Displaced Families in Ranchi Demand Justice and Compensation from HEC बोले रांची: मुआवजा नहीं मिला, अब योजनाओं का भी लाभ नहीं, Ranchi Hindi News - Hindustan
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बोले रांची: मुआवजा नहीं मिला, अब योजनाओं का भी लाभ नहीं

रांची के एचईसी के पांच गांवों के विस्थापित परिवार अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें 2342 एकड़ भूमि के अधिग्रहण का मुआवजा नहीं मिला है और सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है। उनकी...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीFri, 28 Feb 2025 05:52 PM
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बोले रांची: मुआवजा नहीं मिला, अब योजनाओं का भी लाभ नहीं

रांची, संवाददाता। एचईसी के पांच गांव कूटे, आणि, लाबे, मुड़मा और तिरिल के विस्थापित परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। इन पांच गांवों में लगभग एक हजार घर हैं, जिसमें चार हजार से अधिक लोग रहते हैं। विस्थापितों का कहना है कि 2342 एकड़ जमीन अधिग्रहण के एवज में उन्हें सरकार से मुआवजा अब तक नहीं मिला है। विस्थापितों को सरकारी योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल रहा है। खेती से जुड़े परिवारों का रोजगार भी उनसे छिन गया है। उनकी मांग है कि गांवों को स्थाई राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जाए। हैवी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड (एचईसी) की स्थापना के लिए 1950 के दशक में अधिग्रहित भूमि के विस्थापित रैयत अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से न्याय की गुहार लगाते हुए अपनी जमीनों को राजस्व ग्राम का दर्जा देने की मांग की है।

विस्थापितों का आरोप है कि एचईसी के लिए जितनी भूमि की आवश्यकता थी, उससे कई गुना अधिक भूमि का अधिग्रहण किया गया। इसके कारण हजारों आदिवासी, मूलवासी और स्थानीय रैयत बेघर हो गए। उन्होंने कहा कि 1894 के भू-अर्जन कानून को सीएनटी और 5वीं अनुसूची क्षेत्रों में लागू करके उनकी जमीनें छीनी गईं। विस्थापितों ने यह भी आरोप लगाया कि एचईसी के लिए अधिग्रहित भूमि का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, जो कानून के खिलाफ है। विस्थापितों ने सरकार से मांग की है की एचईसी भूमि अधिग्रहण की उच्च स्तरीय जांच की जाए। समझौते के तहत सभी ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जाए। 1959-61 से 78-81 तक पुनर्वास-पुनस्र्थापन के लिए आवंटित भूमि की जांच हो।

उन्होंने कहा कि एचईसी क्षेत्र में सामान्य कानून के प्रचलन की जांच हो। एचईसी के लिए अधिग्रहित क्षेत्र में बने सरकारी कार्यालयों का किराया विस्थापितों को दिया जाए। कोर कैपिटल क्षेत्र में बने संस्थानों में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में विस्थापित परिवारों को प्राथमिकता दी जाए। सरकार द्वारा उपयोग की गई भूमि का मुआवजा वर्तमान बाजार दर पर दी जाए। पुनर्वासित ग्राम नयासराय में आरओबी निर्माण के कारण बेघर हुए लोगों का समुचित पुनर्वास हो।

विस्थापितों ने कहा कि वे अपनी मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखेंगे। उन्होंने सरकार से उनकी मांगों पर तत्काल ध्यान देने की अपील की है। विस्थापितों का कहना है कि एचईसी की स्थापना के लिए 35 ग्रामों की 8187 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था। विस्थापितों का आरोप है कि उनकी जमीनें गैरकानूनी तरीके से छीनी गईं। उन्होंने कहा कि विगत 5-7 वर्षों से नियम विरूद्ध जमीन (अधिकांश कृषि भूमि) आवंटन के कारण अब केवल ग्राम एवं कुछ भूमि रह गई है, जिसे भी टाटा, अमिटी, गेल, आईआईएम, डीवीसी, झालसा, डालसा, हाउसिंग बोर्ड आदि को आवंटित कर दिया गया है। यह मामला झारखंड में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के मुद्दे को उजागर करता है।

विस्थापितों के लिए रोजगार की समस्या

विस्थापित परिवारों के लिए रोजगार की बड़ी समस्या है। वहां के लोगों के लिए रोजगार के साधन मौजूद नहीं हैं। उनकी कृषि युक्त जमीन का भी अधिग्रहण हो गया है। सड़क किनारे छोटे-मोटे रोजगार के साधन को भी हटाने का प्रयास किया जा रहा है। विस्थापितों का कहना है कि उनकी जमीन पर जो भी सरकारी या गैर सरकारी कार्यालय और उद्योग लगाए जा रहे हैं, वहां पर उन्हें रोजगार दिया जाए। तृतीय और चतुर्थ वर्ग में नौकरी मिलने से परिवार चलाने में मदद मिलेगी।

डर के साए में जी रहे विस्थापित

विस्थापितों का कहना है कि वे डर के साए में जी रहे हैं। कूटे, आणि, लाबे, मुड़मा, तिरिल पांच गांवों के विस्थापितों के मन में अपने घरों को लेकर डर सताता है। उनके घरों की हालत खराब है। कच्चे घर होने के कारण बरसात के दिनों में घर की छत से पानी रिसता है। लेकिन, वे उसे नहीं बनवा रहे हैं। उन्हें डर है कि कभी भी उन्हें उनके घरों से बेघर कर दिया जाएगा। विस्थापितों का कहना है कि गांव में उनकी संस्कृति बस्ती है। ग्रामीण परिवेश से जुड़े लोग झारखंड के मिल संस्कृति को बचा कर रखे है। अगर उन्हें दूसरे जगह भेज दिया जाएगा तो उनकी मानसिकता बदल जाएगी।

विस्थापितों को पांच साल बाद भी घर का इंतजार

2019 में बनकर तैयार कॉलोनी के चार साल बीत जाने के बाद घरों की खिड़कियां और दरवाजे टूटने लगे हैं। लोहे के दरवाजे जंग खाने लगे हैं। बिजली के उपकरण खराब होने लगे हैं। आधुनिक कॉलोनी बेरंग होने लगी है और अब तक विस्थापितों को हैंडओवर नहीं किया गया है।

नई विधानसभा के उद्घाटन के चार साल बीत चुके हैं और वहां विधानसभा सत्र के साथ बजट भी पेश हो चुके हैं, लेकिन जिस स्थान पर नई विधानसभा का निर्माण हुआ, वहां के विस्थापितों को अब तक घर नहीं मिला है। जगन्नाथ मंदिर के पास आनी में विस्थापन नीति के तहत 400 एकल मंजिला घरों की नई कॉलोनी का उद्घाटन तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने जुलाई 2019 में किया था। इसके साथ रघुवर दास ने इस कॉलोनी का नामकरण ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव कॉलोनी किया था, लेकिन 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी विस्थापितों को उनका हक नहीं मिल सका है। 58 एकड़ की इस कॉलोनी का निर्माण राम कृपाल कंस्ट्रक्शन ने किया था। पॉश और आधुनिक दिखने वाली इस कॉलोनी में 400 घर हैं, जिसमें 1250 वर्गफुट कारपेट एरिया के साथ कुल क्षेत्र 2700 वर्गफुट का है। एक घर में तीन रूम हैं।

पेयजल की समस्या से जूझ रहे ग्रामीण

विस्थापितों का कहना है कि उनके गांव में पेयजल की समस्या है। वर्तमान में दस चापानल हैं, जिनमें लगभग पांच चापानल खराब पड़े हैं। गर्मी के मौसम में सभी चापानल सूख जाते हैं। उनके गांवों को हर घर नल योजना से भी नहीं जोड़ा गया है। पानी नहीं होने से यहां के ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जाए

विस्थापितों का कहना है कि उनके गांवों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है। वे अभी जहां रह रहे हैं, उसे ही राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया जाए, जिससे उक्त भूमि पर उनका स्वामित्व हो सके और सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिल सके। इससे झारखंड की मूल संस्कृति को संजोए रखने में मदद मिलेगी।

बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता

विस्थापितों का कहना है कि एचईसी परिसर में कई स्कूलों में उनके बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता। जबकि आसपास कई अतिक्रमण वाली कॉलोनी के बच्चों को दाखिला दे दिया जाता है। उनका कहना है कि विस्थापित परिवार के पास उनके बच्चों को पढ़ाने का भी संकट मंडरा रहा है। विस्थापितों में इसे लेकर खासा आक्रोश भी है।

समस्याएं

1. विस्थापितों के गांव में रहने वाले लोगों को नहीं मिलती सरकारी योजनाओं का लाभ

2. विस्थापित गांव में हैपेयजल की समस्या, दस में पांच चापानल खराब

3. समुचित रोजगार की नहीं है व्यवस्था, छोटे कारोबारियों को हटाया जा रहा है

4. विस्थापितों का आरोप उनकी अधिग्रहित भूमि का अभी तक नहीं मिला मुआवजा

5. विस्थापित परिवार के बच्चों को शिक्षण संस्थानों में नहीं मिलता है एडमिशन

सुझाव

1. वस्थिापितों के गांवों का राजस्व ग्राम बनाया जाए, जिससें लोगों को योजनाओं का लाभ मिले

2. वस्थिापित गांव में पेयजल की समुचित व्यवस्था की जाए चापानल की मरम्मत हो

3. कोर कैपिटल क्षेत्र में बने संस्थानों में तृतीय और चतुर्थ वर्ग को नौकरियां दी जाए

4. सरकार द्वारा उपयोग की गई भूमि का मुआवजा वर्तमान बाजार की दर पर दी जाए

5. वस्थिापित परिवार के बच्चों को परिसर के शक्षिण संस्थानों में एडमिशन दिया जाए

बोले लोग

विस्थापितों के लिए समुचित रोजगार की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है। विस्थापितों को न तो मुआवजा मिल रहा है और ना उन्हें रोजगार से जोड़ा जा रहा है। 2342 एकड़ जमीन के भूमि अधिग्रहण का मुआवजा भी उन्हें नहीं दिया गया है। जिस गांव में विस्थापित रह रहें हैं, उसी गांव को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जाए।

-पंकज शाहदेव

एचईसी के लिए अधिग्रहित क्षेत्र में बने सरकारी कार्यालयों का किराया विस्थापितों को दिया जाए। इससे जीवनयापन की समस्या का समाधान हो सके। एचईसी के 1959-61 से 78-81 तक पुनर्वास-पुनस्र्थापन के लिए आवंटित भूमि की जांच होनी चाहिए। विस्थापितों की जमीनों को गैरकानूनी तरीके से छीना गया है।

-विश्वजीत शाहदेव

पानी नहीं होने से यहां के ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान में दस चापानल हैं, जिनमें लगभग पांच चापानल खराब पड़े हैं। गर्मी के मौसम में सभी चापानल सूख जाते हैं।

-मंजू देवी

सरकार द्वारा उपयोग की गई भूमि का मुआवजा वर्तमान बाजार दर पर दिया जाए। पुनर्वासित ग्राम नयासराय में आरओबी निर्माण के कारण बेघर हुए लोगों का समुचित पुनर्वास हो।

-कार्तिक महतो

विस्थापित परिवारों के लिए रोजगार की बड़ी समस्या है। वहां के लोगों के लिए रोजगार के साधन मौजूद नहीं हैं। उनकी कृषि युक्त जमीन का अधिग्रहण हो गया है। छोटे दुकानदारों को हटाया जा रहा है।

-प्रभात शाहदेव

एचईसी के लिए अधिग्रहित क्षेत्र में बने सरकारी कार्यालयों का किराया विस्थापितों को दिया जाए। साथ ही उनकी भूमि में बन रहे कार्यालयों में विभिन्न पदों पर नौकरी दी जाए।

-दीपक राय

विस्थापित गांवों में रहने वाले परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। वे अभी जहां रह रहे हैं, उसे ही राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया जाए। इससे उक्त भूमि पर उनका स्वामित्व हो सके।

-रमेश उरांव

कोर कैपिटल क्षेत्र में बनाए जा रहे संस्थानों में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में विस्थापित परिवारों को प्राथमिकता दी जाए। छोटे कारोबार से जुड़े छोटे व्यपारियों की दुकानकों नहीं तोड़ा जाए।

-मनोज बैठा

पुनर्वासित ग्राम नयासराय में आरओबी निर्माण के कारण बेघर हुए लोगों का समुचित पुनर्वास किया जाए। एचईसी भूमि अधिग्रहण की उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाई जाए।

-रमेश उरांव

वर्तमान में जिस गांव में रहते हैं, वहां पेयजल की समस्या है। वर्तमान में दस चापानल हैं, जिनमें लगभग पांच चापानल खराब पड़े हैं। गर्मी के मौसम में सभी चापानल सूख जाते हैं।

-जमुना सिंह

उनकी अधिग्रहित भूमि का मुआवजा नहीं मिला है। सरकार द्वारा उपयोग की गई भूमि का मुआवजा वर्तमान बाजार दर पर दिया जाए। जिससे भरण पोषण में मदद मिल सके।

-गोपाल गुप्ता

एचईसी परिसर में कई स्कूलों में उनके बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता। इस कारण उनपरबच्चों को पढ़ाने का भी संकट मंडरा रहा है। शिक्षा पर तो सभी का हक है।

-लाल रामेश्वर नाथ शाहदेव

सड़क से लेकर साफ-सफाई सभी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था उन्हें अपने स्तर पर ही करनी पड़ती है। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। उनके गांव को राजस्व ग्राम का दर्जा मिले।

-किरण देवी

घरों की हालत खराब है। कच्चे घर होने के कारण बरसात के दिनों में घर की छत से पानी रिसता है। लेकिन, वे उसे नहीं बनवा रहे हैं। उन्हें डर है कि कभी भी उन्हें उनके घरों से बेघर कर दिया जाएगा।

- अर्जुन महतो

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