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पूर्वोत्तर राज्यों पर बुरी नजर बर्दाश्त नहीं, बांग्लादेश को सबक सिखाने की तैयारी; क्या है कलादान प्रोजेक्ट?

भारत ने बांग्लादेश के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए और कलादान प्रोजेक्ट के जरिए म्यांमार के सितवे बंदरगाह से पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़कर बांग्लादेश पर निर्भरता कम करने की रणनीति अपनाई है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 18 May 2025 11:46 AM
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पूर्वोत्तर राज्यों पर बुरी नजर बर्दाश्त नहीं, बांग्लादेश को सबक सिखाने की तैयारी; क्या है कलादान प्रोजेक्ट?

पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के विवादास्पद बयानों के बाद, भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव चरम पर है। भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। एक दिन पहले 17 मई को भारत ने बांग्लादेश से आने वाले रेडीमेड गारमेंट्स और अन्य उत्पादों के आयात पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। यह कदम बांग्लादेश द्वारा भारतीय धागे, चावल और अन्य सामानों पर लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में उठाया गया है। भारत ने असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और पश्चिम बंगाल के फुलबारी और चांगराबंधा जैसे पूर्वोत्तर के भूमि बंदरगाहों के माध्यम से बांग्लादेशी सामानों के प्रवेश पर रोक लगा दी है।

इसके अलावा, भारत अब बांग्लादेश को पूरी तरह से अलग-थलग करने में जुटा है। भारत ने पूर्वोत्तर राज्यों को कोलकाता से जोड़ने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना को हरी झंडी दिखाई है, जो म्यांमार के रास्ते समुद्री मार्ग से गुजरेगी और बांग्लादेश को पूरी तरह से दरकिनार करेगी। इस परियोजना में मेघालय के शिलांग से असम के सिलचर तक 166.8 किलोमीटर लंबा चार-लेन वाला हाई-स्पीड राजमार्ग शामिल है, जो म्यांमार में चल रही 'कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट' (KMMTTP) का विस्तार होगा। यह कदम न केवल क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा, बल्कि भारत की सामरिक स्वायत्तता और 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को भी मजबूत करेगा। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

म्यांमार के रास्ते नया गलियारा, बांग्लादेश को दरकिनार करने की रणनीति

भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में हालिया गिरावट के चलते पूर्वोत्तर भारत तक संपर्क के लिए कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट यानी KMMTTP की अहमियत काफी बढ़ गई है। म्यांमार के रास्ते मिजोरम को कोलकाता और विशाखापत्तनम से जोड़ने वाली यह बहुप्रतीक्षित परियोजना अब भारत के लिए रणनीतिक रूप से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बन गई है।

शिलांग-सिलचर हाईवे को मिली मंजूरी

इंडियन एक्सप्रेस की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, इसी कड़ी में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने शिलांग से सिलचर तक 166.8 किलोमीटर लंबे फोर लेन हाईवे को मंजूरी दे दी है। इसे आगे मिजोरम के जोरिनपुई तक बढ़ाया जाएगा और यह KMMTTP को पूर्वोत्तर भारत के दिल में दौड़ती हाई-स्पीड सड़क से जोड़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम बांग्लादेश की नई सरकार की भारत विरोधी टिप्पणियों के बाद उठाया गया है।

बांग्लादेश के नए रुख से भारत चिंतित

बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता से विदाई के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट आई है। हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने चीन की यात्रा के दौरान पूर्वोत्तर भारत को "लैंडलॉक्ड" कहा और बांग्लादेश को "समुद्र का एकमात्र संरक्षक" बताया। इस बयान को भारत ने आपत्तिजनक और रणनीतिक रूप से संवेदनशील माना, क्योंकि यह पूर्वोत्तर भारत के लिए महत्वपूर्ण "चिकन नेक" कॉरिडोर की सुरक्षा से जुड़ा है। इसके जवाब में,

चिकन नेक की रणनीतिक चुनौती

वर्तमान में भारत से पूर्वोत्तर राज्यों तक केवल एक संकीर्ण संपर्क मार्ग- सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे "चिकन नेक" कहा जाता है) उपलब्ध है। यह नेपाल और बांग्लादेश के बीच केवल 20 किलोमीटर चौड़ा है और भारत की रणनीतिक दृष्टि से इसे लंबे समय से कमजोर कड़ी माना जाता रहा है।

बांग्लादेश के रास्ते संपर्क की योजना धरी की धरी

शेख हसीना सरकार के दौरान भारत ने बांग्लादेश के जरिए पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने की दिशा में कई योजनाएं बनाई थीं। अगर ये योजना अमल में आतीं, तो पूर्वोत्तर के अलावा बांग्लादेश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता। लेकिन ढाका में एक नई, “भारत विरोधी” सरकार के आने के बाद, ये योजनाएं धरी की धरी रह गई हैं। बांग्लादेशी सरकार के “भारत-विरोधी रुख” के कारण भारत को पूर्व की ओर देखने की नीति को दोबारा बल देना पड़ा है।

क्या है कलादान परियोजना?

कलादान मल्टी-मोडल प्रोजेक्ट को भारत और म्यांमार के बीच 2008 में साइन किया गया था। इसका उद्देश्य म्यांमार के रखाइन राज्य के सितवे पोर्ट से मिजोरम को जोड़ना है, ताकि भारत के पूर्वी बंदरगाहों- विशेष रूप से कोलकाता से माल को मिजोरम तक कम समय में पहुंचाया जा सके। इस परियोजना से कोलकाता से मिजोरम तक की दूरी लगभग 1,000 किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा समय 3 से 4 दिन तक घट जाएगा।

परियोजना के चार प्रमुख हिस्से:

कोलकाता से सितवे (539 किमी) – समुद्री मार्ग से कवर किया जाएगा। सितवे पोर्ट को अपग्रेड करने का काम पूरा हो चुका है।

सितवे से पलटवा (158 किमी) – कलादान नदी के जरिए नौका मार्ग से कवर किया जाएगा। नदी को नौपरिवहन योग्य बना दिया गया है और जेट्टी निर्माण पूरा हो चुका है।

पलटवा से जोरिनपुई (108 किमी) – म्यांमार के अंदर सड़क मार्ग का हिस्सा है। इसमें से अंतिम 50 किलोमीटर का काम अब भी अधूरा है।

जोरिनपुई से आइजोल व अन्य भाग – यह मिजोरम में सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। भारत अब इस हाईवे को शिलांग से जोरिनपुई तक हाई-स्पीड कॉरिडोर के रूप में विस्तारित करने की योजना बना रहा है।

रखाइन राज्य में अस्थिरता बनी सबसे बड़ी बाधा

हालांकि परियोजना 2016 तक पूरी होनी थी, लेकिन म्यांमार के रखाइन राज्य में चल रही हिंसा और अस्थिरता के कारण इसमें काफी देरी हुई है। 2021 में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति है। BBC की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार की सेना (Tatmadaw) केवल 21% भू-भाग पर ही नियंत्रण रखती है। बाकी क्षेत्र विभिन्न जातीय गुटों के हाथ में हैं। परियोजना वाले क्षेत्र पर मुख्यतः अराकान आर्मी (अब रखाइन आर्मी) का नियंत्रण है, जिसे यांगून की सैन्य सरकार एक आतंकवादी संगठन मानती है। लेकिन भारत के लिए राहत की बात यह है कि यह संगठन खुद को परियोजना का समर्थक बता रहा है।

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अराकान आर्मी का समर्थन

रखाइन आर्मी के प्रवक्ता खैंग थू खा ने 2024 में द डिप्लोमैट को बताया, “हम 2021 से कलादान परियोजना को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। परियोजना को किसी तरह का सुरक्षा खतरा नहीं है।” भारत सरकार ने 2022 में IRCON इंटरनेशनल लिमिटेड के साथ एक नया कॉन्ट्रैक्ट किया है, जिसके तहत अधूरे हिस्से को 40 महीनों के भीतर पूरा करना है। हालांकि कॉन्ट्रैक्ट में यह प्रावधान है कि युद्ध, दंगे या नागरिक अव्यवस्था की स्थिति में समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। IRCON ने स्थानीय ठेकेदारों से अनुबंध कर लिया है, लेकिन जमीनी काम की गति अब भी धीमी बनी हुई है।

बांग्लादेश को दरकिनार करने की रणनीति

यह परियोजना भारत-बांग्लादेश संबंधों में हाल के तनाव के बाद विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मुहम्मद यूनुस के पूर्वोत्तर पर दिए गए बयान को भारत ने चुनौती के रूप में लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2025 में बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान यूनुस से मुलाकात में ऐसी "विभाजनकारी बयानबाजी" से बचने की सलाह दी थी।

सामरिक और आर्थिक लाभ

सामरिक स्वायत्तता: यह मार्ग भारत को बांग्लादेश की अनुमति के बिना पूर्वोत्तर तक माल और संसाधनों की निर्बाध पहुंच प्रदान करेगा।

आर्थिक विकास: यह परियोजना पूर्वोत्तर को भारत के पूर्वी बंदरगाहों (कोलकाता और विशाखापट्टनम) से जोड़ेगी, जिससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिलेगा। सिलचर, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर और बराक घाटी के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में उभरेगा।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी: यह परियोजना भारत की 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को मजबूत करेगी, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, विशेष रूप से म्यांमार और आसियान देशों के साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को बढ़ाना है।

चीन के प्रभाव का मुकाबला: बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत, भारत के लिए चिंता का विषय है। यूनुस की चीन यात्रा के दौरान 2.1 अरब डॉलर के निवेश और कर्ज के वादे ने भारत की चिंताओं को और बढ़ा दिया। कलादान प्रोजेक्ट भारत को म्यांमार और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद करेगा।