बोले रांची : रांची से मिथिलांचल के लिए ट्रेन के साथ विमान सेवा उपलब्ध हो
रांची में मिथिलांचल समाज की बड़ी आबादी है, जो अपनी भाषा मैथिली और संस्कृति के विकास के लिए संघर्ष कर रही है। उन्होंने रांची से जयनगर के लिए सीधी ट्रेन और दरभंगा के लिए हवाई सेवा की मांग की है, जो अब...

रांची। राजधानी में मिथिलांचल से आए समाज की बहुत बड़ी आबादी है। बिहार की विभिन्न संस्कृतियों में एक अलग संस्कृति और अपनी भाषा के साथ मिथिलांचल के लोग यहां निवास करते हैं। लेकिन, वर्षों से चल रही उनकी पुरानी मांग रांची से जयनगर की प्रतिदिन सीधी ट्रेन और दरभंगा-रांची हवाई सेवा की मांग आज तक पूरी नहीं हुई। इससे लोग वर्षों से परेशान हैं। झारखंड राज्य की स्थापना से पहले ही संयुक्त बिहार का हिस्सा रही यह आबादी अब तन-मन और धन से झारखंड की हो चुकी है। समाज के लोग यहां की आबोहवा में रच-बसकर अपने दम पर अपनी इस संस्कृति को सींच रहे हैं। बावजूद इसके मैथिली भाषा और मिथिलांचल की संस्कृति यहां उपेक्षित है। जेपीएससी परीक्षा में भाषा को शामिल करने, मैथिली साहित्य अकादमी और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए विद्यापति भवन की मांग भी आज तक पूरी नहीं हुई।
रांची में मैथिल समाज की आबादी दो लाख के करीब है। जबकि, झारखंड में यह आबादी करीब 20 लाख है। झारखंड के दो-तीन विधानसभा क्षेत्र में तो यह समाज निर्णायक की भूमिका में हैं। विधानसभा चुनावों में इस समाज के विधायक भी चुने जाते रहे हैं। लगभग प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका अहम है। फिर भी राजनीतिक रूप से इस समाज की मांगें अबतक उपेक्षित रही हैं। इस समाज में बुद्धिजीवी से लेकर हर वर्ग के लोग मौजूद है। राज्य सरकार के उच्च से लेकर निम्न पदों तक सेवा कार्य में संलग्न हैं। राज्य गठन के बाद यहां के विकास में तन, मन और धन से योगदान दे रहे हंै। बावजूद, इस समाज की मैथिली भाषा को उसका पुराना स्वरूप दिलाने और संस्कृति को कायम रखने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी मैथिली भाषा आज उपेक्षित है।
हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में मैथिल समाज के लोगों ने कहा कि अखंड बिहार में इस भाषा की पढ़ाई मिथिलांचल के स्कूलों से लेकर महाविद्यालयों तक होती थी। तत्कालीन बिहार में इसे बीपीएससी और अन्य परीक्षाओं में यह भाषा महत्वपूर्ण विषय हुआ करती थी। मैथिली भाषा संविधान की अष्टम सूची में शामिल है। फिर भी झारखंड में इसे हक की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। समाज के लोग वर्षों से मैथिली भाषा की मिथिलाक्षर लिपि और भाषा की समृद्धि के लिए सतत प्रयासरत रहे हैं। इसके आलोक में वर्षों से हो रहे मैथिली मंच के विद्यापति समारोह समेत अन्य छोटे बड़े कार्यक्रमों में मैथिली साहित्य अकादमी के गठन की मांग होती रही है। साथ ही साथ इस भाषा को जेपीएससी और जेएसएससी परीक्षा में शामिल करने की मांग हो रही है।
उन्होंने कहा कि यही हाल यातायात के क्षेत्र में भी है। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी आबादी रांची से मिथिलांचल के लिए खुलने वाली ट्रेनों की किल्लत से जूझ रही है। मौजूदा समय में रांची से मिथिलांचल जाने के लिए साप्ताहिक से लेकर त्रि-सप्ताहिक ट्रेनें उपलब्ध हैं, लेकिन रांची से सीधे मिथिलांचल के लिए जयनगर तक की ट्रेन उपलब्ध नहीं है। जबकि, कोशी और सीमांचल के इलाकों के लिए भी मात्र एक रेल सेवा रांची से खुलती है। रांची से हवाई सेवा देश के विभिन्न नगरों से लेकर महानगरों तक उपलब्ध है। लेकिन, अच्छी-खासी यात्री उपलब्धता के बाद भी रांची एयरपोर्ट से दरभंगा के बीच सीधी विमान सेवा अब भी दूर का सपना साबित हो रही है। जबकि, इस मांग को यहां के जनप्रतिनिधि संसद से लेकर केंद्रीय उड्डयन मंत्रालय तक उठा चुके हैं। लेकिन, समय और चुनाव बीतने के साथ ही यह सभी मांगें गौण होती चली गईं। यही हाल मिथिलांचल की कला मधुबनी पेंटिंग का है। यहां यह उपेक्षित है। जबकि, इसके प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों की कमी नहीं है। यह कला केवल समाज की ही नहीं बल्कि अन्य सभी के लिए है। गीत संगीत और गायन के क्षेत्र में भी मिथिलांचल आगे रहा है। इसके लोकगीत और संगीत काफी प्रसिद्ध रहे हैं। लेकिन, यह सभी लोक गीत और संगीत केवल विद्यापति स्मृति पर्व, मिथिला महोत्सव, मैथिली समारोह, जानकी महोत्सव जैसे कार्यक्रमों तक ही सिमट गया है। आज की नयी युवा पीढ़ी इस पुरानी विधा को जानती तक नहीं है। अष्टम सूची में शामिल होने के बावजूद इस भाषा की कई मैगजीन और अखबार (डिजिटल भी) प्रकाशित होती है। इसके पाठक वर्ग होने के कारण राज्य सरकार से सरकारी अनुदान की मांग होती रही है। जबकि समाज के कलाप्रेमियों का रुझान रंगमंच की ओर रहा है। यहां पूर्व में धूर्त समाज, पारिजात हरण, गोरक्षा विजय, उषा हरण, गौरी स्वयंवर और सीता स्वयंबर जैसे कई नाटक काफी लोकप्रिय है। लेकिन रंगमंच और थिएटर के अभाव में यह कला भी आज दम तोड़ती नजर आ रही है।
भाषा को परीक्षा में शामिल करने की मांग
जेपीएससी और जेएसएससी में मैथिली भाषा को शामिल करने की मांग समय-समय पर विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों द्वारा उठाई जाती रही है। लोगों का कहना है कि झारखंड के कुछ क्षेत्रों में मैथिली भाषी लोग रहते हैं और वे अपनी भाषा को परीक्षाओं में शामिल करने की मांग करते हैं। उनका तर्क है मैथिली एक समृद्ध और प्राचीन भाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, जो इसे एक आधिकारिक भाषा का दर्जा देता है। इसलिए, इसे परीक्षा में शामिल करना चाहिए।
वर्षों से सीधी हवाई और रेल सेवा की मांग
झारखंड की राजधानी से मिथिला के लिए रेल यातायात और हवाई यातायात लगातार बड़ी मांग रही है। 1997 से मिथिला समाज रांची से सीधी रेल सेवा की मांग कर रहा है। पर, वर्ष 2011 में रांची से जयनगर की सीधी रेल सेवा की मांग पूरी हुई। सप्ताह में तीन दिन चलनेवाली इस ट्रेन के सफलतापूर्वक चलने पर इसके प्रतिदिन फेरे की मांग होने लगी। लेकिन, यह रेल सेवा भी राजनीति का शिकार हो गई। सीधी सेवा नहीं होने से रांची से मिथिलांचल आने-जाने में काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है।
समाज ने खुद बनाया विद्यापति दालान
समाज अपनी भाषा और संस्कृति के विकास और उत्थान के लिए हरमू में विद्यापति दालान का निर्माण खुद किया है। समाज के लोगों का कहना कि यह दालान काफी छोटा है। एक छोटे से भूखंड पर बना यह दो मंजिला दालान ही इस समाज के लिए समय-समय और पर्व उत्सवों के अवसर पर चलनेवाली सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है। मैथिली मंच के आयोजकों ने बताया कि समाज के लोगों से सहयोग के रूप में प्राप्त धनराशि से दालान के भूमि तल का निर्माण किया गया।
विश्व पटल पर धूम मचाने वाली मधुबनी पेंटिंग को झारखंड में बढ़ाने की जरूरत
वैश्विक पटल पर धूम मचानेवाली मधुबनी पेंटिग की ख्याति झारखंड राज्य में आज भी उपेक्षित है। यहां हालात ऐसे हैं कि यह केवल मैथिली संगठनों के कार्यक्रमों तक ही सीमित रह गयी है। इस चित्रकारी की स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी ज्यादा मांग है। फिर भी झारखंड में इस पेंटिंग के शिक्षण और प्रशिक्षण को लेकर किसी तरह की पहल नहीं की गई। मैथिली समाज के लोग यह मांग सरकार से करते आ रहे हैं। यहां इस कला को सीखने वाले छात्र-छात्राओं की कमी नहीं है, जो सीख रहे हैं, वह भी अपनी सुविधा और संसाधन के दम पर।
विद्यापति भवन की मांग भी जल्द पूरी हो
मैथिली भाषा के उत्थान के लिए मंच प्रयासरत रहा है। 25 वर्षों से लगातार मैथिली साहित्य अकादमी के गठन की मांग की जा रही है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। रांची और आसपास के जिलों के यात्रियों को मिथिलांचल जाने में परेशानी झेलनी पड़ती है। ट्रेन राउरकेला से ही फुल होकर आती है। नयी ट्रेन चलाने का आश्वासन मिला, लेकिन मांग आज तक पूरी नहीं की गई।
-अरुण कुमार झा, संरक्षक, मैथिली मंच
भाषा संस्कृति की रीढ़ होती है। बिहार के बड़े भूभाग पर बोली जानेवाली मैथिली भाषा-भाषियों की बड़ी संख्या है। इस भाषा की अपनी लिपि और साहित्य है। फिर भी इसे उपेक्षित रखा गया है। मधुबनी पेंटिंग के प्रशिक्षण के जरिए झारखंड के युवाओं को प्रशिक्षित कर सरकार उनकी बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक हल कर सकती है। इससे राज्य सरकार को राजस्व भी प्राप्त होगा।
-जयंत कुमार झा, महासचिव, मैथिली मंच
मैथिली साहित्य अकादमी का गठन हो
हर साल यहां हरमू मैदान में महोत्सव आयोजित होता रहा है। दर्जनों कार्यक्रम होते हैं, जिसमें मैथिली भाषी शरीक होते हैं। इसलिए अपना एक सांस्कृतिक केंद्र होना चाहिए।
-नरेश झा
मैथिली साहित्य में कई बड़े और प्रख्यात कवि हुए हैं। महाकवि विद्यापति सर्वविदित हैं। इनके नाम पर रांची में भवन बनाया जाए और सांस्कृतिक गतिविधियां संचालित हों।
-बद्रीनाथ झा
आज लोगों के पास समय कम है, पर वह संस्कृति से जुड़े रहने के लिए गांव जाते रहते हैं। इसलिए मिथिलांचल के लोगों के लिए सीधी हवाई सेवा होनी चाहिए।
-राजकुमार मिश्र
तत्कालीन बिहार में मैथिली भाषा को पाठ्यक्रमों से लेकर महाविद्यालयों तक पढ़ाया जाता था। लेकिन झारखंड में इस भाषा को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है।
-ब्रजकिशोर झा
समाज के लोग यहां की संस्कृति का सम्मान करते हैं। उसी तरह मैथिली समाज अपनी परंपरा को जीवित रखने के लिए प्रयासरत है। अकादमी का गठन होना चाहिए।
-प्रवीण कुमार झा
कोई भी भाषा उपेक्षित नहीं होती। मैथिली को भी सम्मान मिलना चाहिए। आठवीं सूची में शामिल है। इसे जेपीएससी और जेएसएससी में शामिल होनी चाहिए।
-मोहन झा पड़ोसी
मधुबनी पेंटिंग के प्रशिक्षण के लिए सरकारी स्तर के केंद्र खोले जाएं। यह बेरोजगारी दूर करने का अच्छा साधन बन सकता है। इसके लिए यहां पर प्रशिक्षण केंद्र होने चाहिए।
-चंद्रशेखर झा
विद्यापति भवन होने से वहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। इसमें रंगमंच से लेकर लोक कला के गीत और संगीतों को भी बनाए रखने में मदद मिलेगी।
-विनोद कुमार झा
मैथिली के अपनी लिपि और व्याकरण है। विद्यापति से लेकर चंदा झा और उसके बाद भी इसके साहित्कारों की फेहरिस्त है। अकादमी का गठन होने से यह भाषा समृद्ध होगी।
-डॉ कृष्ण मोहन झा
साहित्य में निरंतरता से कोई भी भाषा समृद्धि होती रहती है। इसलिए पहले के जमाने से ही विभिन्न भाषाओं को संरक्षण मिलता रहता है। संसाधन के मामले में यह पीछे रह गयी है।
-डॉ प्रभाषचंद्र मिश्र
ओडिशा से यहां साहित्य कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आयी हूं। यहां पर एकत्र हुए साहित्यकारों ने भाषा के चर्चा-परिचर्चा में हिस्सा लिया। मैथिली साहित्य अकादमी का गठन होना चाहिए।
-ममता मिश्रा
दरभंगा से रांची के लिए सीधी विमान सेवा शुरू की जाए। यदि यह संभव नहीं हो तो रांची से दरभंगा वाया पटना से भी इसकी शुरुआत की जा सकती है। दोनों जगह से ही यात्रियों की काफी उपलब्धता है।
-रणधीर झा
समस्याएं
1. भाषा विकास के लिए मैथिली साहित्य अकादमी नहीं होने से परेशानी।
2. रांची से मिथिलांचल के लिए सीधी यातायात सेवा अच्छी नहीं होने से परेशानी।
3. जेपीएससी और पाठ्यक्रम में मैथली भाषा को कोई स्थान नहीं मिला।
4. मैथिली सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए राजधानी में बड़े भवन का अभाव।
5. मधुबनी चित्रकला के प्रचार प्रसार के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई।
सुझाव
1. भाषा के विकास के लिए मैथिली साहित्य अकादमी का गठन किया जाना चाहिए।
2. दरभंगा-रांची के बीच सीधी विमान सेवा और रेल सेवा शुरू की जाए।
3. मैथिली भाषा को जेपीएससी और जेएसएससी में शामिल किया जाए।
4. मैथिली सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए बड़े क्षेत्र में विद्यापति भवन बनाए जाए।
5. मधुबनी पेंटिंग के प्रशिक्षण के लिए सरकारी स्तर के केंद्र खोले जाएं।
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