ऐसे पहचानें आपका ऑफिस है टॉक्सिक, जानें कैसे करें सिचुएशन हैंडल
ऑफिस का खराब माहौल अच्छे-अच्छों के हौसले हिला देता है। पर, अगर आप शुरुआत से ही थोड़ी सतर्क रहें तो इस मुसीबत को हराकर भी आगे बढ़ जाएंगी। कैसे? बता रही हैं स्वाति गौड़

एक मल्टीनेश्नल कंपनी में काम करने वाली 26 वर्षीय नेहा पिछले पांच महीनों से अवसाद का इलाज करवा रही हैं। अपनी बिगड़ चुकी मानसिक सेहत का जिम्मेदार वो अपने दफ्तर के विषाक्त माहौल को मानती हैं, जहां हर समय बस राजनीति होती रहती है। अभी हाल ही में एक और खबर सुर्खियों में आई थी कि कैसे एक युवा इंजीनियर ने अपने काम के दबाव की वजह से आत्महत्या कर ली। इस प्रकार की खबरें यह सवाल उठाती हैं कि कार्यस्थल का मौहल किसी कर्मचारी की मानसिक सेहत को इतना खराब कैसे कर सकता है और इतने विषाक्त माहौल से कैसे बचा जा सकता है?
कनाडा स्थित कार्लटन यूनिवर्सिटी के एक शोध में पाया गया कि कार्यस्थल का विषाक्त माहौल महिलाओं के अपने बच्चों के लालन-पालन के तरीकों के साथ-साथ उनकी मानसिक सेहत पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालता है। काम का कुछ दबाव होना एक सामान्य बात है, लेकिन जब इसका प्रभाव आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर पड़ने लगे तो सचेत हो जाना चाहिए। नौकरी छोड़ देना किसी समस्या का समाधान नहीं है, लेकिन खुद को ऑफिस के विषाक्त माहौल से बचा कर रखा जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कार्यस्थल पर विषाक्त माहौल होता कैसा है।
विषाक्त माहौल की पहचान
मैसाचुसेट्स के बैबसन कॉलेज में मानव व्यवहार विशेषज्ञ प्रोफेसर जेनिफर टोस्टी के अनुसार डेडलाइन का दबाव, कुछ विशेष परिस्थितियों में ज्यादा काम करने का दबाव या मीटिंग में बॉस अथवा सहकर्मियों के साथ एकमत ना हो पाना विषाक्त नहीं होता है क्योंकि यह सब कामकाज का हिस्सा है। लेकिन जब आपको महसूस हो कि बिना किसी बात के आपको निशाना बनाया जा रहा है या बॉस अकारण ही परेशान कर रहे हैं तो समझ जाएं कि माहौल खराब हो रहा है। ऐसी स्थिति में आप स्पष्ट रूप से अपनी बात कह नहीं पातीं, नतीजतन तनाव आपको घेरने लगता है। कार्यस्थल पर ऐसा व्यवहार अकसर दूसरों को कमतर आंकने, अपमानित करने या अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए किया जाता है। यह एक गंभीर समस्या है, इसलिए इसे लंबे समय तक नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
करीबी लोगों से करें बात
बहुत सी महिलाओं की आदत होती है कि वह अपनी परेशानियां किसी के साथ साझा नहीं करती हैं। पर, सब कुछ अपने ही अंदर समेटे रहने से तनाव, खीझ और व्यवहार में झल्लाहट बढ़ जाती है। इसलिए अपने परिवार के सदस्यों या करीबी मित्रों से अपनी परेशानियां साझा अवश्य करें। इससे समाधान चाहे ना निकले, लेकिन मन जरूर हल्का हो जाएगा और आप बेहतर महसूस करेंगी।
निर्धारित करें सीमाएं
विषाक्त माहौल से निकलने का सबसे आसान रास्ता है, नौकरी बदलना। पर, कभी-कभी पारिवारिक जिम्मेदारियां और आर्थिक स्थिति ऐसा करने की अनुमति नहीं देती है। ऐसे में आप अपनी सीमाओं का निर्धारण करें। जैसे यदि कोई सहकर्मी आपको परेशान करता है तो आप अपनी शिफ्ट बदल सकती हैं। इसी प्रकार यदि परेशानी बॉस से है तो अपने काम में गलती की कोई गुंजाइश ही ना छोड़ें। जब बॉस को आपके काम में कोई कमी नजर नहीं आएगी, तो वो भी परेशान नहीं कर पाएगा। जब कोई जबर्दस्ती अपने काम का बोझ आप पर लादने लगे तो स्पष्टता से मना कर दें। ऑफिस पॉलिटिक्स से दूर रहें और अपने काम से काम रखें। यदि परेशानी ज्यादा बढ़ जाए तो काम से कुछ दिन का ब्रेक लें ताकि अपने ऊपर ध्यान दे सकें।
कहते हैं कि सामने वाला आपसे वैसा ही व्यवहार करता है, जैसा आप उसे करने की अनुमति देती हैं। इसलिए अपना पूरा ख्याल रखें और सिर्फ काम को ही अपनी जिंदगी ना बनाएं। छुट्टी होने के बाद देर तक काम करना या हर काम की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले लेना आपको शारीरिक और मानसिक रूप से खाली कर देता है। इससे दूसरे लोगों की नजरों में भी आपकी अहमियत कम होने लगती है। अपने बॉस, सीनियर और जूनियर सहकर्मियों के साथ टीम के रूप में काम करें, लेकिन बात-बात पर भावुक होकर प्रतिक्रिया देने से बचें। समझदारी इसी बात में है कि दफ्तर के साथ-साथ अपनी निजी और सामाजिक जिंदगी पर भी पूरा ध्यान दिया जाए।
(डॉ. जया सुकुल, विभाग प्रमुख एवं सलाहकार- क्लीनिकल साइकोलॉजी, मैरिंगों एशिया हॉस्पिटल से बातचीत पर आधारित)
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