दिल्ली में बैठता था औरंगजेब, फिर महाराष्ट्र में क्यों बनी कब्र; विवाद के बीच जानें पूरी कहानी
- मुगल शासन की यह विडंबना ही थी कि औरंगजेब के दौर में उसका सबसे ज्यादा विस्तार हुआ और यहीं से उसके पतन की भी शुरुआत हुई थी। औरंगजेब की मृत्यु 1707 में अहमदनगर में हुई थी, लेकिन उसकी इच्छा के अनुसार खुल्दाबाद में दफनाया गया। यहीं पर शेख जैनुद्दीन की दरगाह भी स्थित है, जिनका औरंगजेब सम्मान करता था।

समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने पिछले दिनों मुगल शासक औरंगजेब की तारीफ की थी। आजमी का कहना था कि औरंगजेब के दौर में भारत की जीडीपी दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था के 25 फीसदी के बराबर थी। उनके इस बयान के बाद से ही जो विवाद छिड़ा, वह महाराष्ट्र से लेकर पूरे भारत की राजनीति में ट्रेंडिंग टॉपिक बन गया है। भारतीय इतिहास में औरंगजेब की छवि एक क्रूर शासक की रही है। उसने सिखों के धर्मगुरुओं के साथ अत्याचार किए तो वहीं महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी और बुंदेलखंड में महाराज छत्रसाल तक से उसका मुकाबला हुआ। छत्रपति शिवाजी के बेटे और उनके बाद मराठा शासक बने संभाजी महाराज का कत्ल भी औरंगजेब ने ही कराया था। उन्हें बंधक बनाकर उत्पीड़न किया गया था और अंत में गला काटकर हत्या कर दी गई थी।
इसलिए औरंगजेब की तारीफ करना औरंगजेब हमेशा एक विवाद का विषय रहा है। अबू आसिम आजमी ने जैसे ही औरंगजेब की तारीफ की तो बवाल मच गया। भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना के नेताओं ने तो औरंगजेब की कब्र को ही खत्म करने की मांग की, जो महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में है। यह खुल्दाबाद कस्बा संभाजीनगर जिले में है, जो कभी औरंगाबाद हुआ करता था। औरंगजेब के बहाने अलग-अलग ऐतिहासिक दावे हो रहे हैं, लेकिन इस पर सभी की सहमति है कि वह कट्टर इस्लामिक था। उसने काशी, मथुरा जैसे कई मंदिरों को नुकसान पहुंचाया था। इसके अलावा गैर-मुसलमानों पर अत्याचार करने में भी वह अन्य मुगल शासको की ही तुलना में कहीं ज्यादा क्रूर था।
औरंगजेब दिल्ली से बैठकर शासन करता था। फिर उसकी कब्र महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में क्यों स्थित है। यह एक सवाल है, जिसका जवाब हर कोई चाहता है। दरअसल खुल्दाबाद में सूफी संत कहे जाने वाले जैनुद्दीन शिराजी की कब्र थी। औरंगजेब की शिराजी में बड़ी आस्था थी और वह चाहता था कि उसकी कब्र भी उनके पास ही बना जाए। औरंगजेब ने अपनी मृत्यु से पहले ही उत्तराधिकारियों से कहा था कि उसकी कब्र को ज्यादा सजाया न जाए और उसके ऊपर सिर्फ आसमान रहना चाहिए।
यही वजह है कि औरंगजेब की कब्र बेहद सादगी से बनी थी। यहां पर कई सूफी संतों की दरगाहें स्थित हैं। औरंगेजब इस्लामिक कट्टर था, लेकिन उसने सादगी से रहना सीखा था। वह अकसर सादे कपड़ा पहनता था और पैसे बचाता था ताकि राजकोष पर ज्यादा बोझ न पड़े। मुगल शासन की यह विडंबना ही थी कि औरंगजेब के दौर में उसका सबसे ज्यादा विस्तार हुआ और यहीं से उसके पतन की भी शुरुआत हुई थी। औरंगजेब की मृत्यु 1707 में अहमदनगर में हुई थी, लेकिन उसकी इच्छा के अनुसार खुल्दाबाद में दफनाया गया।