महिलाओं को अब क्यों आ रहा है ज्यादा गुस्सा, जानें कारण और कंट्रोल करने के उपाय why women getting more angry and irritated now a days

महिलाओं को अब क्यों आ रहा है ज्यादा गुस्सा, जानें कारण और कंट्रोल करने के उपाय

अपनी भावनाओं को मन की गठरी में दबाकर रखने वाली महिलाओं को अब खूब गुस्सा आने लगा है और वे अपने गुस्से को जाहिर भी करने लगी हैं। महिलाओं के स्वभाव में आए इस बदलाव की वजह क्या है और कैसे गुस्से पर पाएं काबू, बता रही हैं स्वाति गौड़

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 13 June 2025 01:06 PM
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महिलाओं को अब क्यों आ रहा है ज्यादा गुस्सा, जानें कारण और कंट्रोल करने के उपाय

कुछ समय पहले भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर को गुस्से में बैट से स्टंप तोड़ देने की वजह से जुर्माना और मैच पर प्रतिबंध की सजा झेलनी पड़ी थी। कुछ दिन पहले ही बेंगलुरु में एक महिला ने ऑटो रिक्शा चालक की गुस्से में पिटाई कर दी थी, क्योंकि उसके ऑटो से महिला की गाड़ी में हल्का निशान पड़ गया था। ऐसी खबरें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि महिलाओं में बढ़ते इस आक्रामक व्यवहार की वजह क्या है?

2015 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जब महिलाएं और पुरुष एक निर्णायक समूह में अपनी राय व्यक्त करते हैं तो पुरुषों में क्रोध का भाव ज्यादा देखने को मिलता है, जबकि महिलाएं अपना गुस्सा जाहिर नहीं करती हैं। पर, लंबे समय तक अंदर दबा गुस्सा अचानक बड़े विस्फोट के रूप में बाहर आता है। दरअसल, क्रोध ऐसी ऊर्जा है, जिसके लिए तनाव बढ़ाने वाला कोर्टिसोल हार्मोन भी काफी हद तक जिम्मेदार होता है। जब लंबे समय तक हम अपने गुस्से को दबाए रखते हैं, तो यह हमारी सेहत के साथ-साथ रिश्तों पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव डालने लगता है। लंदन की प्रसिद्ध मनोचिकित्सक जेनिफर कॉक्स अपनी किताब ‘वुमेन आर एंग्री: व्हाई योर रेज इज हाइडिंग एंड हाउ टू लेट इट आउट’ में लिखती हैं कि 'सदियों से गुस्सा दिखाने वाली महिलाओं को अत्यधिक भावुक, संवेदनशील और मानसिक रूप से अस्थिर माना जाता रहा है। जबकि प्यार, खुशी और रोमांच के भाव की तरह ही गुस्से का भाव भी पूरी तरह सामान्य है।' इसलिए यह आवश्यक है कि बिना लिंग भेद किए क्रोध के भाव को भी स्वीकार किया जाए।

कमजोरी नहीं है गुस्सा

हम सभी के लिए यह समझना जरूरी है कि गुस्सा कोई कमजोरी नहीं बल्कि एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। अपने रोजमर्रा के जीवन में महिलाएं बहुत ज्यादा तनाव, छोटी-छोटी कुंठाएं, स्वयं को साबित करने की जद्दोजहद और अपनी बात मुखर होकर ना कह पाने जैसी इतनी सारी बातें झेलती हैं कि एक समय के बाद यह सब विकराल गुस्से का रूप ले लेता है। पुरुषों का यही गुस्सैल व्यवहार सामान्य माना जाता है, जबकि महिलाओं को भावुक या झगड़ालू करार दे दिया जाता है। लेकिन गुस्सा आना स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे हमेशा दबाकर नहीं रखा जा सकता। दुनिया भर की ज्यादातर सभ्यताओं में समाज पुरुष प्रधान ही रहा है, जहां महिलाओं का काम घर और बच्चे संभालने तक सीमित रहा है। आज भी अधिकतर परिवारों में परिवार के मुखिया के गुस्से को तो गंभीरता से लिया जाता है, लेकिन महिलाओं के क्रोध को मूड स्विंग या हार्मोंस का उतार-चढ़ाव कहकर टाल दिया जाता है। लेकिन स्त्री और पुरुष में सिर्फ लिंग का अंतर उनकी संवेदनाओं और भावनाओं को प्रभावित नहीं कर सकता है। महिलाओं में गुस्सा बढ़ने के पीछे कई सामाजिक और मानसिक कारण जिम्मेदार हैं:

रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताएं

‘लोग क्या कहेंगे’ एक ऐसा अनकहा दबाव है, जो महिलाओं को बहुत गहरे स्तर पर प्रभावित करता है। 2014 में करीना कपूर और अर्जुन कपूर अभिनीत एक फिल्म आई थी, की एंड का, जिसमें नायक घर और नायिका दफ्तर संभालती थी। यह फिल्म सिर्फ इसलिए नहीं चली, क्योंकि लोग नायिका के इस नए रूप को हजम नहीं कर पाए। हाल ही में आई फिल्म ‘मिसेज’ भी महिलाओं में बढ़ते असंतोष और गुस्से के मुद्दे को उठाती है। लेकिन ऐसा ही असल जिंदगी में भी होता है। घर या बच्चों की देखभाल ना करने वाली महिलाओं को समाज सवालिया नजरों से देखता है, जिससे बचने के लिए अकसर महिलाएं सारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए मजबूर हो जाती हैं।

अपेक्षाओं का दबाव

महिला चाहे घरेलू हों या कामकाजी, उससे अपेक्षा यही की जाती है कि वह दफ्तर और परिवार की सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह सही तरीके से करे। सुबह बच्चों और पति का टिफिन तैयार करने से शुरू हुई दिनचर्या रात को अगले दिन की तैयारी करने के साथ ही खत्म होती है। परिणामस्वरूप नींद पूरी ना होना, हर समय थकान बने रहना, चिड़चिड़ाहट और झल्लाहट जैसी परेशानियां बढ़ने लगती हैं।

खुद को समय ना दे पाना

‘मी टाइम’ यानी अपने लिए समय निकालने की पैरवी तो सभी करते हैं, लेकिन कितनी महिलाएं ऐसी हैं जो वास्तव में रोजाना अपने लिए कुछ समय निकाल पाती हैं? लगातार चलने पर एक मशीन भी गर्म हो जाती है, तो भला एक जीवित इंसान सामान्य कैसे रह सकता है। जब आराम का समय नहीं मिलता है, तो गुस्सा आना स्वाभाविक है।

शारीरिक कारण भी हैं जिम्मेदार

महिलाओं में बढ़ते गुस्से के लिए अकसर शारीरिक बदलाव भी जिम्मेदार होते हैं। जैसे किसी 10-12 साल की लड़की के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव उसे असहज और चिड़चिड़ा बना देते हैं। कभी-कभी शारीरिक बनावट और वजन भी लड़कियों को आक्रामक बना देता है और लोगों की टीका-टिप्पणी से बचने के लिए वह गुस्से को अपनी ढाल बना लेती हैं। इसी प्रकार मेनोपॉज के दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव भी

महिला को गुस्सैल बना सकते हैं। इस तरह का बढ़ता गुस्सा हाई ब्लड प्रेशर, तनाव, अवसाद और हृदय संबंधी रोगों का कारण भी बन सकता है।

क्या कहते हैं अध्ययन

2022 में एनालिटिक्स फर्म गैलप द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार दस साल पहले तक करीब 27 प्रतिशत महिलाओं को गुस्सा आता था, लेकिन अब 40 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं क्रोध महसूस करने लगी हैं। जबकि पुरुषों में पिछले दस सालों से यह आंकड़ा 30 प्रतिशत पर ही स्थिर है। 2016 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी ने भी 100 लोगों पर एक शोध किया। जिसमें 30 प्रतिशत महिलाओं ने बहुत ज्यादा क्रोध महसूस किया, जबकि पुरुषों में 22 प्रतिशत ने ही इस स्तर के क्रोध का अनुभव किया।

7 उपायों से गुस्सा होगा कम

अगली बार तेज गुस्सा आने पर बहस करने की बजाय लंबी और गहरी सांस लेने का अभ्यास करें। इससे आपके दिल की धड़कन सामान्य होने लगेगी और आप शांत महसूस करने लगेंगी।

जब तेज गुस्सा आता है तो सामने पड़ी हरेक चीज तोड़ देने की तीव्र इच्छा होने लगती है। ऐसी स्थिति में तेज कदमों से चहलकदमी करना या सैर पर चले जाना गुस्सा शांत करने का रामबाण इलाज माना जाता है। आप भी इसे आजमाकर देखें।

तेज गुस्सा ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है और महसूस होता है मानो शरीर से गर्म ऊर्जा बाहर निकल रही है। ऐसी स्थिति में घूंट-घूंट करके ठंडा पानी पीने से बहुत राहत मिलती है और ब्लड प्रेशर भी जल्दी सामान्य हो जाता है।

अकसर ऐसे अवसर आते हैं, जब हम चाहकर भी अपना गुस्सा जाहिर नहीं कर पाते हैं और मन ही मन कुढ़ना पड़ता है। लेकिन आप डायरी में अपनी सारी भावनाएं लिखकर मन की भड़ास निकाल सकती हैं।

दूसरों की नजरों में अच्छा बने रहने के लिए हर कम को हां कहना आपको चिड़चिड़ा बना सकता है। हमेशा अपनी जरूरतों को पीछे रखना भी तनाव बढ़ाता है, इसलिए जिस काम में सहज महसूस ना करें उसके लिए शालीनता से मना कर दें।

परिवार की अच्छी देखभाल करने के लिए खुद पर भी ध्यान देना जरूरी है। जब आप अच्छा महसूस करेंगी, तो ज्यादा अच्छे तरीके से अपनी जिम्मेदारियां निभा पाएंगी।

कोई बात यदि परेशान कर रही है तो चीखने-चिल्लाने की बजाय शांति से अपनी बात रखें। यह नियम आपसी रिश्तों में भी लागू होता है। आपसी तकरार हो जाने पर बात को तूल देने की बजाय आमने-सामने बैठ कर बात करें ताकि समस्या का समाधान निकाला जा सके।

(श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली में मनोविशेषज्ञ डॉ. पल्लवी जोशी से बातचीत पर आधारित)

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