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अफगानों पर फिर बढ़ा पाक का जुल्म, जबरन निकासी शुरू; मुसीबत में 16000 से ज्यादा लोग

  • पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सख्त निर्देश जारी किए हैं कि वे बिना वैध दस्तावेजों वाले अफगानों को गिरफ्तार करें और उन्हें देश से बाहर निकालें।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, कराचीSat, 5 April 2025 08:36 AM
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अफगानों पर फिर बढ़ा पाक का जुल्म, जबरन निकासी शुरू; मुसीबत में 16000 से ज्यादा लोग

पाकिस्तान में रह रहे अफगान शरणार्थियों पर एक बार फिर सख्ती बढ़ती नजर आ रही है। पाकिस्तान सरकार ने अवैध रूप से रह रहे अफगान नागरिकों को देश से बाहर निकालने की अपनी नीति को और तेज कर दिया है। हाल ही में शुरू की गई इस कार्रवाई के तहत हजारों अफगान शरणार्थियों को जबरन निर्वासित किया जा रहा है, जिससे 16,000 से ज्यादा लोग गहरी मुसीबत में फंस गए हैं। यह कदम 31 मार्च, 2025 को दी गई समयसीमा समाप्त होने के बाद उठाया गया है, जब सरकार ने अफगान सिटीजन कार्ड (एसीसी) धारकों को स्वेच्छा से देश छोड़ने का अंतिम मौका दिया था।

पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सख्त निर्देश जारी किए हैं कि वे बिना वैध दस्तावेजों वाले अफगानों को गिरफ्तार करें और उन्हें देश से बाहर निकालें। इस कार्रवाई का दूसरा चरण 1 अप्रैल, 2025 से शुरू होने की योजना थी, लेकिन ईद-उल-फितर के कारण इसे 10 अप्रैल तक टाल दिया गया। हालांकि, अब इस अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है और कई इलाकों में अफगान परिवारों को उनके घरों से निकाला जा रहा है। अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि कराची में नगर प्रशासन और कानून प्रवर्तन ने अनुमानित 16,138 अफगान नागरिकता कार्ड (एसीसी) धारकों का ‘जबरन प्रत्यावर्तन’ शुरू कर दिया है, जिसमें से 150 से अधिक को अब तक हिरासत में लिया गया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले 18 महीनों में करीब 8.44 लाख अफगानों को पहले ही पाकिस्तान से निर्वासित किया जा चुका है। अब भी देश में लगभग 30 लाख अफगान नागरिक रह रहे हैं, जिनमें से 13 लाख के पास पंजीकरण प्रमाणपत्र हैं, जबकि 8 लाख के पास अफगान सिटीजन कार्ड हैं। बाकी 10 लाख लोग बिना किसी वैध दस्तावेज के रह रहे हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम देश की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए जरूरी है, क्योंकि अवैध शरणार्थियों को संसाधनों पर बोझ और आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

इस कार्रवाई का सबसे ज्यादा असर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों में देखा जा रहा है। यहां चमन और तोरखम बॉर्डर पर अफगान शरणार्थियों की लंबी कतारें लगी हैं, जो अपने सामान के साथ अफगानिस्तान वापस जाने को मजबूर हैं। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान शासन के तहत हालात बेहद खराब हैं। सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और वहां इन शरणार्थियों के लिए न तो रहने की व्यवस्था है और न ही पर्याप्त संसाधन। तालिबान ने अस्थायी तौर पर तंबुओं का इंतजाम करने की बात कही है, लेकिन यह समाधान नाकाफी माना जा रहा है।

मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र ने इस जबरन निकासी की कड़ी आलोचना की है। यूएन के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने पहले ही पाकिस्तान से इस प्रक्रिया को रोकने की अपील की थी, यह कहते हुए कि अफगानिस्तान में लौटने वाले शरणार्थियों को उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ सकता है। खास तौर पर महिला कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों के लिए खतरा ज्यादा है, जो तालिबान के निशाने पर हैं।

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पाकिस्तान में रह रही एक अफगान महिला कार्यकर्ता हमैरा अलीम ने अपनी आपबीती साझा करते हुए कहा, "अगर मुझे वापस अफगानिस्तान भेजा गया, तो इसका मतलब सिर्फ मौत है।" हमैरा उन 60 महिला कार्यकर्ताओं में से एक हैं, जो तालिबान से बचकर पाकिस्तान आई थीं। अब उन्हें डर है कि निर्वासन के बाद उनकी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। इस बीच, तालिबान सरकार ने भी पाकिस्तान के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। तालिबान के शरणार्थी मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल मुतालिब हक्कानी ने कहा कि यह एकतरफा कदम दोनों देशों के हित में नहीं है और इससे अफगानों के खिलाफ नफरत बढ़ सकती है।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और इस मानवीय संकट ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्रवाई न सिर्फ लाखों लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल रही है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा बन सकती है। फिलहाल, 16,000 से ज्यादा प्रभावित अफगानों का भविष्य अधर में लटका हुआ है, और उनकी मदद के लिए कोई ठोस कदम उठता नहीं दिख रहा।

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