Crisis of Life-Giving Rivers Tilia Dhadhar and Dhanarjay in Hissua Drying Up बून्द-बून्द पानी को तरस रही हिसुआ की तिलैया नदी , Nawada Hindi News - Hindustan
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बून्द-बून्द पानी को तरस रही हिसुआ की तिलैया नदी

हिसुआ, संवाद सूत्र। वर्तमान समय में हिसुआ से होकर गुजरने वाली यहां की तीनों प्रमुख जीवनदायिनी नदियां तिलैया, ढाढर और धनार्जय की स्थिति बेहद खराब है।

Newswrap हिन्दुस्तान, नवादाMon, 16 June 2025 01:31 PM
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बून्द-बून्द पानी को तरस रही हिसुआ की तिलैया नदी

हिसुआ, संवाद सूत्र। वर्तमान समय में हिसुआ से होकर गुजरने वाली यहां की तीनों प्रमुख जीवनदायिनी नदियां तिलैया, ढाढर और धनार्जय की स्थिति बेहद खराब है। नदियों की वर्तमान दशा बद से बदतर दिखाई दे रही है। एक तरफ जहां सरकार भू-जल स्तर को बनाए रखने के लिए प्रत्येक वर्ष देश की बड़ी-बड़ी नदियों की साफ-सफाई को लेकर अरबों रुपए खर्च कर रही है तो दूसरी ओर देश की छोटी नदियों की स्थिति में सुधार को लेकर अपनी आंखें बंद कर बैठी है। इन नदियों में सालों भर पानी नहीं रहने के कारण अब इसका अतिक्रमण भी जमकर जारी है। जबकि रही-सही कसर बालू माफिया पूरी कर दे रहे हैं।

रोक के बावजूद अत्यधिक मात्रा में बालू का उठाव नदियों की सेहत पर भारी पड़ रही है। हाल हीं में बिहार सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे में सिर्फ हिसुआ की तिलैया नदी को बिलकुल सुखी नदी बताया गया, जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि हिसुआ के तिलैया नदी के साथ ही ढाढर और धनार्जय नदी भी बिलकुल सूखी हुई है। इन नदियों के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। हिसुआ होकर बहती है ढाढर, तिलैया और धनार्जय नदी हिसुआ होकर बहने वाली सभी तीनों नदियों का उद्गम स्थल झारखण्ड की पहाड़ियां है। यहां से निकलकर यह तीनों नदियां बहती हैं। झारखण्ड में होने वाली मानसून की बारिश पर ही इन नदियों में पानी आ पाती है अन्यथा यह सूखी रह जाती हैं। हिसुआ के पूर्वी छोर से होकर धनार्जय नदी बहती है तो शहर के पश्चिमी छोर से तिलैया और ढाढर नदी प्रवाहित होती है। ढाढर नदी नवादा और गया की सीमा निर्धारित करती है। जिसके कारण स्थानीय लोग इस नदी के किनारे के इलाके को सीमांचल के नाम से भी पुकारते हैं। नदी का पश्चिमी छोर गया जिले में तो पूर्वी छोर नवादा जिले में है। दोनों जिले के नदी किनारे बसे गांव के किसानों की खेती-बारी पूरी तरह से ढाढर नदी के पानी पर ही निर्भर करती है। सबसे प्रमुख बात यह है कि तीनों प्रमुख नदियां झारखण्ड की पहाड़ियों से निकलकर जिले के सिरदला, मेसकौर, नरहट और नारदीगंज से होते हुए दूसरे जिले की ओर बह कर जाती है। इन नदियों का लाभ ऐसे तमाम क्षेत्रों को भी प्राप्त होता है, जो नदियों के आसपास अवस्थित हैं। बून्द-बून्द पानी को तरस रही हिसुआ की तीनों नदियां वर्तमान समय में हिसुआ से होकर बहने वाली धनार्जय, तिलैया और ढाढर नदी अपना स्तित्व बचाने को लेकर संघर्ष करती दिख रही है। नदी में पानी नहीं आने के कारण उसमें जमे गाद और इसमें उगे झाड़-झंखाड़ ही अब इसकी पहचान बनकर रह गई है। हाल के कुछ वर्षों पूर्व तक कलकल कर बहती इन तीनों नदियों के पानी से हिसुआ सहित जिले के सिरदला, नरहट, मेसकौर और नारदीगंज प्रखंड के हजारों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती थी। इस नदी के आसपास के ग्रामीण इलाकों के खेतों में सालों भर हरियाली छाई रहती थी। किसान अपने खेतों से सालों भर पैदावार प्राप्त करते थे। लोग खुशहाल रहा करते थे। इलाके में वाटर लेयर भी लगातार स्थिर बना रहता था। लेकिन अचानक कुछ वर्षों पूर्व से नदियों से अंधाधुन बालू के उठाव के कारण अब यह तीनों नदी मृतप्राय होकर रह गई है। पानी नहीं होने के कारण नदी के दोनों ओर अतिक्रमण भी शुरू हो गया है। खासकर हिसुआ प्रखंड में तिलैया नदी के पश्चिमी छोर पर हाल के दिनों में जमकर अतिक्रमण हुआ है और देखते ही देखते कुछ वर्षों के भीतर सैकड़ों मकान बना दिया गया है। जबकि धनार्जय नदी में भी नरहट प्रखंड के सेराज नगर और बभनौर, गारो बिगहा सहित अन्य जगहों पर जमकर अतिक्रमण कर कई घर और टोले बसाए जा चुके हैं। यही हाल ढाढर नदी का भी है। नदी में पानी नहीं आने के कारण इसके भी दोनों छोर पर गया और नवादा जिले के भाग में कई गांव और टोले बस चुके हैं। स्थानीय बालू माफिया और अतिक्रमणकारियों के कारण नदी की वर्तमान स्थिति बद से बदतर होकर रह गई है। अब नदी में न तो पानी रहता है और न ही इसके आसपास के खेतों में हरियाली देखने को मिलती है। थोड़ी-बहुत हरियाली खेतों में अगर दिखती भी है तो वह किसानों के खुद के संसाधन के बलबूते है न कि नदी के पानी के सहारे। गाद और झाड़ से मुक्त हो नदियां तो कलकल का गूंजेगा फिर से स्वर स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर ईमानदारी से सरकार नदी की अविरल धारा को पूर्व की तरह वापस लाना चाहती है तो सबसे पहले नदी में जमे गाद और कास की झाड़ियों की सफाई कराने के साथ ही नदी से मात्रा के अनुरूप ही बालू का उठाव की व्यवस्था निर्धारित की जाए। साथ ही नदी के दोनों छोर पर हुए अतिक्रमण के खिलाफ कड़ी कार्यवाई करनी पड़ेगी ताकि गलत तत्वों के मंसूबों पर पानी फिर सके। जलवायु परिवर्तन से नदियां हो रही प्रभावित जलवायु परिवर्तन से हिसुआ की नदियों के अस्तित्व पर संकट छाई हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों के जल की गुणवत्ता और उसका पारिस्थितिकी तंत्र काफी प्रभावित हो रहा है। नदियों के जल स्तर भी सूख रहा है। इस परिवर्तन के कारण नदियां वर्तमान समय में अपने प्राकृतिक भूमिकाओं के निर्वहन में असफल साबित हो रही है। जिसके गंभीर परिणाम आने वाले समय में लोगों को भुगतना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण ही नदियां वर्तमान समय में सूखे की संकट से जूझ रही है। झारखण्ड सरकार की बेरुखी से अधर में तिलैया-ढाढर परियोजना तिलैया और ढाढर नदी आरम्भ से ही दीर्घकालिक लाभ देने वाली नदियां रही हैं। जबकि इसे और भी लाभकारी बनाने की योजना के तहत तिलैया-ढाढर सिंचाई परियोजना पर काम शुरू हुआ था, जो संयुक्त बिहार की परिकल्पना थी। इसका काफी हद तक क्रियान्वयन भी किया गया। इस परियोजना से बिहार के गया, नवादा और नालंदा जिले में सिंचाई के साथ-साथ बिजली उत्पादन की योजना बनाई गई थी। इसके लिए तिलैया डैम से बराज बनाकर नहर के माध्यम से इन जिलों तक असिंचित भूमि को सिंचित करने की योजना थी। जिसमें गया जिले के फतेहपुर तक योजना पर कार्य भी कराई गई। बराज निर्माण पर 20 करोड़ और गेट निर्माण पर 05 करोड़ की राशि भी खर्च की गई। नहर निर्माण को लेकर किसानों के किए गए 700 एकड़ भूमि अधिग्रहण में भी लगभग 20 करोड़ रुपए खर्च किए गए। लेकिन जब बिहार से कटकर झारखण्ड अलग राज्य बना, तब नवादा जिले की सीमा में कार्य शुरू होने के पूर्व ही इस परियोजना से झारखण्ड सरकार द्वारा हाथ खींच लेने तथा इसके लिए पानी और पैसे देने से इनकार के कारण यह अतिमहत्वपूर्ण परियोजना अधर में लटक गई। केंद्र सरकार ने वर्ष 1982 में नौवीं पंचवर्षीय योजना के तहत अधिसूचित तिलैया ढाढर परियोजना पर कार्य शुरू कराया था, जो हिसुआ के तिलैया और ढाढर नदी के समायोजन से संचालित होता, अब ठंडे बस्ते में पड़ा अंतिम सांसे गिन रहा है। ----------------------- तिलैया नदी है अति महत्वपूर्ण, रामायणकालीन है तमसा, कई साक्ष्य हैं मौजूद हिसुआ। हिसुआ होकर बहने वाली तिलैया नदी को लोग रामायणकालीन तमसा नदी के नाम से भी जानते और पुकारते हैं। हिसुआ के बगल में ही जिले के मेसकौर प्रखंड में आज भी इसके कई प्रमाण मौजूद हैं, जिससे लोगों की इस धारणा को काफी मजबूती मिलती है। कथनानुसार, मेसकौर प्रखंड में स्थित सीतामढ़ी को लोग माता सीता का निर्वासन स्थली और प्रभु श्रीराम के दोनों पुत्रों लव और कुश की जन्म भूमि मानते हैं, जिसका आज भी कई प्रमाण मौजूद है। लोग कहते हैं कि जब प्रभु श्रीराम ने माता सीता को निर्वासित कर उन्हें वन जाने का आदेश दिए था, उस वक्त माता सीता गर्भवती थीं। तब उन्हें महर्षि बाल्मीकि की छत्र छाया मिली थी। उनकी ही देखरेख में माता सीता ने नवादा के सीतामढ़ी स्थित जंगल में एक चट्टाननुमा गुफा में रहकर अपना समय बिताया था। आज भी वह चट्टाननुमा गुफा मौजूद है। जहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। प्रत्येक वर्ष यहां अगहन के पूर्णिमा के दिन ऐतिहासिक मेला भी लगता है। इसी गुफानुमा मंदिर के समीप ही धरती फटने का भी प्रमाण मौजूद है। जब माता सीता धरती की गोद में समाई थी। इसके साथ ही प्रभु श्रीराम द्वारा छोड़ा गया अश्वमेध का घोड़ा भी लव और कुश द्वारा बांधे जाने के साक्ष्य मौजूद हैं। जिस किलानुमा चट्टान में घोड़ा बांधा गया था, वह आज भी कायम है। इसके साथ ही सीतामढ़ी के बगल में ही स्थित बारत टाल में महर्षि बाल्मीकि की समाधि भी मौजूद है। इसके साथ ही अश्वमेध के घोड़ा बांधने के कारण आक्रोशवश पिता और पुत्र के बीच हुए युद्ध के भी कई प्रमाण और साक्ष्य इसकी सच्चाई को मजबूती से कायम करती है। हिसुआ के लोग आज भी लगातार कई वर्षों से कार्तिक महीने में देव उठनी एकादशी के दिन तमसा महोत्सव मनाते आ रहे हैं। जिसे राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने को लेकर हाल-फिलहाल ही स्थानीय सांसद विवेक ठाकुर द्वारा राजकीय स्तर पर काफी जोर-शोर से प्रयास किया गया है। ---------------- क्या कहते हैं लोग: वर्तमान समय में हिसुआ की तीनों प्रमुख नदियां मृतप्राय होकर रह गई हैं। नदियों की इस दुर्दशा के लिए सरकार के साथ ही लोग भी कुसूरवार हैं, जिन्होंने इसके अस्तित्व के साथ खिलवाड़ किया है। नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस पहल सरकार को करनी चाहिए। -प्रभा देवी, समाजिक कार्यकर्ता, हिसुआ। तिलैया और ढाढर नदी से जुड़ी एक अति महत्वाकांक्षी योजना तिलैया-ढाढर सिंचाई परियोजना से एक उम्मीद जगी जरूर थी, लेकिन राज्य बंटवारे के वक्त इस परियोजना पर दोनों राज्यों की सहमति नहीं लेना केंद्र सरकार की भारी चूक साबित हुई। इस पर कुछ बेहतर हो तो नदियों का लाभ मिले। -मुसाफिर कुशवाहा, किसान, सिंघौली, हिसुआ। नदियाँ जीवनदायिनी होती हैं। लेकिन बदलते दौर में चंद फायदे के लिए लोग इसका जमकर दोहन करते हैं। खासकर बालू माफियाओं पर नकेल कसने की सख्त आवश्यकता है। वर्तमान में हिसुआ की तिलैया, ढाढर और धनार्जय नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। कुछ ठोस किया जाए। -जानकी महतो , किसान, हिसुआ। नदियों में पानी नहीं रहने के कारण लोग इसका जमकर दोहन कर रहे हैं। खासकर तिलैया नदी के पश्चिमी छोर पर और धनार्जन नदी में गारो बीघा से लेकर सेराज नगर तक जमकर अतिक्रमण किया गया है। जिसे हटाने की शीघ्र पहल करनी चाहिए, ताकि नदियों का अस्तित्व बचा रह सके अन्यथा लोग इसका नामलेवा भी न बचेंगे। -अरविन्द सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता, हिसुआ। ------------------------ क्या कहते हैं जिम्मेदार: नदियों के अस्तित्व पर अत्यधिक बालू उठाव और जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभाव पड़ा है। तिलैया नदी के पश्चिमी छोर पर अतिक्रमण की जानकारी मिली है। जिसकी शीघ्र ही मापी करा करायी जाएगी और नदी किनारे से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाएगी। हिसुआ प्रखंड के इलाके में नदी किनारे जहां भी अतिक्रमण है, सूचना मिलने पर अविलम्ब कार्रवाई कर अतिक्रमण हटाया जाएगा। -डॉ.सुमन सौरभ, सीओ, हिसुआ।

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