OBC समीकरण साधने का दांव? छगन भुजबल फिर बने फडणवीस सरकार में मंत्री; मुंडे की ली जगह
एनसीपी नेता छगन भुजबल को फिर से एक बार महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। वह धनंजय मुंडे की जगह लेंगे।

महाराष्ट्र की सरकार में दिग्गज एनसीपी नेता छगन भुजबल की एक बार फिर वापसी हो गई है। महायुति की बड़ी जीत के बाद देवेंद्र फडणवीस की सरकार में पहले छगन भुजबल को जगह नहीं दी गई थी। माना जा रहा था कि इस फैसले से वह नराज हैं। हालांकि अब उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। जानकारों का कहना है कि यह एक तरफ छगन भुजबल को मनाने की कोशिश है तो दूसरी तरफ ओबीसी वोटों को साधने की योजना भी है।
पांच महीने पहले देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बनी सरकार में 33 कैबिनेट और 6 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली थी। हालांकि छगन भुजबल को शपथ नहींदिलाई गई थी। सरकार में बीजेपी से 19, शिवसेना से 11 और एनसीपी से 9 मंत्री बनाए गए थे। वहीं धनंजय मुंडे ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया। ऐसे में एनसीपी कोटे की एक सीट खाली हो गई। छगन भुजबल को धनंजय मुंडे की जगह मंत्री बनाया गया है।
छगन भुजबल राज्य की सरकार में पहले भी बड़ी जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। ऐसे में उनको मंत्रिमंडल में ना शामिल किए जाने पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे। उनकी नाराजगी की भी खबरें थीं। छगन भुजबल बड़ा ओबीसी चेहरा माने जाते हैं। छगन भुजबल ने दावा किया था कि शिक्षौ और नौकरियों में मराठा आरक्षण की मांग करने वाले मनोज जरांगे का विरोध करने की वजह से उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया था। उन्होंने अजित पवार के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि उन्हें इस तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है।
बिगड़ रहा था ओबीसी समीकरण?
रिपोर्ट्स के मुताबिक छगन भुजबल की नाराजगी की वजह से महायुति में ओबीसी वोटों को समीकरण गड़बड़ हो रहा था। 2023 में जब एनसीपी टूटी थी तब भुजबल अजित पवार के साथ खड़े होने वाले सबसे वरिष्ठ नेता था। ऐसे में उनको मंत्रिमंड में जगह ना देना अजित पवार की छवि को भी धक्का लगाने वाला था।
महाराष्ट्र में ओबीसी की आबादी 28 फीसदी के आसपास है। वहीं मराठा समुदाय करीब 28 फीसदी है। ओबीसी में लोहार, कुर्मी, धनगर, घुमंतू, कुनबी, बंजारा, तेली और माली जैसी जातियां हैं। ओबीसी में करीब 350 जातियां आती हैं। वहीं महाराष्ट्र में सियासत लंबे समय से मराठा समुदाय बनाम गैर मराठा समुदाय चलती रही है. गैर मराठा में ओबीसी, मुसलमान, ब्राह्मण और दलित आते हैं। ऐसे में महायुति सरकार के सामने मराठा और ओबीसी दोनों को साधने की चुनौती है।