अमेरिकी दबाव में भारत ने पाकिस्तान के साथ किया परमाणु समझौता? कांग्रेस-भाजपा में तीखी नोकझोंक
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने दावा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में भारत ने अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान के साथ यह समझौता किया था।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1988 में हुए परमाणु समझौते को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच तीखी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने दावा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में भारत ने अमेरिकी दबाव में आकर पाकिस्तान के साथ यह समझौता किया था। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इन दावों को खारिज करते हुए बीजेपी पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया है।
निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भेजे गए एक कथित 'डिक्लासिफाइड' पत्र को शेयर करते हुए कहा, “जब मैंने यह पत्र देखा तो मुझे आत्म ग्लानि आई। अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने राजीव गांधी को पत्र भेजा और अमेरिकी दबाव में हमने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जिया से बात की। परमाणु वार्ता का एजेंडा अमेरिका ने तय किया। यह समझौता अमेरिकी दबाव में हुआ था।”
कांग्रेस का पलटवार: "धन्यवाद बीजेपी, हमें प्रचार देने के लिए"
बीजेपी के इन दावों पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि बीजेपी जिस पत्र का हवाला दे रही है, उसमें राष्ट्रपति रीगन ने भारत से अफगानिस्तान के मामले में मदद की अपील की थी। खेड़ा ने कहा, “अगर आप ध्यान से उस पत्र को पढ़ेंगे, तो उसमें रीगन भारत से अफगानिस्तान में मदद की गुजारिश कर रहे हैं। उस समय भारत की भूमिका कितनी अहम थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। रीगन की भाषा थी ‘आई ऑफर टू असिस्ट’ यानी वह भारत की मदद करने की पेशकश कर रहे थे, न कि भारत पर दबाव बना रहे थे।” पवन खेड़ा ने यह भी तंज कसा कि “आज अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मोदी जी को धमकी देते हैं और प्रधानमंत्री चुप रहते हैं। यह तुलना बताती है कि उस समय और आज की सरकारों में कितना अंतर है।”
1988 भारत-पाक परमाणु समझौता क्या था?
1988 में भारत और पाकिस्तान ने एक ऐतिहासिक परमाणु समझौता किया था, जिसे "नॉन न्यूक्लियर एग्रेसन एग्रीमेंट" कहा जाता है। इस समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते में दोनों देशों ने यह संकल्प लिया कि वे एक-दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं पर हमला नहीं करेंगे, और न ही किसी तीसरे देश की मदद से ऐसा कोई हमला करेंगे। हालांकि समझौते पर हस्ताक्षर 1988 में हुए थे, लेकिन इसे दोनों देशों की संसद ने जनवरी 1991 में मंज़ूरी दी थी और तभी से यह लागू हुआ।
अमेरिका की भूमिका क्या थी?
इस समझौते के पीछे वैश्विक स्तर पर बदलते परमाणु समीकरणों का बड़ा हाथ था। इससे ठीक एक साल पहले, 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचोव ने इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स (INF) समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे शीत युद्ध के तनावों में कमी आई। उससे भी पहले, 1984 में अमेरिका ने 'छह राष्ट्र पांच महाद्वीप शांति पहल' की शुरुआत की थी, जिसमें भारत, अर्जेंटीना, ग्रीस, मैक्सिको, स्वीडन और तंजानिया शामिल थे। इस पहल का मकसद वैश्विक स्तर पर परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाना और शांति स्थापित करना था।
उस दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रही होड़ में परमाणु निरस्त्रीकरण एक बड़ा मुद्दा था, और भारत-पाक समझौता उसी वैश्विक नीति का हिस्सा माना जा सकता है। इसलिए अमेरिका की भूमिका अगर थी भी, तो वह भारत पर दबाव की बजाय अपने वैश्विक भू-राजनीतिक एजेंडे को लेकर थी।