चूहे की बजाय बाघ राष्ट्रीय पशु क्यों? कौन थे अन्नादुरई जिन ने हिन्दी विरोध में गढ़ा था तर्क, कांग्रेस का बेड़ा गर्क
कोंजीवरम नटराजन अन्नादुरई, जिन्हें तमिलनाडु में सी.एन. अन्नादुरई या 'अन्ना' के नाम से भी जाना जाता है, एक बेहद साधारण व्यक्ति थे। 1967 में उन्होंने पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी।

समग्र शिक्षा अभियान (SSA) फंड को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच छिड़ी ताजा बहस ने लंबे समय से चली आ रहे भाषा विवाद की बहस को फिर से सुलगा दिया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर जबरन हिंदी थोपने का आरोप लगाया है और कहा है कि उनकी सरकार त्रिभाषा फॉर्मूले के जगह दो-भाषा नीति का पालन करती रहेगी। तमिलनाडु 1968 से ही इस नीति का पालन कर रहा है। इस बीच, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने केंद्र सरकार की नीति का बचाव करते हुए हिंदी थोपे जाने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। फरवरी में प्रधान ने कहा था, "तमिल हमारी सभ्यता की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है लेकिन तमिलनाडु का कोई छात्र अगर शिक्षा में बहुभाषी पहलुओं को सीखता है तो इसमें क्या गलत है? यह तमिल, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाएं हो सकती हैं। उन पर हिंदी या कोई अन्य भाषा नहीं थोपी जा रही है बल्कि तमिलनाडु में कुछ दोस्त राजनीति कर रहे हैं।"
यह पहला मौका नहीं है, जब तमिलनाडु में इस तरह से हिन्दी का विरोध हुआ है। जब तमिलनाडु मद्रास प्रेसिडेंसी हुआ करता था, तब 1937 में वहां सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व में सरकार बनी थी। उन्होंने 1938 में माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने का आदेश दिया था लेकिन द्रविड़ कषगम (जिसे पहले जस्टिस पार्टी के नाम से जाना जाता था) ने इसका विरोध किया था। हिन्दी के विरोध में हुए आंदोलन में थलामुथु और नटराजन नाम के दो युवकों की जान चली गई थी, जो बाद में चलकर हिंदी विरोधी आंदोलन के प्रतीक बन गए।
मद्रास प्रेसिडेंसी में हिन्दी विरोध की आग ऐसे भड़की कि 1940 में मुख्यमंत्री राजगोपालाचारी को अपना आदेश वापस लेना पड़ गया था। बाद में 1960 के दशक में जब देश में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का समय आया तो तमिलनाडु में फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। हिंदी विरोधी इस आंदोलन में पुलिस कार्रवाई और आत्मदाह की घटनाओं में करीब 70 लोगों की जान चली गई थी। इस आंदोलन से राज्य में द्रविड़ आंदोलन मजबूत होता चला गया।
चूहे की बजाय बाघ राष्ट्रीय पशु क्यों?
इन आंदोलनों का नेतृत्व द्रविड़ पार्टी के नेता ईवी रामास्वामी पेरियार कर रहे थे। उनके चेले सीएन अन्नादुरई भी उनके साथ थे। इन दोनों की जोड़ी दलित और पिछड़ी जातियों को सम्मान दिलाने वाले आत्मसम्मान आंदोलन में सफल हो चुकी थी। 'एक महान तमिल स्वप्न' पुस्तक के मुताबिक, जब अन्नादुरई हिन्दी के विरोध में भाषण देते थे तो जनसमूह उमड़ पड़ता था। किताब के मुताबिक, अन्नादुरई अपने भाषणों में कहते थे, “अगर हिन्दी आम भाषा है क्योंकि यह देश में बहुसंख्यकों द्वारा बोली जाती है, तो फिर हम चूहे की बजाय बाघ को राष्ट्रीय पशु क्यों मानते हैं, जबकि चूहे की संख्या अधिक है।”
इस तरह अन्नादुरई धीरे-धीरे हिन्दी के कट्टर विरोधी बन गए। उनकी वाक पटुता में फिल्मी टोन समाने लगा क्योंकि वह राजनीति में आने से पहले फिल्मों और नाटकों की पटकथा लिखा करते थे। कहा जाता है कि अन्नादुराई पहले ऐसे द्रविड़ नेता थे जिन्होंने तमिल सिनेमा का प्रयोग अपने राजनीतिक प्रचार-प्रसार के लिए किया था। बाद में उनकी इस विरासत को करुणानिधि ने आगे बढ़ाया। करुणानिधि भी फिल्मों और नाटकों की पटकथा लिखा करते थे। राज्य में हिन्दी का विरोध तब शांत हुआ, जब 1967 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन हुआ था लेकिन हिन्दी विरोध की चिंगारी अब भी जल रही है।
तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी CM अन्नादुरई?
कोंजीवरम नटराजन अन्नादुरई, जिन्हें तमिलनाडु में सी.एन. अन्नादुरई या 'अन्ना' के नाम से भी जाना जाता है, एक बेहद साधारण व्यक्ति थे। कांचीपुरम के बुनकर समुदाय के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 15 सितंबर 1909 को उनका जन्म हुआ था। वह 1934 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर थे। पत्रकारिता और राजनीति में आने से पहले वह अंग्रेजी के शिक्षक रह चुके थे। वह तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। करुणानिधि के साथ मिलकर उन्होंने 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी की स्थापना की थी। उन्होंने 1967 के चुनावों में उन्होंने तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी में सभी विपक्षी दलों के एकसाथ लेकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था और 234 सदस्यों वाली विधानसभा में 179 सीटें जीती थीं। इस तरह मद्रास, जो बाद में तमिलनाडु बना,से कांग्रेस सरकार की विदाई हो गई, जो आज तक दोबारा नहीं बन सकी। हिन्दी थोपने का मुद्दा कांग्रेस के लिए मौत की घंटी साबित हुई।
मौत पर बना था गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
1968 में अन्नादुरई ने ही दो भाषा फॉर्मूला की शुरुआत की थी जो तमिलनाडु में आज तक जारी है। अन्नादुरई ने अपनी मौत तक यानी 3 फरवरी 1969 तक इस सरकार का नेतृत्व किया था। गिनीज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार दुनिया में सबसे बड़ा अंतिम संस्कार 3 फरवरी 1969 को हुआ था, जिसमें 1.5 करोड़ से अधिक लोगों ने 'अन्ना' को श्रद्धांजलि दी थी। कहा जाता है कि जब उनका पार्थिव शरीर मरीना बीच पर ले जाया जा रहा था, तब मद्रास शहर की सभी सड़के जनसैलाब से भरी हुई थीं। उस दिन शहर में किसी भी गाड़ी को आने-जाने की अनुमति नहीं थी।