शिमला समझौता रद्द कर सकती है शहबाज सरकार, पाकिस्तानी मीडिया में चर्चा; भारत को ही फायदा
शहबाज शरीफ ने आज नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (एनएससी) की आपात बैठक बुलाई है, जिसमें शिमला समझौते से हटने पर विचार किया जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया है। भारत सरकार ने इस हमले के जवाब में कड़े कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा छूट योजना (एसवीईएस) रद्द कर दी। इसके अलावा, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को ‘अवांछित व्यक्ति’ घोषित किया गया है। इन कदमों से बौखलाए पाकिस्तान में अब शिमला समझौते को रद्द करने की चर्चा जोर पकड़ रही है।
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गुरुवार सुबह नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (एनएससी) की आपात बैठक बुलाई है, जिसमें शिमला समझौते से हटने पर विचार किया जा सकता है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “भारत के हालिया बयानों और कदमों का जवाब देने के लिए यह बैठक बुलाई गई है।” पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टीवी चैनल पर दावा किया कि पहलगाम हमला पाकिस्तान से जुड़ा नहीं है और भारत के कई हिस्सों में हिंसा “घरेलू विद्रोह” का नतीजा है।
पाकिस्तानी न्यूजपेपर द नेशन ने अपनी खबर में लिखा है कि अगर सिंधु नदी के पानी तक पाकिस्तान की पहुंच पर खतरा मंडराता है, तो अन्य द्विपक्षीय समझौतों की बुनियाद भी कमजोर पड़ सकती है। इसके जवाब में पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) स्थापित करने वाले शिमला समझौते के साथ ही अन्य युद्धविराम व्यवस्थाओं को निलंबित करने पर विचार कर सकता है। पाकिस्तानी मीडिया में इस मुद्दे पर गर्मागर्म चर्चा हो रही है।
क्या है शिमला समझौता?
शिमला समझौता हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 28 जून से 2 जुलाई 1972 तक चली कई दौर की वार्ताओं का परिणाम था। इसे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद के तनाव को कम करने और दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। युद्ध में भारत ने न केवल पाकिस्तान को सैन्य रूप से परास्त किया था, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को स्वतंत्र कराकर पाकिस्तान को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया था। इसके अलावा, भारत ने 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया था और पाकिस्तान के लगभग 5,000 वर्ग मील क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। शिमला समझौता एक शांति संधि से कहीं अधिक है; यह दोनों देशों के बीच भविष्य के संबंधों के लिए एक ढांचा प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध के बाद उत्पन्न मुद्दों, जैसे युद्धबंदियों की वापसी, कब्जाए गए क्षेत्रों का आदान-प्रदान और कश्मीर विवाद को संबोधित करना है।
द्विपक्षीय समाधान का सिद्धांत: समझौते का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवादों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दों, को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करेंगे। यह कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे संयुक्त राष्ट्र, पर उठाने से रोकने के लिए एक रणनीतिक कदम था।
नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान: समझौते में यह तय हुआ कि 17 दिसंबर 1971 को युद्धविराम के बाद स्थापित नियंत्रण रेखा को दोनों देश सम्मान करेंगे। इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LoC) के रूप में मान्यता दी गई, और दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि वे इसे एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश नहीं करेंगे।
क्षेत्रों की वापसी और युद्धबंदियों का आदान-प्रदान: भारत ने युद्ध में कब्जाए गए पश्चिमी पाकिस्तान के क्षेत्रों को वापस करने और 90,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने पर सहमति जताई। बदले में, पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता देने और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने का वादा किया।
शांति और सहयोग को बढ़ावा: दोनों देशों ने एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने, बल प्रयोग से बचने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का पालन करने का वचन दिया। व्यापार, संचार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने पर सहमति बनी।
परमाणु स्थिरता: समझौते ने परमाणु वृद्धि के जोखिम को कम करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने पर जोर दिया। दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
शिमला समझौते का असर
शिमला समझौते ने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों से हटाकर द्विपक्षीय स्तर पर लाने में भारत को महत्वपूर्ण सफलता दिलाई। इससे भारत ने यह सुनिश्चित किया कि कश्मीर पर कोई तीसरा पक्ष, जैसे संयुक्त राष्ट्र या कोई अन्य देश, हस्तक्षेप नहीं करेगा।
समझौते ने तत्काल सैन्य तनाव को कम करने और दक्षिण एशिया में स्थिरता को बढ़ावा देने में योगदान दिया। युद्धविराम व्यवस्था और नियंत्रण रेखा की स्थापना ने अनियोजित सैन्य वृद्धि को रोका।
1971 के युद्ध और शिमला समझौते ने भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया। इंदिरा गांधी की दृढ़ नेतृत्व ने भारत को वैश्विक मंच पर एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में उभारा।
पाकिस्तान ने अपने युद्धबंदियों और क्षेत्रों की वापसी हासिल की, लेकिन वह कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में असफल रहा। इसके अलावा, समझौते के प्रावधानों का बार-बार उल्लंघन, जैसे नियंत्रण रेखा पर संघर्ष और आतंकवाद को प्रायोजित करना, ने इसकी विश्वसनीयता को कमजोर किया।
तो भारत को ही होगा फायदा
पाकिस्तानी मीडिया में यह चर्चा है कि पाकिस्तान शिमला समझौते से पीछे हटने पर विचार कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो इसके पाकिस्तान के लिए गंभीर परिणाम होंगे।
कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्ति: शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाए रखने का आधार है। यदि पाकिस्तान इसे रद्द करता है, तो भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान ने स्वयं समझौते को अमान्य कर दिया, जिससे भारत को कश्मीर पर अपनी नीतियों को और मजबूत करने की स्वतंत्रता मिलेगी। भारत यह दावा कर सकता है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है, और वह बिना किसी बाहरी दबाव के इस पर निर्णय ले सकता है।
कूटनीतिक अलगाव: समझौता रद्द करना पाकिस्तान की कूटनीतिक विश्वसनीयता को और कमजोर करेगा। वैश्विक समुदाय इसे एक गैर-जिम्मेदार कदम के रूप में देखेगा, जिससे पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय अलगाव बढ़ सकता है। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में और उजागर कर सकता है।
सैन्य और रणनीतिक स्वतंत्रता: शिमला समझौते ने नियंत्रण रेखा को एक स्थायी सीमा के रूप में मान्यता दी। यदि यह रद्द होता है, तो भारत इसे एक अवसर के रूप में देख सकता है और नियंत्रण रेखा के पार, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में, अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है। भारत PoK में विकास परियोजनाओं को बढ़ावा दे सकता है या वहां के लोगों के साथ सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है।
चीन के साथ संबंधों पर प्रभाव: शिमला समझौता रद्द होने से भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसे प्रोजेक्ट्स पर और सवाल उठाने का मौका मिलेगा, क्योंकि ये PoK से होकर गुजरते हैं। भारत इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ एक कदम के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
पाकिस्तान की संभावित बर्बादी
शिमला समझौता रद्द करना पाकिस्तान के लिए एक आत्मघाती कदम होगा। यह समझौता अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसे रद्द करने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो सकती है, और वह वैश्विक मंचों पर और भी अलग-थलग पड़ सकता है।
पाकिस्तान ने बार-बार कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर उठाने की कोशिश की, लेकिन शिमला समझौते के कारण उसे सफलता नहीं मिली। यदि समझौता रद्द होता है, तो भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला मान सकता है, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद वैश्विक शक्तियों ने भारत के पक्ष का समर्थन किया है। समझौता रद्द होने पर भारत नियंत्रण रेखा पर अधिक आक्रामक रुख अपना सकता है, जिससे पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक रूप से भारी नुकसान हो सकता है। पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था इस अतिरिक्त दबाव को सहन नहीं कर पाएगी।
शिमला समझौता रद्द करने से पाकिस्तान का आतंकवाद को प्रायोजित करने का रिकॉर्ड और उजागर होगा। इससे FATF जैसे संगठनों द्वारा पाकिस्तान पर और सख्त कार्रवाई हो सकती है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और चरमरा जाएगी। पाकिस्तान में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट है। समझौता रद्द करने से भारत के साथ तनाव बढ़ेगा, जिसका असर पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ेगा। बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलन और तेज हो सकते हैं।
पाकिस्तान में क्यों उठ रही है रद्द करने की मांग?
पाकिस्तानी मीडिया और विश्लेषकों का दावा है कि भारत के हालिया कदम, खासकर सिंधु जल समझौते का निलंबन, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए बड़ा झटका है। सिंधु नदी प्रणाली पर पाकिस्तान की 80% कृषि निर्भर है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शिमला समझौते को रद्द करना भारत पर दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है, लेकिन इससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ सकता है।
भारत ने स्पष्ट किया है कि पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। विदेश मंत्रालय ने कहा, “आतंकवाद के प्रति भारत की जीरो टॉलरेंस नीति है। हमले के जिम्मेदारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।” भारत ने 24 अप्रैल को सर्वदलीय बैठक बुलाने का भी फैसला किया है, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी।