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‘हम दो, हमारे दो’ से क्यों भाग रहा इंडिया? नौकरी, घर जैसी बाधाएं गिना रहे नौजवान

संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या पर ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में नौजवान लोग बच्चे पैदा करने में नौकरी की असुरक्षा और सीमित घर को बाधा के तौर पर देख रहे हैं।

भाषा नई दिल्लीTue, 10 June 2025 08:08 PM
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‘हम दो, हमारे दो’ से क्यों भाग रहा इंडिया? नौकरी, घर जैसी बाधाएं गिना रहे नौजवान

नौकरी रहेगी या जाएगी, इस बात की चिंता और घर में सीमित जगह को औसत भारतीय नौजवान बच्चा पैदा करने में एक बाधा के तौर पर देख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा जनसंख्या को लेकर मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्तीय सीमाएं भारत में प्रजनन स्वतंत्रता की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक हैं और करीब 38 प्रतिशत लोगों का कहना है कि यह उन्हें मनचाहा परिवार शुरू करने से रोक रही है। यूएनएफपीए की विश्व आबादी की स्थिति (SWOP) 2025 रिपोर्ट ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस’ में भारत सहित 14 देशों में 14,000 लोगों से ऑनलाइन सर्वेक्षण के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला गया है। इसमें 1048 भारत से थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नौकरी की असुरक्षा (21 प्रतिशत), आवास की कमी (22 प्रतिशत) और बच्चे की भरोसेमंद देखभाल की कमी (18 प्रतिशत) के कारण ये लोग माता-पिता बनने से झिझक रहे हैं। इसके अलावा खराब सामान्य स्वास्थ्य (15 प्रतिशत), बांझपन (13 प्रतिशत) और गर्भावस्था से संबंधित देखभाल तक सीमित पहुंच (14 प्रतिशत) जैसी स्वास्थ्य बाधाएं भी हैं। यूएनएफपीए ने कहा कि कई लोग भविष्य की चिंता के कारण भी बच्चे पैदा करने से कतराते हैं। जलवायु परिवर्तन से लेकर राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता भी वजह हैं। 19 प्रतिशत लोगों को अपने साथी या परिवार से कम बच्चे पैदा करने के दबाव का भी सामना करना पड़ता है।

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रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि महिलाओं को अभी भी अपने प्रजनन जीवन के बारे में स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में प्रजनन असमानताएं बनी हुई हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर उच्च है, वहीं दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से कम है। प्रतिस्थापन दर वो दर है जो आबादी को बनाए रखने के लिए जरूरी है।

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UNFPA इंडिया की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा, “भारत ने 1970 के दशक में औसतन प्रति महिला 5 बच्चों से आज लगभग 2 तक की यात्रा तय की है। मातृ मृत्यु दर में गिरावट आई है। लेकिन सामाजिक असमानताएं अब भी बनी हुई हैं। असल जनसांख्यिकीय लाभ तब मिलेगा जब हर व्यक्ति को अपने प्रजनन फैसले लेने की आज़ादी और संसाधन मिलेंगे। भारत विश्व को दिखा सकता है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि साथ-साथ कैसे चल सकते हैं।”

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