पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक फायदा देता है व्यायाम, जानें क्या कहता है शोध
नियमित व्यायाम से मिलने वाले फायदों के बारे में ज्यादातर लोग वाकिफ होते हैं। डॉक्टर भी अच्छी सेहत के लिए रोजाना कुछ देर व्यायाम करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं व्यायाम करने से पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक फायदा होता है।

हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन। एक हालिया शोध के अनुसार सप्ताह में 300 मिनट का व्यायाम करने के बाद एक स्त्री को एक पुरुष के मुकाबले दिल से संबंधित बीमारी होने की आशंका 24 प्रतिशत कम हो जाती है। इस अध्ययन के मुताबिक किसी भी तरह के व्यायाम का फायदा स्त्रियों को अधिक होता है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुए इस शोध में शामिल डॉक्टर अलेक्जेंडर जेम ने बताया कि घर के काम, बागवानी, डांसिंग, तैराकी और दूसरे शारीरिक काम का भी उतना ही फायदा होता है, जितना जिम जाने का या चलने का। तीस के बाद महिलाओं को अपना मेटाबॉलिज्म दुरुस्त रखने के लिए नियमित व्यायाम पुरुषों की अपेक्षा 12 प्रतिशत अधिक फायदेमंद रहता है।
बुढ़ापे को ना होने दें दिमाग पर हावी
इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन और कोवेंट्री यूनिवर्सिटी में हाल में हुए एक अध्ययन के मुताबिक वो बुजुर्ग जो बुढ़ापे को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, हमेशा सकारात्मक सोचते हैं। वो चोट लगने पर, गिरने पर या बीमार होने पर जल्दी अच्छे हो जाते हैं। इस अध्ययन में शामिल 54 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि वे अपने आपको सेहतमंद रखने के लिए नियमित व्यायाम करते हैं, युवाओं के साथ रहते हैं, दोस्तों के साथ वक्त बिताते हैं। उनकी तुलना में वे बुजुर्ग जो हमेशा अपनी उम्र का रोना रोते हैं, नकारात्मक सोच रखते हैं, शिकायतें करते रहते हैं, वो किसी भी तरह के चोट या बीमारी से उबरने में 65 प्रतिशत अधिक समय लेते हैं। डेली मेल में प्रकाशित इस खबर के अनुसार 65 साल की उम्र के बाद हर दस में से तीन वरिष्ठ रोज गिरते हैं या चोट खाते हैं। इसमें भी महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों से अधिक है। इस अध्ययन में शामिल 58 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उन्हें बूढ़ा होने से डर लगता है और इसकी वजह से उनमें नकारात्मकता बढ़ती जा रही है।
बानू मुश्ताक, बस एक नाम भर नहीं है
कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे हसन में रहने वाली बानू मुश्ताक पिछले कुछ दिनों से अचानक चर्चा में आ गईं हैं। उनकी कन्नड़ किताब के अंग्रेजी अनुवाद को अंतराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है। उनकी कहानियों की किताब का नाम है हार्ट लैंप, जिसका अनुवाद किया है दीपा भास्ती ने। बानू इस खबर के अलावा भी बहुत कुछ हैं, जिसके बारे में हम सबको जानना चाहिए। उनका जन्म ऐसे मुस्लिम परिवार में हुआ, जहां पैसे की कमी थी। लेकिन उनके पिता ने परिवार के मना करने के बावजूद उनका दाखिला कॉन्वेंट स्कूल में करवाया। बानु की जिंदगी में उस समय भूचाल आया, जब प्रेव विवाह करने के बाद उनसे कहा गया कि उन्हें बुर्के में रहना होगा और घर में रहना होगा। बानू नौकरी करना चाहती थीं, अपने दम पर खुद बनना चाहती थीं। फिर एक दिन जब स्थितियां बर्दाश्त से बाहर होने लगीं, तब उन्होंने तय किया कि वे ऐसे नहीं जिएंगी। वो अपने शरीर पर मिट्टी का तेल डालकर माचिस सुलगाने ही जा रही थीं कि उनके शौहर ने उन्हें देख लिया। उन्हें रोका। बानू ने उस दिन तय किया कि अब वो अपनी तरह की औरतों का दर्द दूर करेंगी, उनके लिए काम करेंगी। वो पहले पत्रकार बनीं, फिर वकील। उनकी कहानियों में भी उन जैसी औरतों का दर्द झलकता है। वे समाज के उस वर्ग की बात करती हैं जो शोषण का शिकार है।
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