‘आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते’, वक्फ पर सुनवाई के दौरान केंद्र से SC ने क्यों कहा ऐसा?
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता। वे अब ट्रस्ट बना सकते हैं। इस पर सीजेआई ने कहा कि यह तो पॉजिटिव बात है।

देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली तीन जजों की खंड पीठ ने आज (बुधवार, 16 अप्रैल को) वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 70 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सी यू सिंह समेत अन्य कई पेश हुए, जबकि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की।
याचिका में तर्क दिये गये हैं कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन करता है। मुस्लिम पक्ष ने आज अदालत से इस मामले में अंतरिम राहत की मांग की लेकिन केंद्र ने उस पर कोई फैसला देने से पहले सुनवाई की मांग की। लिहाजा, कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया। हालांकि, कोर्ट अंतरिम आदेश जारी करना चाहता था लेकिन SG की आपत्ति के बाद उसे टाल दिया गया। अब कल दोपहर दो बजे फिर सुनवाई होगी और संभवत: कोई अंतरिम आदेश जारी हो सकता है। कोर्ट ने वक्फ एक्ट के खिलाफ हो रही हिंसा पर चिंता जताई और कहा कि हिंसा नहीं होनी चाहिए।
करीब दो घंटे हुई गरमागरम बहस
करीब दो घंटे तक चली गरमागरम सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं और सॉलिसिटर जनरल दोनों से कई सवाल पूछे। मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, "आप बाय यूजर वक्फ को कैसे रजिस्टर करेंगे जो लंबे समय से वहां हैं? उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? इससे तो कुछ गलत हो सकता है। कुछ दुरुपयोग भी हुआ है। अगर आप इसे रद्द करते हैं, तो यह एक समस्या होगी।"
CJI ने पूछा, "जब किसी 100 या 200 साल पुराने सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता है तो आप आप कहते हैं कि इसे वक्फ बोर्ड द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा है और आप इसे अनुचित करार देते हैं।" इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, यह सही नहीं है। इसका मतलब यह है कि अगर आपके पास वक्फ है तो आप इसके बजाय ट्रस्ट बना सकते हैं। यह एक सक्षम प्रावधान है।" इस पर सीजेआई ने कहा, "आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते!"
'तो ये पीठ भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती'
CJI और SG के बीच एक और गरमाहरम बहस तब हुई जब मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "तो, ऐक्ट के अनुसार, वक्फ बोर्ड में आठ सदस्य मुस्लिम हैं। दो पदेन सदस्य गैर मुस्लिम हो सकते हैं। फिर बाकी भी क्या गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।" इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने टिप्पणी की, "तो यह पीठ भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती।" इस पर सीजेआई खन्ना ने पलटवार किया, “क्या? जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं। हमारे लिए, दोनों पक्ष एक जैसे हैं। आप इसकी तुलना न्यायाधीशों से कैसे कर सकते हैं?”
हिंदू बंदोबस्ती के सलाहकार बोर्ड में मुस्लिम क्यों नहीं?
जस्टिस खन्ना ने पूछा, "फिर हिंदू बंदोबस्ती के सलाहकार बोर्ड में मुस्लिम क्यों नहीं हैं? क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुस्लिमों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। खुलकर कहिए।" इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अदालत को बताया कि आप एक ऐसे कानून से निपट रहे हैं, जिसे लागू करने से पहले उस एक संयुक्त संसदीय समिति बनाई गई थी। उनकी 38 बैठकें हुईं। इसने कई क्षेत्रों का दौरा किया। 98 लाख से अधिक ज्ञापनों की जांच की। इसके बाद यह संसद के दोनों सदनों में गया और फिर कानून पारित हुआ।
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, "हमें बताया गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय वक्फ भूमि पर बना है... हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ का उपयोग गलत है, लेकिन यह एक वास्तविक चिंता है।"