छोड़ देती है। हेल्पलाइन से लेकर वन स्टॉप सेंटर तक आज भी उनकी पहुंच बहुत कम है। बसों में छेड़खानी जैसी घटनाओं का सामना करना रोजमर्रा की परेशानी बन गई है।
इनकी अपेक्षा है कि दफ्तरों में महिलाओं की समस्याओं पर त्वरित कार्रवाई, जिले से प्रखंड तक पिंक बसों का परिचालन और जागरूकता कार्यक्रम पर जोर दिया जाए तो स्थिति में बदलाव मुमकिन है। जिले के ग्रामीण इलाकों की सैकड़ों कामकाजी महिलाएं घरेलू हिंसा, शोषण और प्रताड़ना का शिकार होने के बाद भी न्याय के लिए आवाज नहीं उठा पा रही हैं। मनरेगा मजदूरी से लेकर कला क्षेत्र से जुड़ीं इन महिलाओं ने बताया कि हाकिमों तक इनकी फरियाद नहीं पहुंच पाती है। इसकी वजह जागरूकता की कमी और अफसरों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाना है। बेली देवी, ममता कुमारी, अनुप्रिया ने कहा कि कई बार तो हमारा आवेदन तक नहीं लिया जाता है। आज भी गांव की सैकड़ों महिलाओं और युवतियों को दहेज के लिए प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है। इसके विरोध में हिम्मत जुटाकर अगर वे जिले में पहुंचती भी हैं तो एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में भेज दिया जाता है। कई सप्ताह तक वे चक्कर ही लगाती रह जाती हैं। इनमें से कई महिलाएं थक-हारकर इंसाफ की आस ही छोड़ दे रही हैं।
मुशहरी, कांटी, साहेबगंज समेत विभिन्न प्रखंडों की महिलाओं ने कहा कि कइयों को यह पता भी नहीं कि घरेलू हिंसा के विरोध में कहां गुहार लगाएं। सुमन ने बताया कि साहेबगंज की महिला को मारपीट कर ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। महिला जब सबसे पूछताछ कर कलेक्ट्रेट के हेल्पलाइन कार्यालय में पहुंची तो कहा गया कि यहां से कार्यालय कहीं और चला गया है और उसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी। दो दिन बाद पता चलने पर वहां गई तो कहा गया कि यह महिला थाने का मामला है। महिला थाना जाने पर कहा गया कि साहेबगंज थाने में जाईए, क्योंकि मारपीट वहीं हुई है। बाद में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव में आवेदन जमा कर लिया गया।
घर से निकाल दी जाती हैं महिलाएं, कहीं नहीं आसरा
संजू देवी, पूर्णिमा मिश्रा व अन्य महिलाओं ने कहा कि नारी सशक्तीकरण की योजनाएं महज कहने को हैं, जबकि हाल यह है कि आज भी महिलाओं को मारपीट कर घर से निकाल दिया जाता है। सरकारी स्तर पर ऐसा कोई ठिकाना नहीं, जहां ऐसी महिलाओं को आश्रय मिल सके। सीमा देवी, रागिनी देवी समेत अन्य महिलाओं ने कहा कि निर्भया कांड के बाद सुरक्षा के लिए कई तरह की योजनाओं की बात कही गई थी, मगर हमें ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। हमारी बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। स्कूल-कॉलेज के आसपास मनचलों पर पुलिस लगाम नहीं लगा पाती है।
सुरक्षा के कारण छूट जा रही बेटियों की पढ़ाई
कुढ़नी की नलिनी, पारू की रीना ने कहा कि महिला थाना हमारे गांवों में नहीं है। थाने में अगर हम इस तरह की फरियाद लेकर जाएं तो उस पर कोई ध्यान भी नहीं देता। हाल के दिनों में भी गांव की बेटी पर तेजाब डाल दिया गया। ऐसी घटनाओं को लेकर हमारा दिल दहला रहता है। अगर बच्चियां यह बताती हैं कि रास्ते में उन्हें कोई तंग करता है तो परिवार वाले सुरक्षा के भय से उसका स्कूल जाना ही छुड़ा देते हैं। महिलाओं को घर से लेकर बाहर तक सुरक्षा चाहिए।
मुद्दे ये भी :
1. सरकारी सुविधाएं पहुंच से दूर
सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शर्मा, निधि चंदन आदि कहती हैं कि यूं तो आज महिला समाज में कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं, लेकिन क्या महिला अपनी वास्तविक स्वायत्तता को प्राप्त कर चुकी हैं। यह यक्ष प्रश्न है। आज महिलाओं के लिए सरकार जो रोजगारपरक प्रशिक्षण मुहैया करा रही है, वह जमीन पर कितना कारगर है, इसकी समीक्षा होनी चाहिए। आज गांव की गरीब महिलाएं अपनी आजीविका के लिए फैक्ट्रियों में काम करती हैं, लेकिन वहां पर उनकी सुरक्षा का मुद्दा काफी गंभीर है। उनकी सुरक्षा के लिए सकारात्मक पहल की जानी चाहिए। सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण समेत अन्य सुविधाएं आज भी ग्रामीण महिलाओं की पहुंच से कोसों दूर है।
2. महिलाओं के लिए हो पिंक बस
नेहा कुमारी, मुस्कान केसरी, सुमन कुमारी आदि का कहना है कि महिलाओं की प्रमुख समस्याओं में यात्रा के दौरान छेड़खानी की घटनाएं भी हैं। कई बार यह दुष्कर्म और बेटियों की हत्या तक की घटनाओं का रूप ले लेती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि महिलाओं के लिए पिंक बसों का परिचालन कराया जाए, जो शहर से लेकर प्रखंडों तक के लिए सुरक्षित यातायात के साधन बन सकें। बसों के अलावा ऑटो और ई-रिक्शा में भी अक्सर महिलाओं और युवतियों के साथ छेड़खानी की घटनाएं होती रहती हैं। इसपर पुलिस प्रशासन को अंकुश लगाना चाहिए। हर चौक-चौराहे पर नियमित रूप से पुलिस का गश्ती दल मौजूद रहे, जो शिकायत पर तुरंत कार्रवाई करे।
3. तय हो महिलाओं का मेहनताना
संगीता पटेल व अन्य का कहना है कि महिलाओं के काम और वेतन को लेकर नियम होना चाहिए। फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं से 12 घंटे की जगह 8 घंटे का कार्य कराया जाए। घरेलू कामगार महिलाओं को उचित पारिश्रमिक तय किया जाए, जिससे घर में चौका-बर्तन करने वाली महिलाएं सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकें। जो महिलाएं ऑटो चलाती हैं या अपना व्यापार करना चाहती हैं, उन्हें इसे सही तरीके से करने को प्रशिक्षण दिया जाए। इसमें खानापूर्ति न हो। ग्रामीण महिलाओं को विशेष रूप से रोजगार से जोड़ने का कार्यक्रम होना चाहिए। इसके अलावा विधवा महिलाओं की पेंशन 400 से बढ़ाकर 2000 रुपए की जाए, ताकि सही से उनका जीवनयापन हो सके।
बोले जिम्मेदार
महिलाओं की मदद के लिए हेल्पलाइन, वन स्टॉप सेंटर बनाए गए हैं। थानों में महिला हेल्प डेस्क भी है। समस्याओं पर त्वरित सुनवाई करनी है। अलग-अलग तरह की समस्याओं का समाधान संबंधित स्तर पर कराया जाता है। इसके बाद भी अगर महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत होती है तो वे आकर कार्यालय में संपर्क कर सकती हैं। जनता दरबार में भी ऐसे आवेदनों पर त्वरित कार्रवाई कराई जाती है। संबंधित अधिकारियों को निर्देश है कि किसी भी महिला की समस्या अनसुनी नहीं करनी है। ऐसा करने वाले पर कार्रवाई की जाएगी।
-सुब्रत कुमार सेन, डीएम
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