कौन हैं ईरान समर्थित कुख्यात मिलिशिया समूह? ट्रंप की धमकी से घबराकर डाले हथियार
- एक मिलिशिया कमांडर ने बताया कि ट्रंप हमसे युद्ध को अगले खतरनाक स्तर पर ले जाने को तैयार है। हम ऐसा भयानक परिदृश्य टालना चाहते हैं।

ईरान समर्थित कट्टरपंथी शिया मिलिशिया समूह पहली बार अपने हथियार डालने को तैयार हैं। यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार ने इराक सरकार को साफ शब्दों में चेतावनी दी है यदि इन समूहों को नहीं रोका गया, तो अमेरिकी सेना हवाई हमले करेगी। रॉयटर्स ने मिलिशिया ग्रुप के 10 वरिष्ठ कमांडरों और इराकी अधिकारियों ने बताया कि कटाएब हिजबुल्लाह, नुजबा, कटाएब सैय्यद अल-शुहदा और अंसारुल्लाह अल-अवफिया जैसे प्रमुख गुट अब ट्रंप के सख्त रुख से घबराकर पीछे हटने को मजबूर हो गए हैं।
एक मिलिशिया कमांडर ने बताया, "ट्रंप हमसे युद्ध को अगले खतरनाक स्तर पर ले जाने को तैयार है। हम ऐसा भयानक परिदृश्य टालना चाहते हैं।"
ईरान की सलाह पर बनी बात
सूत्रों के मुताबिक, ईरान की ताकतवर सैन्य शाखा IRGC ने भी इन गुटों को सलाह दी है कि वे ज़रूरत पड़ने पर शांति का रास्ता चुन सकते हैं। इराक में इन सभी मिलिशिया का संगठनात्मक नाम है "इस्लामिक रेजिस्टेंस इन इराक", जिसमें करीब 50000 लड़ाके शामिल हैं और इनके पास लंबी दूरी की मिसाइलें व एंटी-एयरक्राफ्ट हथियार भी हैं।
इराकी प्रधानमंत्री मुहम्मद शिया अल-सुदानी खुद इन समूहों के नेताओं से बातचीत में जुटे हैं। उनके सलाहकार फरहाद अलाउद्दीन ने कहा, "हम चाहते हैं कि देश की सारी ताकतें केवल राज्य के नियंत्रण में रहें।" सूत्रों का दावा है कि कुछ गुट पहले ही मोसुल और अंबार जैसे शहरों से अपने मुख्यालय खाली कर चुके हैं और गुप्त रूप से गतिविधियां कम कर दी हैं। कई कमांडरों ने अपने मोबाइल नंबर, वाहन और ठिकाने बदल दिए हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा, "ये ताकतें इराक के कमांडर-इन-चीफ को जवाबदेह हों, न कि ईरान को।" हालांकि, अमेरिका को अभी भी संदेह है कि यह स्थायी समाधान होगा या अस्थायी चुप्पी।
कौन है मिलिशिया समूह और अमेरिका क्यों थपरेशान
ईरान वर्षों से मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कई मिलिशिया (सशस्त्र गुटों) को समर्थन देता रहा है। ये समूह अक्सर ईरान की सैन्य शाखा IRGCऔर उसकी खास शाखा Quds Force के अधीन काम करते हैं। इन मिलिशिया गुटों ने इराक और सीरिया में अमेरिकी सैन्य अड्डों और काफिलों पर बार-बार मिसाइल और ड्रोन हमले किए हैं। इन हमलों में कई अमेरिकी सैनिक घायल या मारे गए। अमेरिका चाहता है कि ईरान का प्रभाव इराक, सीरिया, लेबनान जैसे देशों में सीमित हो, जबकि ईरान अपने "प्रॉक्सी गुटों" के ज़रिए पूरे इलाके में दबदबा बनाना चाहता है।
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