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US सुप्रीम कोर्ट ने इसरो की कंपनी के खिलाफ दिया बड़ा फैसला, क्या है 1.29 अरब डॉलर वाला विवाद?

US कोर्ट ने इसरो की कंपनी एंट्रिक्स के खिलाफ देवास मल्टीमीडिया के 1.29 अरब डॉलर के मुकदमे को आगे बढ़ने की अनुमति दी। यह विवाद 2005 के एक रद्द सैटेलाइट सौदे से संबंधित है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, वाशिंगटनFri, 6 June 2025 09:40 AM
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US सुप्रीम कोर्ट ने इसरो की कंपनी के खिलाफ दिया बड़ा फैसला, क्या है 1.29 अरब डॉलर वाला विवाद?

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने भारत की सरकारी कंपनी एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के खिलाफ 1.29 अरब डॉलर के मध्यस्थता पुरस्कार को लागू कराने की मांग वाली याचिका को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा अधिनियम (FSIA) के तहत भारत के खिलाफ यह मुकदमा अमेरिकी अदालतों में आगे बढ़ सकता है, और इसके लिए एंट्रिक्स के अमेरिका से "न्यूनतम संपर्क" होने की आवश्यकता नहीं है।

बता दें कि एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कॉमर्शियल शाखा है। यूएस कोर्ट का यह फैसला 2023 में नाइंथ सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स द्वारा दिए गए उस आदेश को पलटता है, जिसमें कहा गया था कि एंट्रिक्स का अमेरिका से पर्याप्त कनेक्शन नहीं हैं, इसलिए अमेरिकी अदालतों को उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है।

FSIA के तहत स्पष्ट दिशा-निर्देश

US सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सैमुअल एलिटो ने सर्वसम्मत फैसले में लिखा, “जब प्रतिरक्षा से छूट लागू होती है और उचित सेवा दी गई होती है, तो FSIA के तहत व्यक्तिगत क्षेत्राधिकार मौजूद होता है। नाइंथ सर्किट कोर्ट ने इससे अधिक की मांग की थी, जो गलत है।” FSIA के अनुसार, जब किसी विदेशी सरकार की व्यावसायिक गतिविधि अमेरिका में प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है, तो संप्रभु प्रतिरक्षा को हटाया जा सकता है। इस “प्रत्यक्ष प्रभाव” का मतलब होता है कि विदेशी कृत्य का तत्काल और ठोस असर अमेरिका में दिखाई दे, जैसे कि अमेरिकी बैंक को भुगतान न किया जाना।

देवास-एंट्रिक्स मामला: एक विवादित समझौते की कहानी

विवाद की जड़ 2005 में हुई एक डील है, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड ने बेंगलुरु स्थित देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता किया था। इसके तहत देवास को दो सैटेलाइट के ट्रांसपोंडर लीज पर मिलने थे ताकि वह भारत में S-बैंड स्पेक्ट्रम पर मल्टीमीडिया सेवाएं दे सके। इस सौदे की लागत 167 करोड़ रुपये थी और इसका उद्देश्य भारत में मोबाइल उपकरणों पर मल्टीमीडिया सेवाएं प्रदान करना था।

हालांकि, फरवरी 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक उपयोग के लिए एस-बैंड स्पेक्ट्रम की आवश्यकता का हवाला देते हुए इस समझौते को रद्द कर दिया। इस रद्दीकरण को 2जी घोटाले की पृष्ठभूमि में भ्रष्टाचार के एक और उदाहरण के रूप में देखा गया। इसके बाद, देवास मल्टीमीडिया और इसके विदेशी निवेशकों, जिसमें जर्मन टेलीकॉम कंपनी ड्यूश टेलीकॉम और मॉरीशस के तीन निवेशक शामिल थे, उन्होंने इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) में मुआवजे की मांग की। सितंबर 2015 में, इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) के एक मध्यस्थता ट्रिब्यूनल ने एंट्रिक्स के समझौते को गलत तरीके से रद्द करने के लिए देवास मल्टीमीडिया को 562.5 मिलियन डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो ब्याज सहित 1.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया। देवास के विदेशी निवेशकों ने भी भारत के खिलाफ द्विपक्षीय निवेश संधियों (BITs) के तहत अलग-अलग दावे किए और उन्हें भी मध्यस्थता में जीत मिली।

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भारत का पक्ष: "धोखाधड़ी से भरा सौदा"

भारत सरकार और एंट्रिक्स ने इस समझौते को शुरुआत से ही धोखाधड़ी से भरा बताया। 2021 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने देवास को "शेल कंपनी" करार देते हुए उसे समाप्त करने का आदेश दिया। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी 2022 में इस फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि देवास का गठन धोखाधड़ी के इरादे से हुआ था। 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी ICC के मध्यस्थता पुरस्कार को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि यह “भारत की सार्वजनिक नीति के खिलाफ है” और "धोखाधड़ी को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता।"

अंतरराष्ट्रीय कानूनी लड़ाई और अमेरिकी अदालतों का रुख

देवास ने अमेरिका सहित कई देशों में मुआवजा दिलाने की मांग की। देवास ने इस मध्यस्थता पुरस्कार को लागू करने के लिए 2018 में अमेरिका के वाशिंगटन के पश्चिमी जिला में एक मुकदमा दायर किया। हालांकि, एंट्रिक्स ने इस मुकदमे को खारिज करने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि उनके पास अमेरिका में पर्याप्त व्यावसायिक उपस्थिति नहीं थी, जिसके कारण अमेरिकी अदालतों को उनके खिलाफ क्षेत्राधिकार का अधिकार नहीं था। 2023 में, नाइंथ सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने इस आधार पर मुकदमे को खारिज कर दिया कि एंट्रिक्स, एक सरकारी स्वामित्व वाली भारतीय कंपनी, को विदेशी संप्रभुता अधिनियम (FSIA) के तहत व्यक्तिगत क्षेत्राधिकार के लिए "न्यूनतम संपर्क" दिखाने की आवश्यकता थी।

अब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए स्पष्ट कर दिया है कि FSIA के तहत मुकदमे की अनुमति के लिए "न्यूनतम संपर्क" जरूरी नहीं है। अदालत ने कहा कि FSIA में यह शब्द ही नहीं है, और इसमें किसी अतिरिक्त संवैधानिक मानक को जोड़ना कांग्रेस की मंशा के खिलाफ होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह तय नहीं किया कि क्या भारतीय अदालत द्वारा मध्यस्थता पुरस्कार को रद्द किया जाना इस प्रवर्तन को प्रभावित करेगा, या क्या मुकदमे को "फोरम नॉन कन्वीनियन्स" जैसे सिद्धांतों पर खारिज किया जाना चाहिए। ये सवाल अब नाइंथ सर्किट कोर्ट के सामने रखे जाएंगे।

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