Chaiti Durga Utsav A Century-Old Tradition of Faith in Bagodar खेतको में अंग्रेजी हुकूमत के समय से मन रहा चैती दुर्गोत्सव, Gridih Hindi News - Hindustan
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खेतको में अंग्रेजी हुकूमत के समय से मन रहा चैती दुर्गोत्सव

बगोदर प्रखंड के खेतको में चैती दुर्गोत्सव का इतिहास एक सौ साल पुराना है। यह पर्व संतान प्राप्ति की कामना से एक दलित दंपति द्वारा शुरू किया गया था। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद ग्रामीणों ने इस पर्व को...

Newswrap हिन्दुस्तान, गिरडीहSat, 5 April 2025 04:29 PM
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खेतको में अंग्रेजी हुकूमत के समय से  मन रहा चैती दुर्गोत्सव

बगोदर, प्रतिनिधि। बगोदर प्रखंड के खेतको में मनाए जाने वाले चैती दुर्गोत्सव का इतिहास बहुत पुराना है। यहां अंग्रेजी हुकूमत के समय से चैती दुर्गोत्सव मनता आ रहा है। यहां मनाए जाने वाले चैती दुर्गोत्सव का इतिहास धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि एक सौ साल पूर्व संतान प्राप्ति की कामना के साथ गांव के हीं एक दलित दंपति के द्वारा दुर्गोत्सव की शुरुआत की गई थी। लगातार तीन सालों तक दुर्गोत्सव आयोजित करने के बाद दलित दंपति को संतान की प्राप्ति हुई। संतान की प्राप्ति के पश्चात आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण दंपति ने पूजनोत्सव के आयोजन करने में असमर्थता जताई। इस बात की जानकारी ग्रामीणों को हुई तब बड़े पैमाने पर ग्रामीणों की बैठक हुई और फिर पूजनोत्सव के प्रति आस्था जताते हुए ग्रामीणों ने आगे भी पूजनोत्सव का आयोजन जारी रखने का निर्णय और फिर तब से प्रत्येक साल यहां सार्वजनिक रुप से चैती दुर्गोत्सव मनता आ रहा है।

मगन रजक ने शुरू किया था पूजनोत्सव : स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव के मगन रजक को संतान नहीं था। संतान प्राप्ति की कामना के लिए उसके द्वारा दुर्गोत्सव की शुरुआत की गई थी। इसके बाद दंपति को संतान की प्राप्ति हुई। जब उसने पूजनोत्सव के आयोजन में असमर्थता जताई तब ग्रामीणों ने सार्वजनिक रुप से पूजनोत्सव मनाना शुरू किया और तब से यह पूजनोत्सव यहां मनता आ रहा है। बताते हैं कि पूजनोत्सव के प्रति आस्था है कि यहां जो भी कामना की जाती है वह पूरी होती है। इसी का परिणाम है कि यहां 2039 तक डाक चढ़वा बुक है।

पहले बलि प्रथा का प्रचलन था, अब होता है वैष्णवी पूजा:

स्थानीय लोगों के अनुसार दुर्गोत्सव की शुरुआत से कई सालों तक यहां बलि प्रथा का प्रचलन था। यहां सैकड़ों की संख्या में बकरे की बलि चढ़ाई जाती थी। बाद में किसी कारणवश बलि प्रथा का प्रचलन बंद हो गया और पिछले कई सालों से वैष्णवी पूजनोत्सव होता आ रहा है। बताते हैं धीरे- धीरे पूजनोत्सव के आयोजन में विस्तार होता गया। ग्रामीणों के सहयोग से कुछ सालों पूर्व भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। इसी परिसर में संकट मोचन हनुमान की मंदिर है। यहां रामनवमी धूमधाम से मनाया जाता है।

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