एसिडिटी से परेशान? जानें बचने का तरीका और आयुर्वेदिक उपाय
एसिडिटी कहने को आम समस्या है, पर जब यह होती है तो सामान्य जीवन जीना मुहाल हो जाता है। अगर आप भी एसिडिटी से परेशान हैं और तरह-तरह की दवाएं खाकर थक चुकी हैं तो अब आयुर्वेद के कुछ उपाय आजमाएं, इनके बारे में बता रही हैं वंशिका शर्मा

सामान्य रुटीन से अलग कुछ खाया नहीं कि बस डकार शुरू। बढ़ती उम्र के साथ हमारे आसपास के अधिकांश लोग एसिडिटी की समस्या से जूझने लगे हैं। ब्लोटिंग, गैस और एसिडिटी एक बार शुरू हो जाए तो मन पूरी तरह से अशांत और असहज हो जाता है। हमारे द्वारा खाए गए खाने को पचाने के लिए पेट में संतुलित मात्रा में एसिड का स्राव होना सामान्य प्रक्रिया है। पर, इसी एसिड का स्राव जब अधिक मात्रा में होने लगता है, तो एसिडिटी बनने लगती है। पेट में इकट्ठा एसिड जब बढ़ने लगता है, तो सीने में जलन से लेकर पेट का भारीपन सब बढ़ने लगता है। एसिडिटी वैसे तो एक सामान्य समस्या मानी जाती है, पर इसके लक्षण और इससे होने वाला दर्द हमारी दैनिक गतिविधियों पर असर डाल सकता है। एसिडिटी से छुटकारा पाना है, तो इस समस्या के जड़ पर वार करना जरूरी है वर्ना दवाओं की मदद से आपको समस्या से फौरी राहत मिलेगी और दवाओं का सेवन बंद करते ही एसिडिटी फिर से आपको परेशान करने लगेगी। आयुर्वेद के मुताबिक कौन-से तरीके एसिडिटी की समस्या को जड़ से खत्म करने में आपके लिए मददगार होंगे, आइए जानें:
भर पेट खाने से बचें
आयुर्वेद विशेषज्ञ और आंतों की सेहत की एक्सपर्ट डॉ. डिंपल जांगड़ा कहती हैं कि सभी को 'हरा हची बू' के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। यह एक एक जापानी कहावत है, जिसका अर्थ है 'जब तक पेट 80 प्रतिशत तक भर जाए, तब तक ही खाना खाएं।' इस कहावत की उत्पत्ति जापान के ओकिनावा शहर में हुई, जहां लोग अपनी खाने की आदतों को नियंत्रित करने के तरीके के रूप में इस सलाह का उपयोग करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस शहर के लोगों में हृदय रोग, कैंसर और स्ट्रोक से होने वाली बीमारियों की दर सबसे कम है और यहां जीवन प्रत्याशा काफी लंबी है। विशेषज्ञ कहते हैं, 'एक ब्लेंडर की कल्पना करें। यदि आप इसे ऊपर तक भर देते हैं, तो क्या ब्लेंडर काम करेगा? नहीं ना! आपको ब्लेंडर को अपना काम सही तरीके करने देने के लिए उसमें जगह छोड़नी होगी।' यही नियम आपके पेट के लिए भी है। भोजन को पचाने के लिए पाचन रस, लार, पित्त और हवा के लिए 20 प्रतिशत जगह के लिए छोड़ दें। अगली बार जब आपको तीन ब्रेड के टुकड़े खाने की इच्छा हो, तो दो टुकड़े ही खाएं और कुछ मिनट तक प्रतीक्षा करें, जब तक कि पेट से मस्तिष्क तक संदेश न पहुंच जाए कि आपका पेट भरा है या नहीं। यदि आपको फिर भी और खाने का मन हो, तो ब्रेड का आधा टुकड़ा और खाएं। यह आदत आपको भोजन को पचाने के लिए पेट के लिए कुछ जगह छोड़ने की अनुमति देती है। नियमित रूप से ऐसा करने से धीरे-धीरे एसिडिटी की समस्या जड़ से खत्म हो जाएगी।
कितनी बार चबाती हैं खाना?
भोजन को ठीक से चबाने से मुंह में बहुत अधिक पाचक लार बनती है और यह लार पेट में खाने को पचाने में मददगार साबित होती है। खाने को चबाने का उद्देश्य भोजन को इस तरह से तोड़ना है कि उसकी बनावट खत्म हो जाए। भोजन के ज्यादातर निवाले के लिए, औसतन 32 बार चबाने की सलाह दी जाती है। बेशक, ब्रेड के एक स्लाइस की तुलना में, तरबूज जैसे नरम पानी से भरे भोजन को खाते समय आपको कम चबाना पड़ता है।
खाने के साथ तरल पदार्थ नहीं
जब आप भोजन करते समय तरल पदार्थ पीती हैं, तो यह आपके पेट से पाचन रस को धो देता है। पानी एक ठंडा पदार्थ है और भोजन के दौरान या उसके तुरंत बाद नियमित रूप से इसका सेवन करने से पाचन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है। आयुर्वेद में इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। भोजन करने के बाद पानी पीने से पहले कम से कम आधे घंटे तक प्रतीक्षा करें।
हाथ से खाएं खाना
माना कि आजकल चम्मच, कांटे और छूरी से खाना खाने का चलन बढ़ गया है। पर, अगर आप एसिडिटी की इस समस्या से छुटकारा पाना चाहती हैं तो ठोस खाद्य पदार्थ खाने के लिए अपनी उंगलियों का उपयोग करें। दरअसल, हमारी उंगलियों के अंत में नसों का वह सिरा होता है, जिस पर हाथ से खाना खाते वक्त दबाव पड़ता है और नतीजतन पाचन प्रक्रिया बेहतर होती है। आयुर्वेद के अनुसार, जब आप अपने हाथों से खाती हैं तो स्वाद, बनावट और सुगंध के बारे में अधिक सचेत हो जाती हैं। हाथों से खाना खाने से मस्तिष्क को भोजन की बनावट, तापमान के बारे में संदेश मिल जाता है और खाना जल्दी पचने में मदद मिलती है।
क्या हैं एसिडिटी के लक्षण
सीने में जलन, जो खासतौर से खाना खाने के बाद बढ़ जाती है। यह समस्या रात में ज्यादा परेशान करती है
आगे की ओर झुकने या लेटने पर पेट और उसके आसपास के हिस्से में तेज दर्द का होना
उल्टी और उसके बाद मुंह का स्वाद कड़वा होना
गले में जलन या गले से जुड़ी अन्य समस्याओं का लगातार बने रहना
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