चीन के धोखे से सदमे में चले गए थे पं. नेहरू, देना चाहते थे इस्तीफा; निधन पर पाक ने भी झुकाया था झंडा
1962 के युद्ध में हार के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू काफी शांत रहने लगे थे। धीरे-धीर उनका स्वास्थ्य भी खराब होता चला गया। 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया था।

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहचान एक फिट रहने वाले नेता के तौर पर थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह कड़ी मेहनत करते थे। इसके अलावा आजादी की लड़ाई के दौरान वह जनता के बीच ऐक्टिव रहते थे। कई बार महात्मा गांधी के साथ उन्होंने लंबी-लंबी पैदल यात्राएं कीं। हालांकि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के बाद वह काफी गुमशुम रहने लगे थे। 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया था। इससे पहले करीब डेढ़ साल वह पहले की तुलना में काफी शांत रहते थे। करीबियों का कहना था कि उन्हें चीन से मिले धोखे का बड़ा सदमा लगा है और इस वजह से वह दुखी रहते हैं
1962 का भारत-चीन युद्ध
1962 का भारत चीन युद्ध भारत के लिए कभी ना भूलने वाली टीस है। 21 नवंबर 1962 को युद्ध समाप्त हो गया था लेकिन यह गहरे घाव के निशान छोड़ गया था। युद्ध में हजारों सैनिक शहीद हुए। तत्कालीनी उप प्रधानमंत्री सरदरा वल्लभभाई पटेल ने माओ की अगुआई वाले चीन की आक्रामक नीति को लेकर पहले ही आगाह कर दिया था। वहीं पंडित नेहरू ने चीन पर भरोसा किया और भाईचारे के जरिए हल निकालने की कोशिश की। तत्कालीन सरकार ने 'हिंदी चीनी भाई-भाई' का नारा दिया। वहीं चीन ने इसका फायदा उठाया और भारत के साथ धेखोबाजी की।
1953 में चीन ने आक्रामक रूप से सीमा के पास सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया था। उसने अक्साई चिन को चीन के क्षेत्र के रूप में दिखाया। इसके बाद चीनी प्रधानमंत्री झाउ एन लाई के बहकावे में आकर पंडित नेहरू ने पंचशील समझौते पर साइन कर दिए और तिब्बत पर चीन के नियंत्रण को स्वीकार कर लिया। 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ तो भारत की करारी हार हुई। भारतीय सैनिक आखिरी सांस तक लड़े इसके बावजूद भारत का बड़ा भूभाग चीन के कब्जे में चला गया। चीन ने ही एक महीने बाद युद्धविराम का ऐलान किया। इसके बाद रक्षा मंत्री वीके कृष्णमेनन ने इस्तीफा दे दिया।
भारत को नहीं मिला अमेरिका और रूस का साथ
भारत और चीन का यह युद्ध पंडित नेहरू की हार के तौर पर देखा गया। वहीं वैश्विक रणनीति के स्तर पर भी भारत को कामयाबी नहीं मिल पाई। रूस ने भी वामपंथी चीन के खिलाफ भारत का साथ नहीं दिया। वहीं इस युद्ध में अमेरिका से भी ज्यादा सहयोग नहीं मिला। पंडित नेहरू ने चीन के साथ जो दोस्ती का दिखावा शुरू कया था वह पूरी तरह फेल हो गया। चीन ने पीठ पर खंजर भोंक दिया था।
पाकिस्तान ने भी झुकाए थे झंडे
इस युद्ध के दौरान पंडित नेहरू की उम्र 73 साल हो गई थी। वहीं युद्ध के बाद वह काफी गुमसुम और शांत रहने लगे थे। उन्होंने पद से इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी। 1964 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उस वक्त वह भुवनेश्वर में थे। इसके बाद उन्हें चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगी। 26 मई 1964 को वह देहरादून से लौटे थे। वह जल्दी आराम करने चले गए। इसके बाद भी उन्हें नींद नहीं आई। 27 मई की सुबह उन्हें पैरालिटिक अटैक आ गया और दोपहर करीब दो बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। पंडित नेहरू के निधन के बाद पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भी शोक जताया गया और पाकिस्तान के झंडे आधे झुका दिए गए। यह पाकिस्तान के प्रोटोकॉल से हटकर था।