वक्फ का फैसला आखिरी नहीं, संपत्ति पर दावा भी मुश्किल; बिल आया तो क्या-क्या बदलेगा
- भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों से जुड़ा है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती गई।

वक्फ संशोधन बिल को लेकर संसद में बहस शुरू हो गई है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की तरफ से सदन में बिल पर चर्चा शुरू की गई। हालांकि, बिल पास होने के लिए सत्तारूढ़ NDA के पास पर्याप्त संख्या है। इधर, मुस्लिम समुदायों में भी बिल को लेकर राय मिली जुली है। सवाल है कि इसके लागू होने के बाद क्या कुछ बदल जाएगा?
क्या होंगे बदलाव
अगर वक्फ बिल लागू हो जाता है, तो इसके साथ ही कई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। उदाहरण के तौर पर ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी नहीं माना जाएगा, दावे को सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट और उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी सकेगी, वक्फ की ओर से किसी भी जमीन पर दावा करना आसान नहीं होगा, दान में मिली जमीन को ही वक्फ की संपत्ति माना जाएगा। वक्फ की पूरी संपत्ति पोर्टल पर दर्ज की जाएगी।
इसके अलावा अगर सरकारी सरकारी संपत्ति पर दावा किया तो जांच की जाएगी। साथ ही इस्तेमाल के आधार पर किसी जमीन पर वक्फ का दावा स्वीकार नहीं होगा। बिल में कहा गया है कि वक्फ की जिन संपत्तियों पर नमाज पढ़ी जाती है, उनमें कोई दखल नहीं दिया जाएगा। पंजीकृत संपत्तियों में कोई दखल नहीं होगा। खास बात है कि वक्फ किसी भी आदिवासी इलाके में संपत्ति होने का दावा नहीं कर सकेगा।
ये सब भी बदलेगा
कलेक्टर से छिनेगा अधिकार: जिला कलेक्टर के बजाए अब कलेक्टर से ऊपरी रैंक के अधिकारी को संपत्ति का मालिकाना हक तय करने और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपने का अधिकार होगा। इस अधिकारी का चुनाव भी राज्य सरकार की तरफ से किया जाएगा।
वक्फ ट्रिब्यूनल: वक्फ ट्रिब्यूनल में तीन सदस्य होंगे। इनमें से एक मुस्लिम कानून का जानकार होंगे। साथ ही पूर्व या मौजूदा जिला जज को अध्यक्ष बनाया जाएगा। इसके अलावा तीसरे सदस्य राज्य सरकार में सह सचिव की रैंक के होंगे।
सेंट्रल वक्फ काउंसिल: बिल में कहा गया है कि इस काउंसिल के कम से कम दो सदस्य गैर मुस्लिम होंगे। काउंसिल में नियुक्त किए गए सांसदों, पूर्व जजों और गणमान्यों का मुस्लिम होना जरूरी नहीं होगा। साथ ही इसमें मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामिक कानून के जानकार और वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शामिल होंगे। मुस्लिम सदस्यों में कम से कम 2 महिलाओं का होना जरूरी है।
ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी नहीं: मौजूदा कानून के मुताबिक, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी होता है और फैसले के खिलाफ अदालतों में जाने की मनाही है। हालांकि, हाईकोर्ट अपनी इच्छा से इन मामलों पर सुनवाई कर सकता है। अब बिल में ट्रिब्यूनल के फैसले को अंतिम मानने की बात को खत्म किया गया है। साथ ही कहा गया है कि ट्रिब्यूनल के फैसले पर 90 दिनों के अंदर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
केंद्र सरकार की शक्तियां: संशोधन बिल केंद्र सरकार को रजिस्ट्रेशन, वक्फ के खातों के प्रकाशन जैसे नियमों में बदलाव का अधइकार देता है। साथ ही केंद्र सरकार वक्फ के खातों का ऑडिट CAG या तय अधिकारी से करा सकेगी।
बोहरा और अगाखानी के लिए अलग बोर्ड: बिल में बोहरा और अगाखानी क लिए अलग बोर्ड तैयार करने की अनुमति दी गई है।
वक्फ के पास कितनी है संपत्ति
WAMSI यानी वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के ताजा आंकड़े बताते हैं कि वक्फ के पास 8 लाख 72 हजार 804 अचल संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं। जबकि, चल संपत्तियों की संख्या 16 हजार 716 है।
कहां से शुरू हुआ वक्फ
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार, भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों से जुड़ा है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती गई।
आगे बताया गया कि 19वीं शताब्दी के अंत में भारत में वक्फ को समाप्त करने का मामला तब उठा जब लंदन की प्रिवी काउंसिल में वक्फ संपत्ति पर विवाद छिड़ा, जबकि भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। मामले की सुनवाई करने वाले 4 न्यायाधीशों ने वक्फ को 'सबसे खराब और सबसे घातक किस्म की शाश्वतता' के रूप में बताया था। वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया। बाद में भारत में इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया गया। 1913 का मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम को लागू कर इन संपत्तियों को कानून द्वारा बचा लिया गया। तब से वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।