बोले रांची: मॉक ड्रिल में जागरुकता और सुधार की जरूरत
रांची में आपदा प्रबंधन के लिए आयोजित मॉक ड्रिल में स्थानीय लोगों ने सुरक्षा और तैयारी की कमी को उजागर किया। सायरन की आवाज़ शहर के कई हिस्सों तक नहीं पहुंची, जिससे लोगों में जागरूकता की कमी दिखी।...

रांची, संवाददाता। आपदा से बचाव के लिए देशभर में माक ड्रिल आयोजित की गई। इसी कड़ी में बीते बुधवार को रांची के डोरंडा क्षेत्र में भी माक ड्रिल हुई। हिन्दुस्तान ने गुरुवार को मॉक ड्रिल के इलाके में बोले रांची कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें स्थानीय लोगों ने कहा- मॉक ड्रिल की तैयारी में कुछ कमियां सामने आईं, जिसे दूर करने की जरूरत है। लोगों ने कहा कि आपदा के समय सुरक्षा और तैयारियों की असली परीक्षा होती है मॉकड्रिल। लेकिन, रांची में हालिया मॉक ड्रिल ने दिखा कि सतर्कता का सायरन तो बजा, लेकिन उसकी आवाज ज्यादा दूर तक नहीं गई।
हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में स्थानीय लोगों ने मॉक ड्रिल पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारा समाज आपात स्थितियों के लिए तैयार है? उन्होंने कहा कि इस ड्रिल का उद्देश्य जनता को संभावित खतरों, विशेषकर बाहरी आक्रमण या आतंकी हमलों की स्थिति में सतर्क और संगठित रहने का अभ्यास कराना था। लेकिन जो सामने आया, वह चिंता का विषय है। न तो लोगों को मॉक ड्रिल की गंभीरता का सही अंदाजा था और न ही दिशा-निर्देशों का स्पष्ट प्रचार हुआ। इससे न केवल भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया कि हमारी सतर्कता प्रणाली में कई कमियां हैं। स्थानीय लोगों ने कहा कि ड्रिल के दौरान शहर में सायरन बजाया गया, जिसका उद्देश्य लोगों को सतर्क करना था। परंतु कई नागरिकों ने इस सायरन को नजरअंदाज कर दिया। कुछ ने इसे अफवाह मानते हुए सामान्य गतिविधियां जारी रखीं। मेकॉन चौक, एजी मोड़ और डोरंडा के कुछ इलाकों को छोड़कर रांची की सभी दुकानें खुली रहीं। वहां रोशनी जलती रही। वाहन सड़क पर चलते रहे और अधिकांश लोग अपनी दिनचर्या में लगे रहे। यह स्थिति दिखाती है कि आम जनता में आपातकालीन स्थितियों के प्रति न तो जागरुकता है और न ही अनुशासन। एक बड़ी समस्या यह भी रही कि सायरन की आवाज ठीक से सुनाई नहीं दी। स्थानीय लोगों ने सवाल उठाते हुए कहा कि डोरंडा में हुई मॉक ड्रिल की आवाज डोरंडा के ही कई बाहरी इलाके, कॉलोनियां और मोहल्ले में नहीं पहुंचे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या एक मात्र सायरन ही सूचना देने का पर्याप्त माध्यम है? लोगों ने कहा कि आधुनिक समय में जब हर व्यक्ति मोबाइल फोन रखता है, तो मोबाइल अलर्ट, एसएमएस, कॉल अलर्ट जैसे वैकल्पिक माध्यमों पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा? सरकार ने ड्रिल के तहत एक संदेश भी प्रसारित किया-निर्धारित समय पर लाइट बंद रखना है। इस पूरी प्रक्रिया में जागरुकता की कमी उभरकर सामने आई। लोग न तो पूरी तरह से जानकारी में थे, न ही उन्हें समय पर निर्देश प्राप्त हुए। लोगों ने कहा- यह आवश्यक है कि सरकार सिर्फ सायरन बजाने तक सीमित न रहे, बल्कि प्रत्येक वार्ड, मोहल्ले और गांव में अभियान चलाकर नागरिकों को जागरूक करे। महत्वपूर्ण यह भी है कि इस प्रकार की ड्रिल केवल प्रतीकात्मक न हो, बल्कि व्यावहारिक रूप से सशक्त और परिणामदायक हो। इसके लिए जरूरी है कि बिजली आपूर्ति नियंत्रण, ट्रैफिक मैनेजमेंट, अस्पतालों और आपदा प्रबंधन इकाइयों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। साथ ही, स्कूलों, कॉलेजों और कार्यालयों में भी इस विषय पर प्रशिक्षण और कार्यशालाएं आयोजित की जाएं, ताकि हर वर्ग के लोग जागरूक हों और आपात स्थिति में सही प्रतिक्रिया दे सकें। धार्मिक स्थलों से दी जाएं सूचनाएं स्थानीय लोगों ने कहा कि आपात स्थिति में सायरन की आवाज शहर के हर इलाके में पहुंचे, इसके लिए प्रशासन को धार्मिक स्थलों की मदद लेनी चाहिए। हर धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर की व्यवस्था होती है। अगर वहां से कोई संदेश प्रसारित किया जाए तो एक समय में हर गली-मुहल्ले में पहुंचाया जा सकता है। लोगाें ने कहा- जागरुकता ही हमारा सबसे बड़ा हथियार है, जो न केवल भय को दूर करता है, बल्कि सुरक्षा भी मजबूत बनाता है। सिविक सेंस और अनुशासन की कमी स्थानीय लोगों ने कहा कि डोरंडा इलाके में मॉक ड्रिल के दौरान लोगों में सिविक सेंस में कुछ कमियां देखने को मिली। लोगों को घरों में रहकर सुरक्षा अभ्यास का पालन करना था। लेकिन, वे बाहर घूमते नजर आए। लोग माॅक ड्रिल देखने सड़कों पर उतर गए। प्रशासन को भी ड्रिल के दौरान अनुशासन बनाए रखने के लिए कड़ाई करनी चाहिए थी। न तो ठीक से निगरानी की गई, न ही लोगों को रोका गया। नतीजतन, मॉक ड्रिल का असली उद्देश्य पीछे छूट गया। प्रशासन की ओर से गाड़ी की लाइट बंद कर चलाने को कहा गया था, लेकिन लोग उसका भी पालन नहीं करते दिखे। डोरंडा क्षेत्र को छोड़कर शहर के कई बड़े संस्थानों में लाइट्स जलते रहे। लोगों ने कहा कि प्रशासन को सख्ती बरतनी चाहिए थी। डोरंडा में मॉक ड्रिल के दौरान माइकिंग व्यवस्था कारगर नहीं स्थानीय लोगों ने कहा कि रांची के डोरंडा क्षेत्र में मॉक ड्रिल के दौरान जिला प्रशासन की माइकिंग व्यवस्था पूरी तरह से कारगर नजर नहीं आई। तय समय पर पूरे इलाके में स्पष्ट सूचना देने के लिए माइकिंग की जानी थी, लेकिन कई जगहों पर माइकिंग की गाड़ियों से गाना बजता रहा, जिससे लोग भ्रमित हो गए। कुछ इलाकों में तो माइकिंग हुई ही नहीं, जिस कारण लोग यह समझ ही नहीं पाए कि मॉक ड्रिल चल रही है। बिजली आपूर्ति बंद तो लोगों ने इनवर्टर से जलाई लाइट रांची में मॉक ड्रिल के दौरान प्रशासन ने पूर्ण ब्लैकआउट की योजना बनाई थी, लेकिन यह पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। डोरंडा क्षेत्र को छोड़कर शहर के अधिकांश मॉल, पेट्रोल पंप और अस्पतालों में बिजली उपलब्ध रही। प्रशासन ने बिजली आपूर्ति बंद की, परंतु लोगों ने इनवर्टर और अन्य वैकल्पिक स्रोतों से लाइट जलाई रखी। इससे आपदा प्रबंधन की वास्तविक तैयारी पर सवाल उठे हैं। समस्याएं 1. लोगों में सिविक सेंस की कमी के चलते मॉक ड्रिल में थोड़ी परेशानी हुई, जागरुकता नहीं दिखी 2. सायरन की आवाज काफी धीमी थी, पांच फीसदी शहर भी नहीं हो पाया कवर 3. बिजली पर नियंत्रण नहीं, खासकर- सौर ऊर्जा, इनवर्टर, जेनसेट की दिक्कतें 4. अस्पताल, पुलिस थाने, पेट्रोल पंप, छावनी इलाके, सरकारी कार्यालय भी जगमगाते रहे 5. ट्रैफिक सिग्नल- यातायात, वाहनों की लाइट को लेकर नहीं किया कोई प्लान सुझाव 1. लोगों में सिविक सेंस के प्रति जागरूक करने के लिए नियमित स्तर पर अभियान चले 2. सायरन के साथ धार्मिक स्थानों पर लगे माइकिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना चाहिए 3. कंप्लीट ब्लैक आउट के प्रति लोगों में जागरुकता की कमी, इसपर अभियान चलाया जाए 4. आम जनता को जागरूक करने के लिए पुलिस थाने, पेट्रोल पंप, सरकारी कार्यालय में कड़ाई हो 5. आपदा के समय यातायात, वाहनों की लाइट को लेकर सराकार को पहल करनी चाहिए किसने क्या कहा एनसीसी एनडीआरएफ टीम, बिजली विभाग, वाटर सप्लाई कर्मी सभी सिविल डिफेंस की भूमिका निभाते हैं। अग्निशमन विभाग सभी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। हम नागरिकों की सुरक्षा के लिए सभी प्रकार के अभ्यास करते हैं, जिसमें आग बुझाने से लेकर लोगों काे सुरक्षित रेस्क्यू करना शामिल है। हाल में हुआ मॉक ड्रिल सफल रहा। -जितेंद्र तिवारी, एडिशनल स्टेट फायर ऑफिसर एनसीसी का निर्माण सैनिक के सहयोग के लिए ही हुआ था। आपातकाल से लड़ने के लिए एनसीसी कैडेट को सैनिक की गतिविधियों का प्रशिक्षण समय-समय पर दिया जाता है। आपात परिस्थितियों में आम नागरिक को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने में सहयोग करते हैं। एनसीसी को पूरी ट्रैनिंग दी जाती है कि वो युद्ध के दौरान सैनिकों की भी मदद कर सकें। -रवि अग्रवाल, एनसीसी आपात स्थिति में लोगों को घबराना नहीं चाहिए। लोगों को ठोस स्थान के नीचे छिपकर, सुरक्षित स्थान की ओर बढ़ना चाहिए। - साईं स्वेमन मॉक ड्रिल के समय लोग रोड से गुजर रहे थे। लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी। कई इलाकों में माइकिंग नहीं की गई। -पुष्कर महतो लाइट बंद करना एक संदेश था, जो अधिकांश लोगों को पहले से ही ज्ञात था। सिविल डिफेंस के लिए हर वार्ड में जागरुकता फैलानी चाहिए। -रिजवान हुसैन मॉक ड्रिल में सायरन बजते ही सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए। इसमें सुधार के लिए सरकार को भी ऐसे अभ्यास लगातार कराने चाहिए। -नसीम गद्दी शहर में मॉक ड्रिल हुई, पर गांव के लोगों को भी जागरूक करना चाहिए। क्योंकि, वे काम से शहर आते हैं। बिना जानकारी खतरे में पड़ सकते हैं। -नरेश कच्छप कई लोगों को जानकारी नहीं होने के कारण अफरा-तफरी का माहौल रहा। जब हर नागरिक सजग होगा, तभी समाज में शांति बनी रहेगी। -जुलफेकार अली एनसीसी रिर्जव फोर्स में आती है। कैडेड्स आपास स्थिति में पब्लिक अवेयरनेस के साथ लोगों की मदद भी करते हैं। -अमरजीत सिंह मॉक ड्रिल के दौरान अनाउंसमेंट हुआ, लाइट नहीं जलानी है। बचाव के तरीके बताए गए, लेकिन लाइट नहीं काटी गई थी। -पुष्पा मॉक ड्रिल में सायरन के आवाज में कमी थी। इस कारण कई इलाकों में इस अलर्ट सिस्टम की आवाज नहीं पहुंची। -हाजी मोहम्मद अकबर अली मॉक ड्रिल में जागरूक की कमी दिखी। निरंतर अभ्यास और समान सहभागिता से ही आपात स्थिति में सभी सचेत सुरक्षित रहेंगे। -जमीला खातून
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