सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रपति के सवालों से भड़के स्टालिन, 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखा पत्र
8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में फैसला दिया कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। कोर्ट ने राज्यपाल के लिए एक महीने और राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की।

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने पश्चिम बंगाल समेत 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर निर्धारित समयसीमा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भेजे गए राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध करने की अपील की। साथ ही, इसे लेकर कानूनी रणनीति तैयार करने की वकालत की। दरअसल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर सवाल उठाए हैं, जिसने विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्यपाल को विधेयक पर एक महीने और राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। अगर समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता, तो विधेयक को स्वीकृत माना जाएगा। इस फैसले ने संवैधानिक शक्तियों के संतुलन पर बहस छेड़ दी है।
सीएम स्टालिन ने आरोप लगाया, ‘भाजपा सरकार ने इस मामले में संदर्भ मांगने के लिए जोर दिया है, जो उनके भयावह इरादे की ओर इशारा करता है।’ उन्होंने गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राष्ट्रपति की ओर से मांगे गए इस संदर्भ का विरोध करने की अपील की। उन्होंने 17 मई को लिखे पत्र में कहा, ‘हमें न्यायालय के समक्ष एक समन्वित कानूनी रणनीति अपनानी चाहिए। संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए संयुक्त मोर्चा प्रस्तुत करना चाहिए, जैसा कि हमारे उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय (तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल में बरकरार रखा है।' उन्होंने कहा, ‘मैं इस अहम मुद्दे में आपके तत्काल और व्यक्तिगत हस्तक्षेप की आशा करता हूं।’ पश्चिम बंगाल के अलावा, स्टालिन ने कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, केरल, झारखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है।
शक्तियों के विभाजन पर छिड़ी बहस
यह मामला तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की ओर से 10 विधेयकों को लंबित रखने के बाद शुरू हुआ, जिसे कोर्ट ने अवैध ठहराया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई थी। अब मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को पांच या अधिक जजों की संविधान पीठ गठित कर इन सवालों पर राय देनी होगी। यह विवाद कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन पर गहन बहस को जन्म दे रहा है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)