वंशवाद या भविष्य की चिंता, नीतीश के बेटे की राजनीतिक एंट्री पर JDU में क्यों पसरा सन्नाटा?
हालांकि, जेडीयू के की कुछ नेता इस बात पर संतोष जाहिर करते हैं कि अगर निशांत राजनीति में आते हैं तो यह जेडीयू के लिए अच्छा हो सकता है क्योंकि पार्टी अभी चौराहे पर खड़ी है।

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के 48 वर्षीय बेटे निशांत कुमार को लेकर पिछले कुछ महीनों से सियासी अटकलों का बाजार गर्म है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से ऐन पहले उनकी राजनीति में एंट्री हो जाए और वह जेडीयू का भविष्य बन जाएं लेकिन इस बारे में अब तक ना तो खुद नीतीश कुमार ने और ना ही उनकी पार्टी जेडीयू की तरफ से कुछ भी सार्वजनिक तौर पर कहा गया है। इससे बिहार में सियासी संभावनाओं के बादल ज्यादा ही उमड़-घुमड़ रहे हैं।
बीआईटी मेसरा से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले निशांत अब तक राजनीतिक बयानबाजी से बचते रहे थे लेकिन हाल ही में उन्होंने अपने पिता को अगले विधानसभा चुनावों में एनडीए की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने की मांग की थी। इसके अलावा अब वह पिता के साथ कुछ-कुछ कार्यक्रमों में भी सार्वजनिक तौर पर दिखने लगे हैं। दूसरी तरफ उनके पिता की लॉन्चिंग सीट रहे हरनौत में उनके खिलाफ सियासी पोस्टर ने भी इस हवा को बल दिया है कि उनका राजनीतिक पदार्पण होने जा रहा है।
वंशवाद पर घिर सकते हैं नीतीश
हालांकि, कई जानकार और जेडीयू के ही नेता यहां तक कहते हैं कि जिस नीतीश कुमार ने वंशवाद को लेकर लालू-राबड़ी परिवार पर हमला बोला है, वह अपने जीते जिंदगी बेटे को अपनी पार्टी में लॉन्च करने से परहेज कर सकते हैं। एक जेडीयू नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि निशांत ना तो पार्टी की बैठकों में शामिल होते हैं, और ना ही वह औपचारिक तौर पर पार्टी के सदस्य हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार ने भी अभी तक निशांत के बारे में पार्टी फोरम में कुछ भी नहीं कहा है, तो हम अटकलें लगाने के सिवा आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कह सकते। जेडीयू नेता ने इस बात की भी आशंका जताई कि अगर नीतीश कुमार के रहते उनके बेटे जेडीयू में राजनीतिक पदार्पण करते हैं तो मुख्यमंत्री वंशवाद के मुद्दे पर अपने विरोधियों और आलोचकों के निशाने पर आ सकते हैं।
भविष्य की चिंता, पिछड़ा समुदाय से चेहरे के अभाव
हालांकि, जेडीयू के ही कुछ नेता इस बात पर संतोष जाहिर करते हैं कि अगर निशांत राजनीति में आते हैं तो यह जेडीयू के लिए अच्छा हो सकता है क्योंकि पार्टी अभी चौराहे पर खड़ी है क्योंकि नीतीश कुमार की उम्र ज्यादा हो चुकी है। इसलिए पार्टी को अब भविष्य के नेता की तलाश करनी जरूरी है। इस तलाश को निशांत पूरी कर सकते हैं। कुछ लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि जेडीयू का नेतृत्व कोई पिछड़ा या अति पिछड़ा समुदाय का नेता ही कर सकता है लेकिन संयोग या प्रयोग के तौर पर नीतीश कुमार ने दूसरी पंक्ति में ऐसे किसी भी नेता को तैयार नहीं किया है, जो उनकी जगह ले सके।
बिहार में अब सिर्फ OBC या EBC कार्ड
जानकार कहते हैं कि अगर ललन सिंह और संजय झा जैसे कुछ नेता जेडीयू में दूसरी पंक्ति में हैं भी तो वे सभी उच्च जाति के हैं लेकिन बिहार की राजनीतिक फिजां अब ऐसी है कि वहां किसी भी दल का मुखिया या सरकार का नेतृत्व कोई पिछड़ा या अति पिछड़ा समाज का व्यक्ति ही कर सकता है। कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि निशांत कुमार के राजनीति में उतरने से जेडीयू कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने में बल मिल सकता है। हालांकि, इसमें खतरा यह है कि निशांत के राजनीति में कदम रखते ही जेडीयू राजद, हम, लोजपा जैसी अन्य क्षेत्रीय दलों की राह पर उतर सकती है, जिसमें वंशवाद की बेल खूब फल-फूल रही है।