UK government murder prediction programme to identify people most likely to become killers कौन कर सकता है हत्या, पहले ही बता देगा ये टूल; विवादों में ब्रिटेन सरकार का ‘डरावना’ प्रोजेक्ट, International Hindi News - Hindustan
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कौन कर सकता है हत्या, पहले ही बता देगा ये टूल; विवादों में ब्रिटेन सरकार का ‘डरावना’ प्रोजेक्ट

  • यह परियोजना कई लोगों को 2002 की हॉलीवुड फिल्म माइनॉरिटी रिपोर्ट की याद दिलाती है, जिसमें भविष्यवक्ताओं की मदद से अपराध होने से पहले ही अपराधियों को पकड़ लिया जाता था।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, लंदनWed, 9 April 2025 10:37 AM
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कौन कर सकता है हत्या, पहले ही बता देगा ये टूल; विवादों में ब्रिटेन सरकार का ‘डरावना’ प्रोजेक्ट

यूनाइटेड किंगडम (यूके) की सरकार एक ऐसी तकनीक पर काम कर रही है, जो सुनने में किसी साइंस-फिक्शन फिल्म की कहानी जैसी लगती है। दरअसल ब्रिटेन का न्याय मंत्रालय ऐसा एल्गोरिदम विकसित कर रहा है, जो यह अनुमान लगा सके कि कौन से लोग भविष्य में हत्यारे बन सकते हैं। इस परियोजना को शुरू में "होमिसाइड प्रेडिक्शन प्रोजेक्ट" नाम दिया गया था, और यह यूके की पुलिस फोर्स से प्राप्त डेटा का इस्तेमाल करती है। अब इसका नाम बदलकर “शेयरिंग डाटा टू इम्प्रूव रिस्क असेसमेंट” कर दिया गया है। लेकिन इस तकनीक के उद्देश्य और इसके संभावित प्रभावों को लेकर विशेषज्ञों, नागरिक अधिकार समूहों और आम लोगों के बीच बहस छिड़ गई है। क्या यह अपराध को रोकने का एक क्रांतिकारी तरीका है, या फिर यह निजता और नैतिकता पर एक खतरनाक हमला है?

तकनीक का आधार और डेटा कलेक्शन पर बहस

इस परियोजना का संचालन न्याय मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है और इसे प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के कार्यकाल के दौरान शुरू किया गया था। न्याय मंत्रालय का दावा है कि यह उपकरण उन लोगों की पहचान करेगा, जो हत्या जैसे गंभीर अपराध करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं। इसके लिए यह टूल पुलिस डेटा का विश्लेषण करता है, जिसमें न केवल संदिग्धों की जानकारी शामिल है, बल्कि पीड़ितों और गवाहों के डेटा का भी उपयोग हो सकता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्रणाली में 1,00,000 से 5,00,000 लोगों का डेटा शामिल हो सकता है। इसमें संवेदनशील जानकारी भी शामिल हैं। इसे "विशेष श्रेणी का व्यक्तिगत डेटा" माना जाता है।

इस तकनीक का लक्ष्य है कि जोखिम वाले व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें निगरानी में रखा जाए या उनके व्यवहार में बदलाव लाने के लिए हस्तक्षेप किया जाए। सरकार का कहना है कि यह परियोजना अभी केवल शोध के लिए है और इसका व्यावहारिक उपयोग शुरू नहीं हुआ है। लेकिन सवाल यह है कि क्या डेटा का यह विशाल कलेक्शन और उसका विश्लेषण वास्तव में अपराध को रोक सकता है, या यह नागरिकों की निजता पर हमला है?

क्या है इस प्रोजेक्ट की कार्यप्रणाली?

स्टेटवॉच द्वारा प्राप्त सूचना के अधिकार (FOI) अनुरोधों के माध्यम से जो दस्तावेज सामने आए हैं, उनसे पता चलता है कि यह प्रोजेक्ट हजारों लोगों के डाटा का विश्लेषण कर रहा है – इनमें अपराध के पीड़ित, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी, आत्महत्या व आत्म-हानि की प्रवृत्ति, घरेलू हिंसा और विकलांगता जैसे संवेदनशील डाटा शामिल हैं। हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि केवल उन लोगों का डाटा उपयोग में लाया गया है जिनको कम से कम एक आपराधिक सजा मिल चुकी है, लेकिन दस्तावेजों के अनुसार डाटा-शेयरिंग समझौते में पीड़ितों और पुलिस से संपर्क करने वालों की जानकारी भी शामिल है।

डाटा में क्या-क्या शामिल है?

  • नाम, जन्म तिथि, लिंग और जातीयता
  • पुलिस राष्ट्रीय कंप्यूटर पर दर्ज यूनिक पहचान संख्या
  • पीड़ित के तौर पर पहली बार सामने आने की उम्र
  • मानसिक स्वास्थ्य, नशे की लत, आत्महत्या की प्रवृत्ति और विकलांगता से जुड़ी जानकारी

विशेषज्ञों की चिंताएं: पक्षपात और गलतियां

इस परियोजना की आलोचना करने वालों का कहना है कि यह तकनीक "चिंताजनक और डायस्टोपियन" है। स्टेटवॉच नामक संगठन की शोधकर्ता सोफिया लायल ने कहा, "बार-बार शोध से पता चलता है कि अपराध की भविष्यवाणी करने वाली एल्गोरिदम प्रणालियां स्वाभाविक रूप से त्रुटिपूर्ण होती हैं।" उनका मानना है कि यह मॉडल पुलिस और गृह कार्यालय के डेटा पर आधारित है, जो संस्थागत रूप से नस्लीय भेदभाव से प्रभावित है। इससे यह खतरा है कि यह तकनीक नस्लीय और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों के खिलाफ पक्षपात को और बढ़ाएगी।

किसी भी एल्गोरिदम का आधार डेटा होता है, और अगर डेटा में पहले से ही पक्षपात मौजूद है, तो परिणाम भी पक्षपाती होंगे। उदाहरण के लिए, यदि पुलिस का डेटा अल्पसंख्यक समुदायों या गरीब इलाकों में अधिक अपराध दर्ज करता है, तो यह उपकरण इन्हीं समूहों को अधिक जोखिम वाला मानेगा, भले ही वास्तविकता कुछ और हो। इससे न केवल गलत लोगों को निशाना बनाया जा सकता है, बल्कि सामाजिक असमानता भी बढ़ सकती है।

निजता पर सवाल

इस परियोजना का एक और विवादास्पद पहलू है निजता यानी प्राइवेसी का उल्लंघन। लाखों लोगों का डेटा, जिसमें उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति जैसी निजी जानकारी शामिल है, उसे सरकार द्वारा संग्रहित और विश्लेषित किया जा रहा है। नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि यह एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है, जहां हर व्यक्ति को संभावित अपराधी मानकर उसकी निगरानी शुरू कर दी जाए। यह सवाल भी उठता है कि क्या सरकार के पास इतने बड़े पैमाने पर डेटा जमा करने और उसका उपयोग करने का अधिकार है, खासकर तब जब यह अभी केवल "शोध" के लिए है।

फिल्मों से हकीकत तक: माइनॉरिटी रिपोर्ट की याद

यह परियोजना कई लोगों को 2002 की हॉलीवुड फिल्म "माइनॉरिटी रिपोर्ट" की याद दिलाती है, जिसमें भविष्यवक्ताओं की मदद से अपराध होने से पहले ही अपराधियों को पकड़ लिया जाता था। लेकिन वास्तविकता में, यह तकनीक किसी जादुई शक्ति पर नहीं, बल्कि डेटा और एल्गोरिदम पर निर्भर है, जो गलतियां कर सकते हैं। फिल्म में भी नैतिक सवाल उठाए गए थे कि क्या किसी को अपराध करने से पहले सजा दी जा सकती है, और यहां भी यही सवाल सामने आता है।

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सरकार की सफाई

न्याय मंत्रालय का कहना है कि यह परियोजना अभी प्रारंभिक चरण में है और इसका उद्देश्य समाज को सुरक्षित बनाना है। उनका तर्क है कि अगर इस तकनीक से कुछ हत्याओं को रोका जा सके, तो यह एक बड़ी सफलता होगी। लेकिन आलोचकों का कहना है कि सरकार को पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह प्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी हो, और इसका दुरुपयोग न हो।

न्याय मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “यह परियोजना फिलहाल केवल रिसर्च के उद्देश्य से चलाई जा रही है। इसमें केवल पहले से दोषी ठहराए गए अपराधियों का डाटा इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका मकसद यह जानना है कि किन कारकों से हत्या जैसे गंभीर अपराधों का जोखिम बढ़ता है।” अधिकारियों ने यह भी बताया कि एचएम प्रिजन एंड प्रोबेशन सर्विस पहले से जोखिम आकलन उपकरणों का इस्तेमाल करता है, और इस नई परियोजना से यह पता लगाने की कोशिश हो रही है कि अतिरिक्त डाटा से उसकी सटीकता कैसे बढ़ाई जा सकती है।

कुल मिलाकर यह तकनीक भविष्य में अपराध को रोकने का एक शक्तिशाली हथियार बन सकती है, लेकिन इसके साथ जुड़े जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसे लागू करने से पहले व्यापक जन परामर्श और स्वतंत्र विशेषज्ञों की निगरानी जरूरी है। साथ ही, यह सुनिश्चित करना होगा कि यह प्रणाली पक्षपात से मुक्त हो और नागरिकों के अधिकारों का हनन न करे।

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