धर्म बदलो या मार खाओ, जेलों में शरिया अदालतें चला रहे इस्लामी गिरोह; खौफ में जी रहे अधिकारी
- जो कैदी इन गिरोहों में शामिल होने या इस्लाम अपनाने से इनकार करते हैं, उन्हें हिंसक हमलों, धमकियों, या अलग-थलग यूनिट में भेजे जाने का खतरा रहता है। हालात बेकाबू हो गए हैं।

ब्रिटेन की हाई सिक्योरिटी जेलों में इस्लामी कट्टरपंथी गिरोहों ने आतंक का माहौल बना रखा है। एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार, ये गिरोह जेल कर्मचारियों को डराने-धमकाने के साथ-साथ गैर-मुस्लिम कैदियों को जबरन इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। जो कैदी इन गिरोहों की बात नहीं मानते, उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ता है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि जेल प्रशासन का नियंत्रण कमजोर पड़ता दिख रहा है।
जेलों में इस्लामवादी गिरोहों का दबदबा
ब्रिटिश मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिटेन की हाई सिक्योरिटी जेलों, जैसे कि एचएमपी फ्रैंकलैंड, व्हाइटमूर, और फुल सटन, में इस्लामी गिरोहों ने पूरे विंग पर कब्जा जमा लिया है। इस गिरोह को "ब्रदरहुड" के नाम से जाना जाता है और यह गैर-मुस्लिम कैदियों को "धर्म परिवर्तन करो या चोट खाओ" का अल्टीमेटम दे रहे हैं। जो कैदी इन गिरोहों में शामिल होने या इस्लाम अपनाने से इनकार करते हैं, उन्हें हिंसक हमलों, धमकियों, या अलग-थलग यूनिट में भेजे जाने का खतरा रहता है।
2022 में आतंकवाद संबंधी कानून के स्वतंत्र समीक्षक जोनाथन हॉल केसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जेल प्रशासन इस्लामी समूहों के प्रभाव को लंबे समय तक कम करके आंकता रहा है। उन्होंने कहा, "जेलों में धार्मिक आधार पर स्व-विभाजन ने हिंसक इस्लामवादी गतिविधियों के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की है।" कुछ जेलों में तो शरिया अदालतें स्थापित की गई हैं, जो इस्लामी कानून के उल्लंघन पर कोड़े मारने जैसी सजा देती हैं।
कैदियों पर दबाव और हिंसा
रिपोर्ट्स के अनुसार, नए कैदी, खासकर युवा और कमजोर, इन गिरोहों का आसान शिकार बन रहे हैं। नियमित रूप से इन जेलों का दौरा करने वाले एक वकील ने बताया, "व्हाइटमूर जेल में कैदी खुद ही व्यवस्था चला रहे हैं। अधिकांश कैदी मुस्लिम हैं, जिनमें से कई मूल रूप से ईसाई या गैर-धार्मिक थे, लेकिन सुरक्षा के लिए उन्होंने इस्लाम अपना लिया।" उन्होंने कहा कि यह कुछ ऐसा है जो विंग में पहुंचने के कुछ घंटों बाद ही हो जाता है। जेल में पहुंचते ही वे गिरोह में शामिल हो जाते हैं। कुछ मामलों में तो पूरी मंजिल पर मुस्लिम गिरोहों का वर्चस्व होता है।
विशेष रूप से, युवा अश्वेत कैदी, जो बाहर की दुनिया में भले ही प्रभावशाली हो रहे हों, लेकिन जेल के भीतर कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे में, वे इस्लामी गिरोहों में शामिल हो जाते हैं, जहां उन्हें हिंसक अपराधियों और आतंकवाद के लिए सजा काट रहे कैदियों का साथ मिलता है। ये गिरोह न केवल सुरक्षा का वादा करते हैं, बल्कि उन कैदियों को भी संरक्षण देते हैं, जिन्हें अन्य कैदी, जैसे कि बाल हत्यारे या यौन अपराधी, आमतौर पर निशाना बनाते हैं। उदाहरण के लिए, अपनी दस साल की बेटी सारा की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे उरफान शरीफ को फ्रैंकलैंड जेल में इस्लामी गिरोह द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है।
वकील ने बताया कि कुछ मुस्लिम कैदी अन्य गैर-मुस्लिम कैदियों या कर्मचारियों के साथ बिल्कुल भी बातचीत करने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने कहा कि इसके कारण अधिक मुस्लिम जेल अधिकारियों की भर्ती करने और जेल की आबादी को जातीय आधार पर विभाजित करने के प्रयास किए गए हैं। उन्होंने कहा, 'मुस्लिम गिरोहों का मुकाबला करने के लिए, अति दक्षिणपंथी गिरोहों की संख्या भी बढ़ रही है।'
जेल कर्मचारियों पर हमले
इस्लामी गिरोहों का आतंक केवल कैदियों तक सीमित नहीं है। हाल ही में, मैनचेस्टर एरेना बम विस्फोट (2017) के दोषी हाशेम अबेदी ने एचएमपी फ्रैंकलैंड में तीन जेल अधिकारियों पर घरेलू हथियारों और गर्म तेल से हमला किया, जिसमें दो अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए। इस घटना ने जेलों में बढ़ते खतरे को उजागर किया है।
जेल अधिकारियों का कहना है कि इस्लामी गिरोहों के प्रभाव को रोकने के लिए बनाए गए "सेपरेशन सेंटर्स" अब अप्रभावी हो चुके हैं। इन केंद्रों में केवल 28 जगहें हैं, लेकिन इनका उपयोग पूरी तरह नहीं हो रहा, क्योंकि कैदियों को वहां भेजने की प्रक्रिया जटिल है और मानवाधिकार कानूनों के उल्लंघन का डर रहता है।
एक अधिकारी ने बताया, 'हम उच्च मुस्लिम आबादी वाली कुछ जेलों में नस्लीय दंगों से बहुत दूर नहीं हैं - वहां बहुत तनावपूर्ण वातावरण हैं।' जेल अधिकारियों के संघ के अध्यक्ष मार्क फेयरहर्स्ट ने चेतावनी दी है कि फ्रैंकलैंड में चाकूबाजी के बाद, कर्मचारियों को अब अन्य जेलों में भी इसी तरह के हमलों का खतरा है।
डर के माहौल में जी रहे जेल कर्मचारी
हालात कुछ ऐसे हैं जो अग्रिम मोर्चे पर तैनात लोगों में तेजी से डर पैदा कर रहा है। खबरें तेजी से फैल गईं कि एक आतंकवादी ने फ्रैंकलैंड जेल अधिकारी पर हमला किया है। वर्तमान में श्रेणी ए जेल में कार्यरत एक जेल अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर मेल को बताया, "एक मुस्लिम कैदी मेरे पास आया और बोला, "बॉस, फ्रैंकलैंड में आपके एक साथी के साथ जो हुआ उसके बारे में बुरी खबर है"। लेकिन उसने अपने चेहरे पर बड़ी मुस्कान के साथ यह कहा।' उन्होंने आगे कहा, 'मैं ईमानदारी से कह सकता हूं कि अब मुझे काम पर आने में बहुत डर लगता है। मनोबल बहुत नीचे है और हम - जेल अधिकारी - अब ऐसा महसूस नहीं करते कि हम इनचार्ज हैं।' इस साल पहले ही अधिकारी पर दो बार हमला किया जा चुका है - दोनों बार सामान्य विंग्स में मुस्लिम कैदियों द्वारा ये हमला हुआ। उन्होंने कहा, 'जब मैं गुजर रहा था, तभी एक कैदी ने मुझे एक सेल में बुलाया - मैं अंदर नहीं गया, बल्कि दरवाजे पर खड़ा रहा और उसने मुझ पर एक कप मल फेंक दिया। एक अन्य अवसर पर मैं एक टकराव को सुलझाने की कोशिश कर रहा था और कैदी ने लगभग दो फीट की दूरी से मेरे मुंह में थूक दिया। इस तरह की चीजें अधिकांश जेलों में रोजाना होती हैं।' और उन्होंने कहा: 'एक कहावत चल रही है "धर्म परिवर्तन करो या चोट खाओ" - और यह बिल्कुल सही है।
प्रशासन की निष्क्रियता और डर
रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि जेल प्रशासन इस्लामवादी गिरोहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से हिचक रहा है। इसका एक बड़ा कारण है कर्मचारियों का नस्लवाद या इस्लामोफोबिया के आरोपों से डरना। जोनाथन हॉल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "जेल कर्मचारी इस्लामवादी विचारधारा को चुनौती देने में आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें सांस्कृतिक संवेदनशीलता का पालन करने का दबाव होता है।" पूर्व जेल गवर्नर इयान एचेसन की सिफारिश पर सेपरेशन सेंटर्स बनाए गए थे। उन्होंने कहा, "जेलों में ऐसी परिस्थितियां हैं, जहां कट्टरपंथ के सभी तत्व मौजूद हैं। ये गिरोह कमजोर कैदियों को अपनी विचारधारा की ओर आकर्षित करते हैं।"
मुस्लिम कैदियों की संख्या में वृद्धि
न्याय मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इंग्लैंड और वेल्स की जेलों में मुस्लिम कैदियों की संख्या 2002 में 5,500 से बढ़कर 2024 में लगभग 16,000 हो गई है, जो कुल जेल आबादी का 18% है। यह संख्या सामान्य आबादी में मुस्लिमों के अनुपात (6.5%) से कहीं अधिक है। इनमें से 99% कैदी गैर-आतंकवादी अपराधों के लिए सजा काट रहे हैं, लेकिन वे इस्लामवादी गिरोहों में शामिल होकर जेल के भीतर शक्ति हासिल कर रहे हैं।
सरकार पर दबाव
शैडो जस्टिस सेक्रेटरी रॉबर्ट जेनरिक ने इस स्थिति को "चिंताजनक" बताया और कहा कि इस्लामवादी गिरोहों को जेलों में "नियंत्रण" करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। मिनिस्ट्री ऑफ जस्टिस ने कहा कि वे कट्टरपंथियों को अलग करने और जेलों में हिंसा को कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पिछले साल, नस्लीय असमानता को दूर करने के लिए एक नया ढांचा शुरू किया गया था, जो कर्मचारियों के बल प्रयोग में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है।
ब्रिटेन की जेलों में इस्लामवादी गिरोहों का बढ़ता प्रभाव न केवल कैदियों और कर्मचारियों के लिए खतरा है, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस समस्या को तुरंत नहीं संभाला गया, तो ये गिरोह जेलों से बाहर निकलकर समाज में और अधिक हिंसा और कट्टरपंथ फैला सकते हैं। सरकार और जेल प्रशासन को इस चुनौती से निपटने के लिए सख्त और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
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