मां के त्याग के बल पर बच्चों ने पाई है सफलता
सिमडेगा जिले की महिलाएं अबला नहीं, बल्कि सबला बन गई हैं। सलीमा टेटे ने अपनी मां के संघर्ष से ओलंपिक तक का सफर तय किया। लीलावती देवी ने पति के निधन के बाद चाय बेचकर अपने बच्चों को पढ़ाया और शादी करवाई।...

सिमडेगा, जिला प्रतिनिधि। अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। नारी की तस्वीर अब ऐसी नहीं है। वह सबला हो गई है। अपनी योग्यता के बल पर घर से लेकर बाहर तक, पति से लेकर बच्चों तक की जिम्मेदारी संभाल रही है। फर्ज के हर मोर्चे पर उतनी ही तन्मयता से कर्तव्य व बहादुरी की संकल्प बद्धता भी। कई मां हैं जो आर्थिक तंगहाली के बावजूद अपने बेटे बेटियों को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने में सफलता पाई है। जिले की हॉकी स्टॉर सलीमा टेटे, महिमा टेटे, संगीता कुमारी, रोपनी कुमारी, व्यूटी डुंगडुंग जैसे कई खिलाड़ी है।
जिन्होंने अपनी मां से प्रेरणा ली है। संघर्षो के बीच पालकर बेटी को बनाया भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे को ओलंपिक एवं भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान बनाने तक का सफर पूरा कराने में उनकी मां सुबानी टेटे का संघर्ष काफी चुनौती भरा रहा है। बड़कीछापर गांव निवासी सुबानी टेटे गृहिणी है। वह अपने पति सुलक्सन टेटे के साथ खेती कार्य कर छह बेटे बेटियों का लालन पालन बखुबी से की। आज अपनी मां सुबानी टेटे के त्याग और संघर्ष के कारण सलीमा ने ओलंपिक तक का सफर तय किया है। सलीमा की छोटी बहन महिमा टेटे भी भारतीय टीम के लिए हॉकी खेल रही है। दो-दो बेटी को हॉकी का स्टार बनाकर देश का नाम रौशन करने वाली मां सुबानी को लोगों ने शुभकामना दी है। सलीमा जिले की पहली बेटी है, जिसने ओलंपिक तक का सफर किया है। रेजा काम कर और चाय बेचकर संवार दी अपने बच्चों की जिंदगी काम करने गए पंजाब गए पति जगेश्वर साहू के लापता होने के बाद कोलेबिरा की लीलावती देवी के समक्ष कई परेशानी उत्पन्न हो गई। कुछ वर्ष बाद पति के मौत की खबर आई। इसके बाद बच्चों की परवरिश करना उनके लिए चुनौती थी। उन्होंने चुनौती को स्वीकार करते हुए हिम्मत नहीं छोड़ी और बच्चों की परवरिश के लिए काम खोजना शुरु कर दिया। लीलावती शुरु में रेजा का काम करती रही। पर रेजा के रुप में होने वाले आय से उनके बच्चों की आवश्यकता पूरी नहीं हुई, तब उन्होंने मार्केट कम्पलेक्स के समीप चाय बेचना शुरु किया। वे कहती है कि शुरु में तो ग्राहक भी नहीं आते थे। जिससे उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था। पर उन्होंने काम नहीं छोड़ा और लगातार चाय बेचती रही। आज चाय बेच कर अपने चार बेटे और एक बेटी की परवरिश की। लीलावती ने अपने सभी बच्चों की शादी भी कर दी है। चारों बेटे और बहू अपनी मां के आंचल के छांव में खुशी और आनंद के साथ जीवन यापन कर रहे है। उनके बुलंद हौसले को आज भी लोग सलाम करते हैं। लीलवती ने बताया कि पति के जाने के बाद वह अपने बच्चों के साथ भाड़े का घर में रहती थी। महीना खत्म होते ही भाड़े का पैसा देना काफी मुश्किल हो रहा था। फिर भी उन्होंने भाड़े का घर में ही रहकर अपने बेटे बेटी की शादी की। फिलहाल सरकार ने उन्हें आवास दिया है। उसी में रहकर अपने बाकी की जिंदगी खु़शी से काट रही है। पति, बेटे एवं बेटी को खोने के बाद भी हिम्मत कर जीवन संवार रही है एभेनजलिस्ता एकल नाली सशक्तिकरण की जिलाध्यक्ष एभेन जलिस्ता कंडुलना विकट परिस्थितियों से जूझते हुए जीवन यापन कर रही है। शादी के महज चार सात बाद ही पति का देहांत हो गया। इसके कुछ दिन बाद ही एकलौते बेटे फिर एक बेटी का निधन हो गया। पति एवं बेटा-बेटी को खोने के बाद एभेन जलिस्ता कंडुलना मानो पूरी तरह से टूट गई थी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और किसी तरह से जूझते हुए एक बेटी को नर्स की पढ़ाई करा रही है।
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