क्यों दुनिया में सबसे अलग है कटरा-श्रीनगर रेल प्रोजेक्ट? अश्विनी वैष्णव ने बताईं 8 खासियतें
इस रेल लिंक का सबसे आकर्षक हिस्सा चिनाब रेल ब्रिज है, जो 359 मीटर की ऊंचाई के साथ विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे आर्क ब्रिज है। यह इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को कटरा से श्रीनगर के बीच चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाएंगे। इस ऐतिहासिक अवसर पर केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उदमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक (USBRL) परियोजना की 8 खासियतों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर शेयर किया। उन्होंने इस रेल परियोजना को “इंजीनियरिंग का अद्भुत कारनामा” बताया।
रेल मंत्री ने बताया कि इस परियोजना के तहत देश की सबसे लंबी परिवहन सुरंग T-50, खारी और सुम्बर के बीच बनाई गई है, जिसकी लंबाई 12.77 किलोमीटर है। वहीं, देश की दूसरी सबसे लंबी रेल सुरंग T-80 (पिर पंजाल रेलवे टनल), बनिहाल और काजीगुंड के बीच स्थित है, जिसकी लंबाई 11.22 किलोमीटर है। इसके अलावा, भारत की तीसरी सबसे लंबी रेलवे सुरंग T-44 की लंबाई 11.13 किलोमीटर है, जो सावलकोट और संगलदान के बीच है।
सुरंगों का विशाल नेटवर्क
वैष्णव ने बताया कि USBRL परियोजना में कुल 36 मुख्य सुरंगों का निर्माण किया गया है, जिनकी कुल लंबाई 119.6 किलोमीटर है। इनके अलावा 8 एस्केप टनल्स यानी आपातकालीन सुरंगों का भी निर्माण हुआ है, जिनकी कुल लंबाई 66.4 किलोमीटर है।
दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज- चिनाब ब्रिज
परियोजना का सबसे आकर्षक और तकनीकी दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हिस्सा चिनाब ब्रिज है, जो अब दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज बन चुका है। इसकी लंबाई 1.3 किलोमीटर है और यह 359 मीटर ऊंचा है- यानी एफिल टावर से 35 मीटर ऊंचा। ब्रिज के निर्माण में 600 किलोमीटर से ज्यादा स्टील वेल्डिंग की गई, जो जम्मू से दिल्ली के रेलवे ट्रैक की लंबाई से भी ज्यादा है।
भारत का पहला केबल-स्पैन रेलवे ब्रिज- अंजी ब्रिज
रेल मंत्री ने परियोजना के तहत बने अंजी ब्रिज का भी जिक्र किया, जो भारत का पहला केबल-स्पैन रेलवे ब्रिज है। इस ब्रिज की कुल लंबाई 725.5 मीटर है और यह एक ही सेंट्रल पायलन पर संतुलित है। इस पायलन की ऊंचाई 193 मीटर है।
इस ब्रिज के निर्माण में 96 स्टे केबल्स का उपयोग किया गया, जिनकी कुल लंबाई 653 किलोमीटर है — जो जम्मू से दिल्ली की दूरी से भी ज्यादा है। इन सभी केबल्स को महज 11 महीनों में स्थापित किया गया।
हिमालयी तकनीक से हुई खुदाई
वैष्णव ने कहा कि इस परियोजना में विशेष रूप से हिमालयी टनलिंग पद्धति को अपनाया गया, ताकि कठिन भौगोलिक और भूकंपीय परिस्थितियों में भी निर्माण कार्य सुरक्षित और प्रभावी ढंग से किया जा सके।
हर मौसम में रेल परिचालन संभव
रेल मंत्री ने यह भी बताया कि वंदे भारत ट्रेनों में विशेष ‘आइस कटर’ लगाए गए हैं, जो बर्फबारी के दौरान पटरियों से बर्फ हटाने का कार्य करेंगे। इससे पूरे साल, हर मौसम में रेल सेवा संभव हो सकेगी।
1997 में शुरू हुआ था काम
कश्मीर को रेल मार्ग से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम 1997 में शुरू हुआ था। हालांकि, भूवैज्ञानिक, स्थलाकृतिक और मौसम संबंधी चुनौतियों के कारण परियोजना को पूरा करने की समयसीमा कई बार बढ़ाई गई, जिससे इसकी लागत बढ़ गई और यह 41,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि में पूरी हो पाई।
कुल 272 किलोमीटर लंबी यूएसबीआरएल परियोजना के 209 किलोमीटर हिस्से का काम विभिन्न चरणों में पूरा किया गया। 118 किलोमीटर लंबे काजीगुंड-बारामूला खंड का पहला चरण अक्टूबर 2009 में पूरा हुआ। इसके बाद 18 किलोमीटर लंबा बनिहाल-काजीगुंड खंड जून 2013 में, 25 किलोमीटर लंबा उधमपुर-कटरा खंड जुलाई 2014 में और 48.1 किलोमीटर लंबा बनिहाल-संगलदान खंड पिछले वर्ष फरवरी में पूरा हुआ। 46 किलोमीटर लंबे संगलदान-रियासी खंड का काम भी पिछले साल जून में पूरा हो गया था, जबकि रियासी और कटरा के बीच 17 किलोमीटर का हिस्सा बचा था, जो आखिरकार पिछले साल दिसंबर में पूरा हुआ।
वैष्णव ने कहा कि नदी तल से 359 मीटर ऊपर स्थित 1.3 किलोमीटर लंबा चेनाब रेलवे पुल पेरिस के प्रतिष्ठित एफिल टॉवर से 35 मीटर ऊंचा है और कटरा से बनिहाल तक 111 किलोमीटर के मार्ग में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उन्होंने कहा कि यह कई चुनौतियों को पार करने के बाद पूरा किया गया एक बहुत बड़ा तकनीकी चमत्कार है।
मंत्री ने कहा, “अगर तकनीकी मापदंडों की बात की जाए, तो इस पुल को 260 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बहने वाली हवा को झेलने के लिए डिजाइन किया गया है। चूंकि, यह पुल भूकंपीय क्षेत्र पांच में आता है, इसलिए इसका डिजाइन तैयार करना एक जटिल प्रक्रिया थी।” मंत्री ने कहा कि पुल की नींव फुटबॉल मैदान के आधे हिस्से के बराबर है और इसके निर्माण में 30,000 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया है।