कोयलांचल में ग्रामीणों की जीविका का प्रमुख स्रोत बना महुआ
पिपरवार के जंगलों में महुआ के पेड़ों पर इस वर्ष अच्छी बहार आई है। महुआ चुनने के लिए ग्रामीण जंगलों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। हालांकि, पिछले वर्ष की तुलना में...

पिपरवार, संवाददाता। पिपरवार- कोयलांचल क्षेत्र के जंगलों में महुआ के पेड़ों पर इस वर्ष अच्छी बहार आई है। महुआ के वृक्षों से श्वेत और रसीले फूल टपक रहे हैं, जिनकी मादक सुगंध से पूरा वातावरण सुगंधित हो उठा है। महुआ चुनने के लिए ग्रामीण जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में चहल-पहल बढ़ गई है। बाजार में महुआ के फूलों की मांग 50-60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है, जिससे ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो रही है। आज कल ग्रामीणों का अधिकतर समय अब जंगलों में महुआ चुनने में बीत रहा है। सूर्योदय से पहले ही बच्चे और बड़े सभी जंगलों की ओर निकल जाते हैं। सुबह से लेकर दोपहर तक महुआ चुनने का कार्य चलता है, जिससे ग्रामीणों की दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है।
पिछले वर्ष की तुलना में पैदावार कम: हालांकि, इस बार महुआ के फूलों की पैदावार पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी कम देखी जा रही है। ग्रामीणों का मानना है कि मौसम में बदलाव, विशेष रूप से बारिश के कारण, फूलों के गिरने की प्रक्रिया में देरी हुई है। फिर भी, महुआ का मौसम ग्रामीणों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बना हुआ है।
महुआ का आर्थिक महत्व: महुआ केवल एक फूल नहीं, बल्कि ग्रामीणों के लिए एक आर्थिक संपदा भी है। यह उनकी जीविका का एक प्रमुख साधन है। महुआ के फूलों और फलों का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है। बाजार में महुआ के फूल और डोरही (फल) दोनों ही अच्छी कीमत पर बिकते हैं। खाद्य पदार्थों में महुआ से शराब, लड्डू, आचार आदि बनाए जाते हैं। डोरही फल से तेल निकाला जाता है, जिसका उपयोग खाना पकाने में किया जाता है। महुआ के पत्तों से पत्तल और दोना बनाए जाते हैं।
पशु-पक्षियों को भी प्रिय है महुआ: महुआ के फूल पशु-पक्षियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होते हैं। पेड़ पर फूल लगते ही पक्षियों की चहचहाहट बढ़ जाती है। वन्यजीव और पालतू पशु महुआ के गिरे हुए फूलों को बड़े चाव से खाते हैं।
औषधीय गुणों से भरपूर है महुआ: महुआ के वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर होते है। आयुर्वेद में इसका उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है। इसके पतली टहनियां दातुन के रूप में प्रयोग की जाती हैं, जबकि फूल, पत्ते, छाल और बीज औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह नसों की कमजोरी, डायबिटीज, इनफर्टिलिटी और हड्डियों की समस्याओं में लाभकारी माना जाता है।
महुआ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: महुआ केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। झारखंड के आदिवासी समुदायों में महुआ के फूलों का उपयोग देवताओं को अर्पित करने के लिए किया जाता है। कई परिवारों में इसे पूजन सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है।
महुआ के वृक्षों का पारिवारिक बंटवारा: गौरतलब है कि महुआ के वृक्षों को ग्रामीण अपनी संपत्ति की तरह मानते हैं। जब परिवार में संपत्ति का बंटवारा होता है, तो महुआ के पेड़ों को भी बांटा जाता है।
महुआ से बनने वाले उत्पाद और उनका महत्व: महुआ से कई प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं, जो ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हैं। इनमें महुआ शराब- यह आदिवासी समुदायों में पारंपरिक पेय के रूप में लोकप्रिय है। महुआ लड्डू- लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है। महुआ तेल- इसका उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। महुआ का आचार- स्वादिष्ट और पोषण से भरपूर। महुआ ताड़ी, इसे पारंपरिक रूप से उत्सवों में प्रयोग किया जाता है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग: पिपरवार- कोयलांचल क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों का कहना है कि महुआ बिना पूंजी की खेती है, जिसमें सभी किसानों को आर्थिक फायदा मिलता है। पिपरवार- कोयलांचल क्षेत्र के रहने वाले चमन महतो, कृष्णा महतो, मीना कुमारी, अशोक कुमार महतो, सुरज पटेल, आनंद मुंडा, अरुण उरांव, संजय उरांव ने कहा कि महुआ के फल एवं फूल से किसानों को काफी आर्थिक फायदा पहुंचता है।
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